Home चुनावी हलचल राहुल गांधी से प्रचार नहीं कराना चाहते सिद्धारमैया

राहुल गांधी से प्रचार नहीं कराना चाहते सिद्धारमैया

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“अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी को हम पहला गिफ्ट देंगे।” कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का ये बयान राहुल गांधी के कर्नाटक दौरे के समय का है। दरअसल सिद्धारमैया के इस बयान के राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। कहा तो ये जा रहा है कि राहुल गांधी के द्वारा कर्नाटक विधानसभा चुनाव का प्रचार करवाना ही नहीं चाहते हैं सिद्धारमैया।

राहुल गांधी से प्रचार नहीं चाहते सिद्धारमैया
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया नहीं चाहते कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कर्नाटक में गुजरात की तरह प्रचार करें। सिद्धारमैया ने यह बात अपने कुछ करीबियों के जरिए पार्टी हाईकमान तक पहुंचाई भी है। मुख्यमंत्री का फॉर्मूला यह है कि राहुल गांधी कर्नाटक के कुछ इलाकों तक ही सीमित रहें। खास तौर पर वो शहरी इलाकों में प्रचार करने न जाएं, क्योंकि उससे कांग्रेस पार्टी को नुकसान हो सकता है।

अमरिंदर सिंह को भी पसंद नहीं थे राहुल
दरअसल कर्नाटक अब उन कुछ गिने-चुने राज्यों में से है जहां पर कांग्रेस की सरकार बाकी है। लेकिन यह हैरानी की बात है कि कांग्रेस की ही एक राज्य ईकाई अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष से प्रचार नहीं करवाना चाहती है। पंजाब चुनाव के वक्त भी यही हुआ था तब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर उतरने के लिए यही शर्त रखी थी कि वो खुद प्रचार की कमान संभालेंगे और राहुल गांधी को पंजाब से दूर रखा जाएगा।

जहां गए राहुल, वहां मिली हार
राहुल गांधी द्वारा कर्नाटक का प्रचार नहीं करवाए जाने के पीछे एक कारण ये है कि राहुल गांधी का अब तक का ट्रैक रिकॉर्ड बेहद खराब है। 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस मजबूत बनकर उभरी तो यूपी से 21 सांसदों के जीतने का श्रेय राहुल गांधी को दिया गया। 2013 में जब से पार्टी की कमान राहुल गांधी को दिये जाने की बात ही चली कि पार्टी के बुरे दिन शुरू हो गए। 2012 में यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी के खाते में महज 28 सीटें आई। वहीं पंजाब में अकाली-भाजपा का गठबंधन होने से वहां दोबारा सरकार बन गई। दूसरी ओर गोवा भी हाथ से निकल गया। हालांकि हिमाचल और उत्तराखंड में जैसे-तैसे कांग्रेस की सरकार बन तो गई, लेकिन वह भी हिचकोले खाती रही। इसी साल गुजरात में भी हार मिली और त्रिपुरा, नगालैंड, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की करारी हार हुई।

2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट गई। 2015-16 में असम और पश्चिम बंगाल में हार का मुंह देखना पड़ा। 2017 में यूपी, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी हार का सामना करना पड़ा।

मोदी बनाम राहुल से बचना चाहती है कांग्रेस
राहुल से प्रचार नहीं कराने के पीछे एक कारण यह भी है कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने अपनी रणनीति हिंदू-मुस्लिम राजनीति के इर्द-गिर्द बुननी शुरू कर दी है। उसकी नजर प्रदेश में 16 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय के वोटों पर है। लेकिन कांग्रेस को डर है कि राहुल गांधी कर्नाटक के मुद्दों को भटका देंगे। दरअसल कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जबर्दस्त लोकप्रियता है। इसके साथ ही कर्नाटक में गांव-गांव में बीजेपी और आरएसएस का संगठन है। इसलिए ही सिद्धारमैया ने टीपू सुल्तान जयंती मनाकर मुस्लिमों के वोट को पुख्ता करने की भरपूर कोशिश की है। लेकिन कांग्रेस जानती है कि एक बार अगर पीएम मोदी मैदान में आ गए तो मुद्दा मोदी बनाम राहुल हो जाएगा, जिससे कांग्रेस की हार पक्की हो जाएगी।

हिंदुओं को बांटने में लगी है कांग्रेस
चुनावी रणनीति का जो खाका सिद्धारमैया ने तैयार किया है उसमें राहुल गांधी की चुनावी सभाएं बहुत ही कम है। उनकी ज्यादातर सभाएं मुस्लिम, ईसाई बहुल इलाकों और ग्रामीण क्षेत्रों में रखने का प्रस्ताव है। दरअसल सिद्धारमैया ने मुसलमानों, ईसाइयों, पिछड़ी जातियों और दलितों के तुष्टीकरण के आधार पर एक जातीय समीकरण बनाया है, जिसे कन्नड़ में ‘अहिंदा’ कहते हैं। लेकिन सिद्धारमैया को डर है कि अगर राहुल गांधी प्रचार करने आए तो वो जरूर कोई न कोई ऐसी बात कह सकते हैं जिससे बीजेपी को ‘हिंदू एकता’ के फॉर्मूले में मदद मिलेगी।

इसाई मिशनरियों की आड़ में कांग्रेस की राजनीति
कांग्रेस सरकार कितनी खतरनाक है इसका अंदाजा इस बात से भी लगता है कि पिछले दिनों में कर्नाटक में हिंदी विरोधी आंदोलन हुए थे, उसके पीछे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का दिमाग है। उन्होंने कन्नड़ स्वाभिमान के नाम पर कई संगठनों को पिछले दिनों में खड़ा किया है जो वास्तव में ईसाई मिशनरियों के इशारे पर काम कर रहे हैं। यह बात अक्सर सामने आती रही है कि कर्नाटक में पिछले साढ़े चार साल में सोनिया गांधी के इशारे पर ईसाई मिशनरियों को सरकारी फंड से करोड़ों रुपये बांटे गए।

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