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कैराना की हार और कर्नाटक की जीत में छिपा है 2019 में जीत का मंत्र

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जनता का हाथ प्रधानमंत्री मोदी के साथ है और आज भारत के 75 प्रतिशत भू-भाग पर भारतीय जनता पार्टी और उनके सहयोगी दलों की सरकार है। देश-विदेश की तमाम सर्वे एजेंसियां भी यह बता रही है कि 2019 में नरेन्द्र मोदी ही देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जिस तरह देश सबका साथ-सबका विकास के रास्ते पर चल पड़ा है इससे देश के लोगों का उनपर भरोसा कायम है।

विरोधी चाहे जो कहते रहें, देश की जनता का पूर्ण समर्थन नरेन्द्र मोदी के साथ पग-पग पर रहा। प्रधानमंत्री मोदी अभी भी देश के सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता हैं। सरकार में चार साल पूरा करने के बाद कराए गए टाइम्स मेगा ऑनलाइन पोल के नतीजों में भी ये बात निकलकर आई है। टाइम्स मेगा पोल में शामिल 8,44, 646 लोगों में से दो-तिहाई से ज्यादा यानि 71.9 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वे एक बार फिर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट डालेंगे। वहीं 73.3 प्रतिशत लोगों का मानना है कि आज आम चुनाव हुए तो केंद्र में एक बार फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनेगी। यह पोल टाइम्स ग्रुप की नौ भाषाओं की 9 साइटों पर 23-25 मई के बीच चलाया गया था।

कैराना की हार में छिपा है बीजेपी के विजय का संदेश
कैराना में हुए उपचुनाव में भाजपा को मिली हार को जिस तरीके से बताया जा रहा है सच्चाई इसके उलट है। दरअसल कैराना चुनाव के आंकड़ों का विश्लेषण कहता है कि भाजपा के लिए यह 2019 के लिहाज से बेहतर परिणाम रहा है। गौरतलब है कैराना लोकसभा सीट ऐसी रही है जहां सपा, बसपा, आरएलडी, कांग्रेस और भाजपा का अलग-अलग समय में अपना प्रभाव रहा है। लेकिन इस चुनाव के नतीजों को देखें तो इस बार कुल 9 लाख 38 हजार 742 वोट पड़े। इनमें अलायंस को 4 लाख 81 हजार 618 वोट, जबकि बीजेपी के 4 लाख 36 हजार 564 वोट मिले। यानि जीत हार का अंतर 44 हजार 618 रहा। वोटिंग प्रतिशत का अंतर महज 4.6 प्रतिशत का रहा।

साफ है कि जिन चार दलों का गठबंधन हुआ उसने यहां पूरा जोर लगाया और मामूली अंतर से उनकी जीत हुई। दूसरी ओर वोटिंग प्रतिशत के लिहाज से देखें तो 2017 के विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र में कुल 69.5 प्रतिशत वोटिंग हुई थी जिसमें भाजपा को 38.2 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि संयुक्त दलों को 57 प्रतिशत मत मिले थे। यानि 2017 की तुलना में 2018 में भाजपा ने 15 प्रतिशत वोट बढ़ा लिया है।

वोट प्रतिशत की दृष्टि से देखें तो वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में लगभग 72 प्रतिशत मतदान हुआ था, जिसमें भाजपा को 51 प्रतिशत मत मिले थे, जबकि 2017 में 69.5 प्रतिशत वोटिंग में भाजपा को महज 38 प्रतिशत मत मिले थे। जाहिर है इस चुनाव में 54 प्रतिशत टर्नआउट बेहद कम रहा। जिस प्रकार से मुसलमानों की गोलबंदी हुई और रमजान का महीना होने के कारण इनमें लगभग मुस्लिम समुदाय के लगभग 95 प्रतिशत मत पड़े। एक अनुमान के मुताबिक मुसलमानों ने तवस्सुम के पक्ष में वोट किया होगा।

बहरहाल इस चुनाव में जो वोटिंग टर्नआउट रहा इससे इस बात का अनुमान लगाना आसान है कि यह हिंदू वोट कम हुआ है। मौलवियों, मस्जिदों से एलान किए गए कि भाजपा को हराने में मदद कीजिए। गौरतलब है कि टोटल हिंदुओं का 60 प्रतिशत है। अगर वोटों का विश्लेषण किया जाए तो यह साफ होता है कि हिंदू समुदाय का 77 प्रतिशत मत मृगांका सिंह के पक्ष में गिरे यानि हिंदुओं ने जातियों के दायरे से उठकर भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतदान किया है।

कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी बनाकर जनता ने दिया संकेत
कर्नाटक के चुनाव परिणाम ने संकेत दे दिया है कि प्रदेश की जनता का विश्वास प्रधानमंत्री मोदी पर बना हुआ है और वह 2019 में बेहतर रिजल्ट देने जा रही है। दरअसल 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जहां महज 40 सीटें मिली थी वहां इस बार पार्टी के खाते में 104 से भी ज्यादा सीटें आई हैं। कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) को बुरी तरह पछाड़ते हुए बीजेपी ने 2019 के लोक सभा चुनाव में दक्षिण भारत में बढ़िया प्रदर्शन करने के संकेत दे दिए हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में 122 सीट जीतने वाली कांग्रेस घटकर 78 सीटों पर रह गई है। जाहिर है कांग्रेस यहां अपनी सत्ता नैतिक रूप से गंवा चुकी है। क्योंकि राहुल गांधी की रैलियों वाली जगह पर कांग्रेस ने करीब 75 प्रतिशत सीटें गंवा दीं। सोनिया गांधी द्वारा प्रचार किया गया बीजापुर सिटी भी कांग्रेस हार गई। जबकि वर्ष 2013 के मुकाबले भारतीय जनता पार्टी की सीटों की संख्या में ढाई गुना से भी ज्यादा बढ़ोतरी हुई है।

क्षेत्रीय पार्टियों के दम पर चुनौती नहीं दे पाएगी कांग्रेस
वाम दल, एनसीपी, टीएमसी, एसपी, बीएसपी, आरजेडी जैसी तमाम विपक्षी पार्टियां कभी देश की सत्ता की चाबी हुआ करती थीं। इनमें कई ऐसे दल थे जो किंगमेकर की तरह व्यवहार भी करते थे। हालांकि अब परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है। दरअसल विपक्षी दल भानुमती के कुनबे की तरह हैं। यहां हर किसी का लक्ष्य अलग है, मकसद अलग और विचारों में एकरूपता नहीं है। इससे भी बड़ी बात यह कि अधिकतर दल के नेता स्वयं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मान रहा है। राहुल गांधी खुद को पहले ही पीएम पद के लिए खुद के नाम का एलान कर चुके हैं, वहीं शरद पवार और ममता बनर्जी की महत्वाकांक्षाएं भी जगजाहिर हैं। खबरें तो ये हैं कि मंचासीन हुए 19 में से 11 दलों के शीर्ष नेताओं ने 2019 में गठबंधन की सरकार बनने की सूरत में खुद को पीएम पद के तौर पर पेश करने के लिए भी कमर कस ली है। जाहिर है सामूहिक तौर पर प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देने से पहले ये लोग खुद ही एक दूसरे के लिए चुनौती बने हुए हैं।

कांग्रेस के भ्रष्टाचार को नहीं भूली है भारत की जनता
कांग्रेस का इतिहास घोटाले करने-करवाने का रहा है। मनमोहन सिंह की सरकार को इसलिए जाना पड़ा कि भारत को घोटालों वाला देश कहा जाने लगा था। भारत में घोटालों और भ्रष्टाचार का ट्रेडमार्क कहा जाने वाला यह घोटाला देश की सुरक्षा से संबंधित था, इसलिए इसने पूरे देश के विश्वास को हिलाकर रख दिया था। इसके बाद 2जी स्पैक्ट्रम घोटाला, जिसमें दूरसंचार क्षेत्र में अनुभनहीन कंपनियों को रेवड़ियों की तरह लाइसेंस बांटे गए। कांग्रेस के शासनकाल में और कई घोटाले हुए, जिनमें सत्यम घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला, कोयला घोटाला, हेलीकॉप्टर घोटाला, टाटा ट्रक घोटाला, आदर्श घोटाला जैसे बड़े घोटालों की लंबी फेहरिस्त है। 80 के दशक का बहुचर्चित बोफोर्स घोटाला देशवासी अभी भूले नहीं हैं, जिसके छींटें कांग्रेस के ‘मिस्टर क्लीन’ तक पड़े थे। इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और हिंदुजा सहित कई बड़े नाम सामने आए थे।  

एक नजर कांग्रेस की सरकारों में हुए कुछ प्रमुख घोटालों पर-

कोयला घोटाला (2012)  1.86 लाख करोड़ रुपये
2जी घोटाला (2008)  1.76 लाख करोड़ रुपये
महाराष्ट्र सिंचाई घोटाला 70,000करोड़ रुपये
कामनवेल्थ घोटाला (2010) 35,000 करोड़ रुपये
स्कार्पियन पनडुब्बी घोटाला  1,100 करोड़ रुपये
अगस्ता वेस्ट लैंड घोटाला 3,600 करोड़ रुपये
टाट्रा ट्रक घोटाला (2012) 14 करोड़ रुपये

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