Home विचार बिहार वासियों के जेहन में जिंदा हैं ‘जंगल राज’ की यादें!

बिहार वासियों के जेहन में जिंदा हैं ‘जंगल राज’ की यादें!

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बिहार ने एक बार 02 अप्रैल को एक बार फिर वही दृश्य देखा जो 1990 के दशक में प्रदेश में हर दूसरे दिन देखने को मिलती थीं। दलित आंदोलन के दौरान जमकर हिंसा हुई। आगजनी, हिन्दू देवी देवताओं का अपमान, जगह जगह रेल रोकना, निजी और सरकारी वाहनों को आग लगाना, बच्चों का सिर फोड़ना, महिलाओं का शोषण करने जैसी कई वारदातें बिहार के सभी जिलों में हुई। इस हिंसा में भी आरजेडी कार्यकर्ताओं की साजिश सामने आ रही है।

गौरतलब है कि इससे पहले प्रदेश में रामनवमी के कुछ दिनों पूर्व से ही माहौल बिगाड़ने की सुनियोजित साजिश की गई थी। प्रदेश के दर्जन भर जिलों को सांप्रदायिक तनाव में झोंक दिया गया। पहले तो आरोप भाजपा पर लगे, लेकिन जब 250 से अधिक आरोपियों की गिरफ्तारी हुई तो इनमें अधिकतर आरजेडी के कार्यकर्ताओं का हाथ सामने आया।

हाईकोर्ट ने कहा था ‘जंगल राज’
बिहार को 1990 के बाद के 15 वर्षों को याद करियेगा तो रूह कांप जाएगी। आलम यह था कि प्रदेश का चप्पा-चप्पा अपहरण, हत्या, बलात्कार, चोरी, डकैती, रंगदारी, भ्रष्टाचार जैसी घटनाओं के लिए ही जाना जाता था। तब पटना हाईकोर्ट ने भी बिहार में शासन व्यवस्था को ‘जंगल राज’ कहा था। उस दौर में लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी का शासन था। अब कमान लालू – राबड़ी के छोटे ‘सुपुत्र’ तेजस्वी यादव के हाथ में है।
स्पष्ट है तेजस्वी की अगुआई में हो रहे ऐसे कृत्य लालू-राबड़ी के शासन की याद ताजा कर रहा है।

आइये हम 1990 के बाद के 15 वर्षों के उस अराजक शासन को याद करते हैं, ताकि आने वाले समय में कोई गलती न हो।

अपहरण बन गया था उद्योग
लालू-राबड़ी के शासन में किडनैपिंग को उद्योग का दर्जा मिल गया था। जब जिसे जैसे इच्छा होती थी, बेरोकटोक किसी को उठा लेता था। खासकर, डॉक्टर, इंजीनियर और बिजनेसमेन अपहरणकर्ताओं के निशाने पर रहते थे। साल 1992 से 2004 तक बिहार में किडनैपिंग के 32,085 मामले सामने आए थे।

हत्याओं का चलता था कारखाना
बिहार पुलिस की वेबसाइट के मुताबिक, साल 2000 से 2005 की पांच साल में 18,189 हत्याएं हुईं। इस आंकड़े को ध्यान में रखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि 15 सालों में 50 हजार से ज्यादा लोग मौत के घाट उतार दिए गए।

चोरी और सीनाजोरी का था आलम
लालू यादव ने 2002 में अपनी दूसरी बेटी रोहिणी की शादी में खुल्लम-खुल्ला सत्ता का बेजा इस्तेमाल किया था। पटना के तमाम कार शो रूम से नई कारें जबरन उठा ली गईं थीं और दुकानों से फ़र्नीचर हथिया लिए गए थे।

 

शासन के संरक्षण में होते थे बलात्कार
लालू-राबड़ी के शासन में राबड़ी के भाइयों- साधु यादव और सुभाष यादव ने आतंक मचा रखा था। आरोप है कि साधु यादव ने अपने ही मित्र गौतम के गर्लफ्रेंड के साथ बलात्कार किया था। गौतम और उसकी प्रेमिका की हत्या भी कर दी गई थी, लेकिन शासन ने उस केस को सदा-सदा के लिए दबा दिया था।

नरसंहारों का चलता रहा सिलसिला
लालू-राबड़ी के राज में बिहार जातीय हिंसा की आग में झुलस गया था। भोजपुर का बथानी टोला नरसंहार, जहानाबाद का लक्ष्णपुर बाथे कांड, अरवल का शंकरबिगहा कांड, औरंगाबाद के मियांपुर गांव का नरसंहार जैसी घटनाएं आज भी जेहन में ताजा हैं।

राजनीति का अपराधीकरण
लालू-राबड़ी शासन में शहाबुद्दीन, सूरजभान, पप्पू यादव जैसे कई नेताओं का अपने-अपने इलाके में आतंक व्याप्त था। उनका कहना कानून था, उनका आदेश ही शासन है। पटना में रीतलाल यादव के आतंक को भला कौन भूल सकता है।

जाति-जमात में बंट गया था समाज
हमको ‘परवल’ बहुत पसंद है और ‘भूरा बाल साफ करो’… जैसे नारों ने बिहार में जातीय संघर्ष को बढ़ा दिया था। परवल का पूरा-पूरा मतलब पाण्डेय यानि ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य यानी बनिया और लाला से लगाया जाता है। वहीं भूरा का मतलब भूमिहार और राजपूत से और बाल से तात्पर्य ब्राह्मण और लाला जाति से लगाया जाता है।

घोटालों की संस्कृति चढ़ी थी परवान
लालू-राबड़ी के शासन काल में गरीबों की हकमारी की गई। कल्याणकारी योजनाओं के पैसे डकार लिए गए। अलकतरा घोटाला, चारा घोटाले के बारे में तो सभी जानते हैं। आज लालू प्रसाद यादव सजायाफ्ता हैं और चुनाव भी नहीं लड़ सकते। इसलिए, अपने दोनों बेटों को राजनीति के मैदान में उतार चुके हैं, लेकिन लालू-राबड़ी के सुपुत्रों का भी अंदाज भी ‘जंगल राज’ वाला ही है!

 

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