राफेल पर फैलाए जा रहे झूठ के बीच वायुसेना प्रमुख बी एस धनोआ ने डील के महत्व और फाइटर की बारीकियों को सामने लाकर विरोधियों का मुंह बंद कर दिया है। धनोआ ने कहा कि- “राफेल अच्छा विमान है, जब यह भारतीय उपमहाद्वीप में आएगा तो काफी लाभदायक साबित होगा। हमें अच्छा पैकेज मिला है, हमें इस सौदे में कई फायदे मिले हैं।” इतना ही नहीं वायुसेना प्रमुख ने राफेल डील को देश की सुरक्षा के लिहाज से गेम चेंजर भी बताया।
धनोआ ने कहा कि- “सरकार ने बोल्ड कदम उठाते हुए 36 राफेल फाइटर विमान खरीदा। एक उच्च क्षमता वाला और उच्च तकनीक से लैस लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना को दिया गया है, ताकि हम अपनी क्षमता को बढ़ा सके।”
रिलायंस डिफेंस को फायदा पहुंचाने के कांग्रेस के बेबुनियाद आरोप पर वायुसेना प्रमुख ने कहा कि- “डसॉल्ट एविएशन को ऑफसेट साझेदार का चयन करना था और इसमें सरकार या भारतीय वायु सेना की कोई भूमिका नहीं थी।” उन्होंने कहा कि- “HAL के साथ अनुबंध के बाद भी डिलिवरी में देरी हुई है। सुखोई-30 की डिलीवरी में 3 साल, जगुआर में 6 साल, एलसीए में 5 साल और मिराज 2000 की डिलिवरी में दो साल की देरी हो चुकी है।” इससे पहले नरेन्द्र मोदी सरकार के फैसले का समर्थन करते हुए धनोआ ने कहा था कि- “राफेल और एस-400 देकर सरकार भारतीय वायुसेना की ताकत बढ़ा रही है ताकि नुकसान की भरपाई हो सके।”
ये पहली बार नहीं है जब राफेल पर झूठ फैलाने की वजह से कांग्रेस की किरकिरी हुई। पहले भी कांग्रेस को राफेल पर मनगढ़ंत बातें फैलाने की वजह से फजीहत झेलनी पड़ी है।
डील को लेकर हाल में आए कुछ महत्वपूर्ण और भरोसेमंद लोगों के बयानों से भी इसे समझा जा सकता है। कांग्रेस पार्टी के वर्षों से सहयोगी रहे दलों ने भी अब राफेल डील को लेकर झूठ फैलाने और भ्रम पैदा करने की कारगुजारी से राहुल गांधी को बाज आने को कहा है। यूपीए की सहयोगी एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार तो राफेल डील की शुचिता पर सवाल उठाने वालों की मंशा पर ही सवाल उठा चुके हैं। हाल ही में उन्होंने कहा है कि- “मुझे नहीं लगता कि डील को लेकर जनता के मन में पीएम मोदी की नीयत पर किसी तरह का कोई शक है।”
पवार के बयान से विरोधियों पर गिरा बम !
पवार की टिप्पणी से उन्हीं की पार्टी के दो नेताओं संस्थापक सदस्य तारिक अनवर और महासचिव मुनाफ हकीम को इतनी मिर्ची लगी कि उन्होंने पार्टी से इस्तीफा तक दे दिया। उधर एनसीपी की सहयोगी कांग्रेस को भी झटका लगा और उसने सच बोलने पर पवार से नाखुशी जाहिर कर दी। मझे हुए राजनेता शरद पवार ने तुरंत डैमेज कंट्रोल की कार्रवाई के तहत कहा कि ‘‘कुछ लोगों ने मेरी आलोचना की कि मैंने पीएम मोदी का समर्थन किया है। मैंने उनका समर्थन नहीं किया है और ऐसा मैं कभी नहीं करूंगा।’’ पवार के बाद वाले बयान को उनकी सियासी मजबूरी के परिप्रेक्ष्य में आसानी से समझा जा सकता है।
पीएम मोदी को बदनाम करने के लिए विदेशी शक्तियों से हाथ मिला रहे हैं राहुल ?
दरअसल पीएम मोदी के साढ़े चार साल के बेदाग, भ्रष्टाचार मुक्त और विकासोन्मुखी कार्यकाल से मुद्दा विहीन हो चुकी कांग्रेस हताशा में राफेल को लेकर जिस तरीके से झूठ और भ्रम फैला रही है उससे उसकी और ज्यादा फजीहत हो रही है। लेकिन उससे भी बड़ा सवाल ये है कि क्या राहुल गांधी भारत सरकार को बदनाम करने के लिए विदेशी शक्तियों से हाथ मिलाने में भी परहेज नहीं कर रहे? सवाल इसलिए है क्योंकि 21 सितंबर को राफेल को लेकर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का जो बयान आया था उससे पहले 30 अगस्त को राहुल गांधी ने एक ट्वीट किया था। अपने ट्वीट में राहुल ने लिखा था- “वैश्विक भ्रष्ट्राचार। सच में राफेल विमान बहुत तेज और दूर उड़ता है, यह आने वाले एक-दो हफ्तों में बंकर को तबाह करने वाले बम गिरा सकता है।”
Globalised corruption. This #Rafale aircraft really does fly far and fast! It’s also going to drop some big bunker buster bombs in the next couple of weeks.
Modi Ji please tell Anil, there is a big problem in France. https://t.co/tvL7HMBPFN
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 31, 2018
राहुल के इस ट्वीट के तीन हफ्ते बाद ओलांद ने फ्रांस के एक मीडिया हाउस मीडिया पार्ट को दिए इंटरव्यू में कहा था कि राफेल बनाने वाली कंपनी डसॉल्ट एविएशन के पास रियालंस डिफेंस के अलावा भारत सरकार ने दूसरा कोई विकल्प नहीं दिया था। सवाल ये है कि राहुल गांधी को ओलांद के इस इंटरव्यू के तीन हफ्ते पहले ही कैसे पता था कि वो इस तरह का बयान देंगे। इससे पहले डोकलाम में भारत और चीन की सेनाएं जब आमने-सामने खड़ी थीं तो राहुल गांधी ने गुपचुप तरीके से चीन के राजदूत से जाकर मुलाकात कर ली थी।
हैरानी देखिए कि मीडिया पार्ट को इंटरव्यू देने के दो दिन के भीतर ही फ्रांस्वा ओलांद अपने बयान से पलट भी गए। इस बारे में पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि सौदे के बारे में मुझसे नहीं बल्कि डसॉल्ट एविएशन से पूछा जाए। तो क्या ओलांद का इंटरव्यू भारत के खिलाफ किसी रणनीति का हिस्सा था? इसका सही-सही जवाब तो राहुल गांधी ही दे पाएंगे। बहरहाल फ्रांस की सरकार ने पूरे मामले पर अपना आधिकारिक पक्ष रख स्थिति स्पष्ट कर दी। फ्रांस के राष्ट्रपति इम्मानुएल मैक्रों ने कहा कि- “ये डील दो देशों के बीच थी और इसमें तीसरा कोई भी पक्ष शामिल नहीं था।” उधर डसॉल्ट एविएशन ने भी बयान जारी कर कहा है कि उसने ऑफसेट पार्टनर के रूप में खुद ही रिलायंस का चुनाव किया था। डसॉल्ट एविएशन ने बयान जारी कर कहा है कि इसने ‘मेक इन इंडिया’ के तहत रिलायंस डिफेंस को अपना पार्टनर चुना है।
देश की सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक है कांग्रेस का झूठ
यहां ये जानना जरूरी है कि राफेल को लेकर राजनीतिक नफे के लिए फैलाया जा रहा कांग्रेस का झूठ भारत के लिए कितना घातक है। दरअसल भारतीय वायुसेना को आखिरी बार साल 1996 में रूस से सुखोई 30 एमकेआई मिले थे। पुराने हो चुके मिग-21 और मिग-27 विमान बेड़े से हटाए जा रहे हैं। ऐसे में वायुसेना अपने बेड़े में फाइटर्स की जरूरत लंबे समय से महसूस कर रही थी, लेकिन राजनीति को मोटी कमाई का जरिया मानने वाली कांग्रेस को देश की सुरक्षा से भला कब सरोकार रहा? अब जबकि मोदी सरकार ने वायुसेना की जरूरतों को देखते हुए सबसे बेहतर विकल्प के तौर पर राफेल डील की तो कांग्रेस उसे लेकर झूठ पर झूठ बोल रही है।
झूठ नंबर 1- मोदी सरकार ने यूपीए की डील को बदला
राहुल गांधी अपने अलग-अलग बयानों में बेखटके बताते रहे हैं कि यूपीए सरकार ने डसॉल्ट एविएशन के साथ हुए करार में राफेल की कितनी कीमत तय की थी। कभी वो एक राफेल की कीमत कभी 520 करोड़ बताते हैं, कभी 526 करोड़, कभी 540 करोड़, कभी 700 करोड़ तो कभी 750 करोड़। एक बार तो उन्होंने एक राफेल की कीमत 526 रुपये भी बता दी थी। यूपीए सरकार के जमाने में हुए करार के हवाले से राफेल की कीमत को लेकर राहुल गांधी के बयानों में आखिर इतना विरोधाभास क्यों है? वो इसलिए क्योंकि यूपीए सरकार के दौर में राफेल को लेकर डसॉल्ट कंपनी के साथ किसी करार पर दस्तखत हुआ ही नहीं था। यूपीए सरकार ने सिर्फ बातचीत की जो कभी करार तक पहुंच ही नहीं सका। 2013 में विदेश मंत्रालय की ओर से जारी एक आधिकारिक बयान से इसकी पुष्टि भी हो जाती है। 2013 में विदेश मंत्रालय की बयान जारी कर कहा था कि “भारत सरकार ने फ्रांस की कंपनी डसॉल्ट एवियेशन के राफेल का चयन कर लिया है। भारतीय वायु सेना के लिए126 MMRCA(राफेल फाइटर्स) की खरीद को लेकर डसॉल्ट एविएशन के साथ बातचीत जारी है।” 2013 की MEA की इस ब्रीफिंग से साफ हो जाता है कि राफेल को लेकर बातचीत तो जरूर हो रही थी, लेकिन वो डील लॉक नहीं हो सकी थी और जब डील अंजाम तक पहुंची ही नहीं तो कीमत कहां से तय हो गई। राफेल की कीमत को लेकर राहुल गांधी के विरोधाभासी बयानों या कहें सफेद झूठ की शायद यही वजह है।
झूठ नंबर 2- सरकार ने डील में प्रक्रिया का पालन नहीं किया
कांग्रेस के नेता मौजूदा सरकार पर राफेल डील को लेकर एक झूठा आरोप बार-बार लगाते हैं कि साल 2015 में प्रधानमंत्री फ्रांस गए और राफेल की खरीद को लेकर करार कर लिया। इस आरोप में भी कांग्रेस या कहें राहुल गांधी का बचकाना पक्ष ही बेपर्दा हो रहा है जिसकी वजह से वो बातचीत और करार के बीच के अंतर को समझ नहीं रहे या फिर जानबूझ कर नादान बनने की कोशिश कर रहे हैं। देश की जनता को ये जानना जरूरी है कि अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री फ्रांस जरूर गए थे और राफेल को लेकर बातचीत भी की। दरअसल दो दशक तक वायुसेना के बेड़े में किसी नए फाइटर्स के शामिल नहीं होने की वजह से उसकी तत्काल और सख्त जरूरत महसूस की जा रही थी। वायुसेना सरकार से लगातार इसकी मांग भी कर रही थी। इसी जरूरत को देखते हुए प्रधानमंत्री ने 2015 में फ्रांस सरकार से जल्द से जल्द राफेल की आपूर्ति के लिए बातचीत की और फिर हिन्दुस्तान लौट कर उसकी आधिकारिक प्रक्रिया शुरू करवाई। एक-एक जरूरी प्रक्रिया से गुजरते हुए यहां तक कि रक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति से मंजूरी मिलने के बाद इस डील को सितंबर 2016 में कागज पर उतारा गया। इस बात की जानकारी रक्षा मंत्रालय 7 फरवरी 2018 को लिखित तौर पर दे चुका है।
झूठ नंबर 3- कीमत छिपाई जा रही है
कांग्रेस बार-बार देश को गुमराह कर रही है कि सरकार राफेल की कीमतों को छुपा रही है। दरअसल देश के लिए होने वाले हर बड़े सौदे में घोटाले की आदी रही कांग्रेस ये मानने को तैयार हो ही नहीं सकती कि कोई सरकार देशहित में भी रक्षा सौदा कर सकती है। 7 फरवरी 2018 को ही रक्षा मंत्रालय ने साफ कर दिया था कि सरकार ने संसद को राफेल की अनुमानित कीमत की जानकारी दे दी है। जहां तक डीटेल ब्रेकअप की बात है तो ये पिछली सरकारें भी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए नहीं देती थीं। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर डीटेल ब्रेकअप को सार्वजनिक कर दिया गया तो दुश्मन देशों को ये पता लग जाएगा कि राफेल में क्या-क्या खासियतें हैं और वो उनका तोड़ ढूंढने में जुट जाएंगी। साफ है कि देश की सुरक्षा के प्रति मौजूदा सरकार की निष्ठा को कांग्रेस शिद्दत से समझती है, इसीलिए वो इस मुद्दे को लेकर बेलौस झूठ बोलती जा रही है।
झूठ नंबर 4- एचएएल की जगह रिलायंस डिफेंस को दिया कॉन्ट्रैक्ट
कांग्रेस के इस झूठ का पर्दाफाश तो डसॉल्ट एविएशन और फ्रांस की सरकार ने कर दिया है। इतना ही नहीं न्यूज एजेंसी रॉयटर की 2013 की रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया था कि डसॉल्ट एविएशन एचएएल को राफेल की मैन्यूफैक्चरिंग के लायक नहीं मानती। इसके अलावा रिलायंस के साथ उसके दूसरे व्यापारिक हित भी जुड़ रहे थे। डसॉल्ट एविएशन वार्षिक रिपोर्ट 2017 में कहा गया है कि रिलायंस एयरपोर्ट डेवलपर्स लिमिटेड में 35 प्रतिशत शेयर लेकर उसने भारत में अपनी मौजूदगी बढ़ाई। सच्चाई यही है तो फिर क्यों राहुल गांधी बार-बार ये झूठ फैला रहे हैं कि सरकार ने राफेल का कॉन्ट्रैक्ट एचएएल से छीनकर रिलायंस को दिया।