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प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत बना दुनिया का तीसरा सबसे भरोसेमंद देश

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सशक्त नेतृत्व में भारत आज हर क्षेत्र में शीर्ष पर पहुंच रहा है। व‌र्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक से ठीक पहले आए एडेलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर के सर्वे से यह साफ होता है कि भारत दुनिया के तीसरे सबसे भरोसेमंद देशों में से एक है। सर्वे में कहा गया है कि भारत भरोसेमंद राष्ट्रों की सूची में अपनी जगह कायम रखने में कामयाब रहा है। सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि वहां की सरकार, बिजनेस, गैर सरकारी संगठन और मीडिया इन चार क्षेत्रों में लोगों का विश्वास बना हुआ है। 28 देशों की इस सूची में चीन पहले नंबर पर है। इंडोनेशिया सूची में दूसरे स्थान पर रहा, जबकि भारत का स्थान तीसरा रहा। यह सूची 28 देशों के 33,000 से ज्यादा लोगों पर किए गए ऑनलाइन सर्वेक्षण के आधार पर तैयार की गई।

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश का दुनिया में जो स्थान बना है वह निश्चित ही भारत के बढ़ते प्रभुत्व को बयां करता है। प्रधानमंत्री मोदी के कारण दुनियाभर में भारत का रुतबा बढ़ा है

चीनी मीडिया ने 2017 को ‘ब्रांड मोदी’ का साल बताया
चीन की सरकारी प्रेस एजेंसी जिन्हुआ ने साल 2017 को ब्रांड मोदी का साल घोषित किया है। एजेंसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए उनकी नेतृत्व क्षमता को आकर्षित करने वाला बताया है। जिन्हुआ में प्रकाशित लेख का शीर्षक है ‘Modi wave works magic for India’s ruling BJP in 2017’। भारत में मोदी लहर का जिक्र करते हुए इस लेख में कहा गया है कि, इस वर्ष जितने भी राज्यों में चुनाव हुए हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी के स्टार प्रचारक, भीड़ को खींचने वाले और विरोधियों के हमलों को कुंद करने वाले नेता साबित हुए हैं। चीनी मीडिया के मुताबिक यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी 2014 में सत्ता में आने के बाद ज्यादातर राज्यों में सरकार बनाने में सफल हुई है। चीनी मीडिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बीजेपी के तरकश का ऐसा हथियार करार दिया है, जिसे परास्त करने का हौसला फिलहाल किसी में नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी की छवि साहसिक और निर्णायक फैसले लेने वाले नेता की है। चीनी न्यूज एजेंसी के मुताबिक फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के सामने कोई चुनौती नजर नहीं आ रही है।

विश्व आर्थिक मंच सम्मेलन में मुख्य अतिथि बनने वाले पहले प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र मोदी
इस साल 23 से 26 जनवरी के बीच स्विटजरलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक मंच का सालाना सम्मेलन हो रहा है। इस सम्मेलन में विश्व भर के नेता, दुनिया भर की कंपनियों की बड़ी हस्तियां, नीति निर्धारक और सामाजिक क्षेत्र से जुड़े लोग हिस्सा ले रहे हैं। पिछले दो दशकों के बाद यह मौका है जब भारत से खुद प्रधानमंत्री इसमें हिस्सा लेने रहे हैं। मुख्य अतिथि के रूप में वहां पहुंचने वाले श्री नरेन्द्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं, क्योंकि 70 वर्षों में अबतक किसी भारतीय प्रधानमंत्री को यह अवसर नहीं मिला है।

UN में दिखा भारत का दबदबा
प्रधानमंत्री मोदी के सक्षम नेतृत्व की बदौलत संयुक्त राष्ट्र में भारत को बड़ी जीत तब मिली जब दलवीर भंडारी लगातार दूसरी बार अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट ऑफ जस्टिस में जज बन गए। दलवीर भंडारी का मुकाबला ब्रिटेन के क्रिस्टोफर ग्रीनवुड से था, लेकिन आखिरी दौर में अपनी हार देखते हुए उन्हें नाम वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। गौर करें तो यह जीत भंडारी की नहीं बल्कि भारत के उस बढ़े कद की है जो पिछले तीन सालों में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में बढ़ा है। कभी दुनिया पर राज करने वाला ब्रिटेन आज भारत के सामने बौना साबित हो रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी के प्रयास से ‘अंतरराष्ट्रीय सौर संगठन’ बना
सारी दुनिया ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के लिए चिंता जता रही थी, लेकिन भारत की पहल पर ही वैश्विक स्तर पर अमेरिका और फ्रांस के साथ इसके लिए इनोवेशन की तरफ कदम बढ़ाया गया। 26 जनवरी, 2016 को गुरुग्राम में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने ‘इंटरनेशनल सोलर अलायंस’ (आईएसए) के अंतरिम सचिवालय का उद्घाटन किया तो एक ‘नये अध्याय’ की शुरुआत हुई। दरअसल ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई पहल का परिणाम है और इसकी घोषणा भारत और फ्रांस द्वारा 30 नवंबर 2015 को पेरिस में की गई थी। आईएसए के गठन का लक्ष्य सौर संसाधन समृद्ध देशों में सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना और इसे बढ़ावा देना है। अब तक इस मंच से दुनिया के 36 से अधिक देश जुड़ चुके हैं।

योग को वैश्विक पहचान दिलाई
21 जून, 2015- ये वो तारीख है जो स्वयं ही एक यादगार तिथि बनकर इतिहास का हिस्सा बन गई है। इसी दिन अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का आगाज हुआ और पूरी दुनिया में भारत का डंका बजने लगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से योग को आज पूरी दुनिया में एक नई दृष्टि से देखा जाने लगा है। दुनिया के 192 देशों के लोगों ने भारत की प्राचीन विरासत को अपनाया तो हर हिंदुस्तानी का मस्तक ऊंचा हो गया। पूरा विश्व जब एक साथ सूर्य नमस्कार और अन्य योगासनों के जरिये ‘स्वस्थ तन और स्वस्थ मन’ के इस अभियान से जुड़ा तो हर एक भारतवासी के लिए ये अद्भुत अहसास का दिन बन गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुहिम से आज भारत की इस प्राचीन विरासत की ताकत का अहसास पूरी दुनिया को हो रहा है।

डोकलाम पर दुनिया ने देखा भारत का सामर्थ्य
अमेरिका के प्रतिष्ठित थिंक-टैंक हडसन इंस्टिट्यूट के सेंटर ऑन चाइनीज स्ट्रैटजी के डायरेक्टर माइकल पिल्स्बरी नो कहा कि चीन की बढ़ती ताकत के समक्ष मोदी अकेले खड़े हैं। दरअसल ये टिप्पणी उन्होंने ‘वन बेल्ट, वन रोड’ परियोजना को ध्यान में रखते हुए कही थी। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी और उनकी टीम चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट के खिलाफ मुखर रही है। दरअसल अमेरिकी थिंक टैंक का मानना बिल्कुल सही है, क्योंकि भारत ने चीन को डोकलाम विवाद में भी अपनी दृढ़ता का परिचय करा दिया है और चीन को अपनी सेना को वापस बुलाने पर मजबूर होना पड़ा। चीन ने भारत को युद्ध की भी धमकी दी लेकिन पीएम मोदी की नीतियों से चीन अकेला हो गया और पश्चिमी देशों ने उसे संयम बरतने की सलाह दी। अमेरिका, फ्रांस, जापान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत के साथ खड़े रहे।

आतंकवाद के खिलाफ विश्व को किया एकजुट 
पीएम मोदी दुनिया के हर मंच से आतंकवाद के विरुद्ध मुखर रहे हैं। उन्होंने आतंकवाद के मसले पर एक के बाद एक हमले बोले और विश्व के अधिकतर देशों को ये समझाने में कामयाब रहे हैं कि दुनिया में अच्छा और बुरा आतंकवाद नहीं होता, बल्कि आतंकवाद सिर्फ आतंकवाद है। आज अमेरिका, रूस, जापान, जर्मनी, यूरोपियन यूनियन और इजरायल जैसे देश भारत के इस पक्ष के साथ खड़े हैं। कश्मीर में हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों पर अमेरिकी रोक और सैयद सलाहुद्दीन जैसे आतंकियों पर बैन भारत के बढ़े हुए प्रभुत्व का ही परिणाम है। दरअसल विश्व के कई देश आतंकवाद और कट्टरपंथ से परेशान हैं जिसे पीएम मोदी ने दुनिया के सामने चुनौती के तौर पर पेश किया है। दुनिया के अधिकतर देश पीएम मोदी के आतंकवाद विरोधी अभियान के साथ हैं।

अंतरिक्ष के माध्यम से कूटनीति की नई उड़ान 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उम्दा कूटनीति की मिसाल है दक्षिण एशिया संचार उपग्रह। इसकी पेशकश उन्होंने 2014 में काठमांडू में हुए सार्क सम्मेलन में की थी। यह उपग्रह सार्क देशों को भारत का तोहफा है। सार्क के आठ सदस्य देशों में से सात यानी भारत, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव इस परियोजना का हिस्सा बने जबकि पाकिस्तान ने अपने को इससे यह कहकर अलग कर लिया कि इसकी उसे जरूरत नहीं है वह अंतरिक्ष तकनीक में सक्षम है। 5 मई 2017 के सफल प्रक्षेपण के बाद इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने जिस तरह खुशी का इजहार करते हुए भारत का शुक्रिया अदा किया उससे उपग्रह से जुड़ी कूटनीतिक कामयाबी का संकेत मिल जाता है। लेकिन पाकिस्तान ने अपने अलग-थलग पड़ने का दोष भारत पर यह कहते हुए मढ़ दिया कि भारत परियोजना को साझा तौर पर आगे बढ़ाने को राजी नहीं था।

विश्व को पाकिस्तान का असली चेहरा दिखाया
मोदी सरकार की स्पष्ट और दूरदर्शी विदेशनीति के प्रभाव से पाकिस्तान विश्व बिरादरी में अलग-थलग पड़ गया है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति में ऐसा घिरा है कि उसे विश्व पटल पर भारत के खिलाफ अपने साथ खड़ा होने वाला कोई एक सहयोगी देश नहीं मिल रहा। चीन तक भारत के खिलाफ उसका साथ देने को तैयार नहीं है। हाल में ही जब चीन ने पाकिस्तान की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें पाकिस्तान ने भारत पर ओबीओआर को नुकसान पहुंचाने के लिए भारत की साजिश की बात कही थी। दूसरी ओर अमेरिका की अफगान नीति से उसे बाहर किया जा चुका है तथा वह पाकिस्तान से सहयोग में भी लगातार कटौती कर रहा है। पाक को आतंकवाद का गढ़ कहते हुए अफगानिस्तान और बांग्लादेश भी अब पाकिस्तान का साथ पूरी तरह से छोड़ चुके हैं।

सर्जिकल स्ट्राइक से दुनिया ने जानी भारत की क्षमता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का दुनिया में जो स्थान बन गया है वह निश्चित ही भारत के बढ़ते प्रभुत्व को बयां करता है। जम्मू-कश्मीर के उरी में 18 सितंबर, 2016 को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने 29 सितम्बर 2016 को सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों और लॉन्चपैठ को तबाह किया तो विश्व समुदाय भारत के साथ खड़ा रहा। इस के साथ ही पहली बड़ी सफलता 28 सितंबर को तब मिली जब पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन के बहिष्कार की घोषणा के तुरंत बाद तीन अन्य देशों (बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान) ने उसका समर्थन करते हुए सम्मेलन में ना जाने की बात कही। वहीं नेपाल ने सम्मेलन की जगह बदलने का प्रस्ताव दिया और पाकिस्तान के आंतकवाद के कारण सार्क सम्मेलन न हो सका। इसके अलावा चीन ने भी पाक के द्वारा कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग पर इसे द्विपक्षीय मामला कहकर कन्नी काट ली।

सुरक्षा परिषद की सदस्यता के लिए बढ़ाया भारत का समर्थन
2014-15 में प्रधानमंत्री मोदी ने विभिन्न देशों की यात्राएं कीं। कई लोगों ने इन यात्राओं पर तंज भी कसे और कुछ ने तो उन्हें ‘एनआरआई प्रधानमंत्री’ तक कह डाला, लेकिन इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नुख्ताचीनी पर बिना ध्यान दिये अपनी यात्रा को व्यापक बना रहे थे। इन यात्राओं में वे तीन प्रमुख एजेंडों के साथ आगे बढ़ रहे थे। अलग-अलग देशों के साथ संबंधों में सुधार, निवेश आमंत्रित करने और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भारत की स्थायी सीट के लिए समर्थन जीतना उनका प्रमुख उद्देश्य था। दरअसल भारतीय इतिहास में कोई और प्रधानमंत्री नहीं जिन्होंने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए इतनी मेहनत की है। अमेरिका, जर्मनी, रूस, फ्रांस और जापान जैसे देशों के राजदूत और नेताओं को भारत के पक्ष में लाकर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लिए लगभग सभी देशों का समर्थन हासिल कर लिया। यह समर्थन इस अंतरराष्ट्रीय मंच की स्थिति के लिए भारत की पात्रता दिखाने के उनके प्रयासों का प्रत्यक्ष परिणाम था।

जलवायु परिवर्तन पर भारत के रुख का दुनिया ने माना लोहा
जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर जहां विश्व के देश अपने वैश्विक हितों को छोड़ अपने हितों को देख रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर पहल की। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर विश्व में आस जगाई कि वे इस मामले में नेतृत्व कर सकते हैं। पीएम मोदी की इस पहल ने न सिर्फ दुनिया में भारत की साख मजबूत की बल्कि संसार को पर्यावरण के मामले में एक पॉजिटिव सोच भी दी। दरअसल पीएम मोदी की इस पहल से दुनिया इसलिए चकित रह गई क्योंकि भारत एक विकासशील देश है और प्रदूषण के पैमाने पर भारत का रिकॉर्ड बेहतर नहीं है। लेकिन भारत ने ऊर्जा क्षेत्र में एक से बढ़कर एक बदलाव किए हैं। ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2016 और 2017 को समाप्त हुए दो वित्तीय वर्षों में कोयला खपत में 2.2 प्रतिशत की औसत वृद्धि हुई है। जबकि इससे पहले 10 वर्षों में 6 प्रतिशत से अधिक की औसत वृद्धि हुई थी।

NSG की सदस्यता के लिए भी बढ़ाया भारत का समर्थन
भारत को एनएसजी (न्यूक्लीयर सप्लायर ग्रुप) की सदस्यता मिलेगी या नहीं इस पर देश ही नहीं पूरी दुनिया की नजर है। यदि भारत को सदस्यता मिलती है तो हम उस एलीट न्यूक्लीयर ग्रुप में शामिल हो जाएंगे जिसमें फिलहाल दुनिया के केवल 48 देश हैं। भारत का एनएसजी में शामिल होना कितना जरूरी है यह इसी बात से समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस देश में जा रहे हैं वहां एनएसजी की सदस्यता के लिए समर्थन जुटा रहे हैं। अगर भारत को एनएसजी की सदस्यता मिल जाती है तो सबसे बड़ा फायदा उसे ये होगा कि उसका रुतबा बढ़ जाएगा। दरअसल भारत ये चाहता है कि उसे एक परमाणु हथियार संपन्न देश माना जाए। हालांकि चीन भारत की एंट्री का विरोध कर रहा है, लेकिन दुनिया के अधिकतर देश भारत के साथ हैं।

यमन संकट के दौरान विश्व ने माना भारत का लोहा 
जुलाई 2015 में यमन गृहयुद्ध की चपेट में था और सुलगते यमन में पांच हजार से ज्यादा भारतीय फंसे हुए थे। बम गोलों और गोलियों के बीच हिंसाग्रस्त देश से भारतीयों को सुरक्षित निकालना मुश्किल लग रहा था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कुशल नेतृत्व और विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह के सम्यक प्रबंधन और अगुआई ने कमाल कर दिया। भारतीय नौसेना, वायुसेना और विदेश मंत्रालय के बेहतर समन्वय से भारत के करीब पांच हजार नागरिकों को सुरक्षित निकाला गया वहीं 25 देशों के 232 नागरिकों की भी जान बचाने में भारत को कामयाबी मिली। इस सफलता ने विश्वमंच पर भारत का लोहा मानने के लिए सबको मजबूर कर दिया ।

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