Home विपक्ष विशेष कर्नाटक में मुस्लिम तुष्टिकरण कांग्रेस को पड़ रहा है भारी

कर्नाटक में मुस्लिम तुष्टिकरण कांग्रेस को पड़ रहा है भारी

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कर्नाटक में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है कांग्रेस पार्टी के पाप भी उसके सामने आते जा रहे हैं। लोकतंत्र में जनता बहुत समझदार होती है, पांच वर्ष बाद मतदान के समय एक-एक जुल्म का बदला लेती है। कर्नाटक में भी यही हो रहा है। कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने जिस बेशर्मी के साथ हिंदुओं के साथ भेदभाव किया और अपने कार्यकाल में सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति की, अब जनता उसका बदला चुका रही है। कर्नाटक के कई गांवों में हिंदुओं ने पोस्टर लगा दिए हैं कि ‘ये हिंदू का घर है और यहां कांग्रेस का आना मना है।’

कांग्रेस नेताओं के घुसने पर लगाई पाबंदी
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के कारनामों की वजह से पहले से ही कांग्रेस पार्टी परेशानी में है, अब हिंदुओं के विरोध ने कांग्रेस नेताओं को सकते में डाल दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार राज्य की बंतवाल विधानसभा सीट के कन्यान गांव में ग्रामीणों ने कन्नड़ भाषा में इसी तरह के पोस्टर लगाए हुए हैं। बंतवाल सीट से राज्य सरकार में मंत्री बी रामनाथ राय चुनाव लड़ रहे हैं। दरअसल यह पूरा मामला कुछ साल पहले एक लड़की के धर्म परिवर्तन से जुड़ा है। ज्ञानश्री नाम की इस लड़की ने घर से भाग कर अपने प्रेमी से शादी रचा ली थी। इसके बाद ज्ञानश्री ने अपना धर्म परिवर्तन कर इस्लाम कबूल कर लिया था। लड़की के परिवार वालों और गांव के लोगों ने आरोप लगाया है कि कुछ कांग्रेसी नेताओं ने जबरदस्ती लड़की को इस्लाम धर्म में परिवर्तित कराया। इस घटना के बाद गांव वालों ने तय किया कि अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सबक सिखाना है। गांव के लोगों ने कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया है और उन्हें वोट मांगने के लिए अपने घरों पर ना आने की हिदायत दी है।

कांग्रेस ने कर्नाटक में जिस तरह से सरकार को चलाया है और समाज के बीच भेदभाव का जो माहौल बनाया है, उसके बाद कांग्रेस पार्टी का यही हश्र होना था। आईए आपको बताते हैं किस तरह कांग्रेस पार्टी की सरकार ने कर्नाटक में धर्म और जाति के आधार पर लोगों को बांटा और उसका राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की।

तुष्टिकरण की राजनीति में लगी राज्य सरकार
कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के पास विकास के नाम पर तो कुछ दिखाने के लिए है नहीं, ऐसे में वो चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस पार्टी के पुराने हथकंडे, मुस्लिम तुष्टिकरण को हवा देने में लगे रहे। कर्नाटक में एक तरफ टीपू सुल्तान को लेकर राज्य सरकार लोगों की भावनाएं भड़का कर मुस्लिमों को अपने पाले में करने का खेल खेला, वहीं दूसरी तरफ अल्पसंख्यकों के खिलाफ दर्ज मुकदमों को वापस ले लिया। जनवरी, 2018 में कर्नाटक सरकार ने एक अधिसूचना जारी की, जिसमें अल्पसंख्यकों के खिलाफ पिछले 5 सालों में दर्ज सांप्रदायिक हिंसा के केस वापस लिए जाने का आदेश दिया गया। साफ है कि यह ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ की वजह से किया गया।

कर्नाटक के लिए अलग झंडे की सियासत
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को पता है कि विकास और जनहित का कोई काम दिखाकर तो चुनाव नहीं जीता जा सकता है। इसलिए वह ऐसी बातों को हवा देने में लगे हैं, जिनमें राज्य के निवासियों की भावनाओं पर असर हो और वे कांग्रेस के पक्ष में झुक जाएं। चुनाव से पहले सीएम सिद्धारमैया ने कर्नाटक के लिए अलग झंडे का शिगूफा छोड़ा। देश में सिर्फ जम्मू-कश्मीर ही ऐसा राज्य हैं जिसका अपना अलग झंडा है। देश का संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है, लेकिन सिद्धारमैया ने प्रदेश के लिए अलग झंडे को मंजूरी देकर विवाद खड़ा कर दिया। वह कर रहे हैं कि कन्नड़ भाषी लोगों की अस्मिता के प्रतीक के लिए अलग झंडा बनाने का फैसला किया है। मतलब साफ है कि सिद्धारमैया किसी भी प्रकार से कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाना चाहते हैं।

कांग्रेस सरकार के दौरान बढ़ी हिंसा और अपराध
सिद्धारमैया सरकार ने विकास तो नहीं किया, कानून व्यवस्था के मामले में भी फेल साबित हुई है। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के दौरान अब तक 7,748 हत्याएं, 7,238 बलात्कार और 11, 000 अपहरण की घटनाएं हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त दंगों के भी कई मामले सामने आ चुके हैं। इसके साथ ही राष्ट्रीय स्वयं सेवकों की हत्याओं का दौर भी लगातार जारी है। मतलब साफ है कि हिंसा और अपराध का सहारा लेकर कर्नाटक सरकार चुनाव की वैतरणी पार करना चाहती है।

 

‘बांटने’ की राजनीति करते रंगे हाथ पकड़े गए सिद्धारमैया!
कर्नाटक के मुख्यमंत्री प्रदेश में ‘बांटने’ की राजनीति को लगातार बढ़ावा दे रहे हैं। पहले हिंदू-मुस्लिम को बांटा, फिर हिंदू-हिंदू को बांटा,फिर लिंगायत-लिंगायत को बांटा, फिर हिंदी-कन्नड़ को बांटा, फिर उत्तर-दक्षिण को बांटा, फिर देश से प्रदेश को बांटा… और अब अपने समर्थकों को रिश्वत बांटते रंगे हाथों पकड़े गए हैं।


वीडियो में साफ दिख रहा है कि सिद्धारमैया ने कर्नाटक के मैसूर में चुनाव प्रचार के दौरान महिलाओं को पैसे बांटे। एक मंदिर के बाहर सिद्धारमैया के स्वागत के लिए खड़ी महिलाओं को उन्होंने दो-दो हजार रुपए के नोट देते हुए वे कैमरे में कैद हैं। हालांकि भारतीय जनता पार्टी की शिकायत पर शिकायत दर्ज कर ली गई है और मामले की चुनाव आयोग जांच भी कर रहा है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि संवैधानिक पद पर रहते हुए उन्होंने जान-बूझकर चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन किया।

स्पष्ट है कि सिद्धारमैया को नैतिकता की नहीं चुनाव में जीत की अधिक जरूरत है, इसलिए ही उन्होंने ये रिश्वत भी बांटी है। दरअसल सिद्धारमैया ने चुनाव जीतने के लिए हर तरह की नैतिकता से तौबा कर लिया है और लगातार ‘बांटने’ की राजनीति को बढ़ावा दे रहे हैं। आइये हम उनकी ‘बांटने’ की राजनीति पर एक नजर डालते हैं-

हिंदू-मुस्लिम को ‘बांटने’ की राजनीति
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार में दंगों में शामिल सभी मुसलमानों पर से केस हटा लिया है। जनवरी, 2018 में एक सर्कुलर जारी किया, जिसमें अल्पसंख्यकों के खिलाफ पिछले 5 सालों में दर्ज सांप्रदायिक हिंसा के केस वापस लिए जाने का आदेश दिया गया। जाहिर है इस सर्कुलर के आधार पर सिद्धारमैया सरकार ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ का कार्ड खेल रही है और यहीं से हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है।

हिंदू-हिंदू को ‘बांटने’ की राजनीति
कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म की मान्यता देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इसके लिए उसने केंद्र सरकार के पास प्रस्ताव को भेज भी दिया है। दरअसल सिद्धारमैया की मंशा यह नहीं है कि किसी का भला हो, बल्कि हिंदुओं को बांट कर उन्हें कमजोर किया जा रहा है ताकि चुनाव में जीत हासिल की जा सके।

लिंगायत-लिंगायत को ‘बांटने’ की राजनीति
सिद्धारमैया सरकार ने एक ही परंपरा से आने वाले वीरशैव लिंगायत और लिंगायत में भी फूट डाल दी है। गौरतलब है कि वीरशैव परंपरागत रूप से भगवान शिव के साथ हिदू देवी-देवताओं को भी मानते हैं, जबकि लिंगायत समुदाय में भगवान शिव को ईष्टलिंग के रूप में पूजने की मान्यता है। हालांकि ये किसी भी प्रकार से हिंदू समुदाय से अलग नहीं हैं, लेकिन लिंगायत को अलग धर्म और वीर शैव को अल्पसंख्यक का दर्जा देकर सिद्धारमैया ने दोनों समुदायों में फूट डाल दिया है।

उत्तर-दक्षिण को ‘बांटने’ की राजनीति
पिछले दिनों कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा कि- कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र केंद्र से जितना पाते हैं उससे ज्यादा का टैक्स केंद्र सरकार को देते हैं। उन्होंने दलील दी है कि उत्तर प्रदेश को प्रत्येक एक रुपये के टैक्स योगदान के एवज में उसे 1.79 रुपये मिलते हैं, जबकि कर्नाटक को 0.47 पैसे। कर्नाटक कांग्रेस के इस ट्विटर अकाउंट पर भी यही बातें लिखी गई हैं।

“For every 1 rupee of tax contributed by UP that state receives Rs. 1.79

For every 1 rupee of tax contributed by Karnataka, the state receives Rs. 0.47

While I recognize, the need for correcting regional imbalances, where is the reward for development?”: CM#KannadaSwabhimana https://t.co/EmT7cY60Q0

— Karnataka Congress (@INCKarnataka) 16 March 2018

हिंदी-कन्नड़ को ‘बांटने’ की राजनीति
राहुल गांधी और कांग्रेस की हिन्दी भाषा से नफरत जगजाहिर है। इस मुद्दे पर राहुल ने सिद्धारमैया को कर्नाटक में खुली छूट दे रखी है। सिद्धरमैया ने कर्नाटक में हिंदी भाषा के विरूद्ध अभियान छेड़ दिया है। वे कई माध्यमों से दलील दे रहे हैं कि- यूरोप के कई देशों से कर्नाटक बड़ा है, अगर मैं एक कन्नड़ नागरिक हूं और कर्नाटक में हम ज्यादातर कन्नड़ भाषा का इस्तेमाल करते हैं, और हिंदी भाषा के थोपे जाने का विरोध करते हैं।

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