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किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए प्रधानमंत्री मोदी का ऐतिहासिक कदम

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दशकों से किसानों के सामने खेती से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए कई मूलभूत कदम उठाए हैं। इन कदमों से किसानों की बीज से लेकर बाजार तक की समस्याओं का समाधान किया है। प्रधानमंत्री मोदी किसानों की आय को 2022 तक दोगुनी कर देना चाहते हैं, जिससे देश के आर्थिक व्यवस्था की नींव ठोस बने। 

किसानों की आर्थिक स्थिति को और अधिक मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी अगले कुछ दिनों में एक ऐतिहासिक घोषणा करने वाले हैं। किसानों को खाद, बिजली, पानी, बीज इत्यादि के लिए मिलने वाली सरकारी सहायता को सीधे किसानों के खातों में देने का मन सरकार बना चुकी है। यह घोषणा प्रधानमंत्री मोदी 23 फरवरी को गोरखपुर में होने वाली किसान महारैली में कर सकते हैं।

नीति आयोग इस योजना पर काम कर रहा है। टाइम्स आफ इंडिया की खबर के अनुसार नीति आयोग का विचार है कि हर किसान को प्रति एकड़ एक साल में 15 हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी जाए। आंकड़े बताते हैं कि सरकार किसानों को सब्सिडी के रुप में जो आर्थिक सहायता देती है वह भी लगभग 15 हजार प्रति एकड़ सालाना पड़ते हैं। लेकिन अब तक किसानों को दी जा रही सरकारी सब्सिडी का फायदा किसानों को अपनी सुविधा के अनुसार नहीं मिल पाता और अधिकांश किसानों के पास यह सब्सिडी नहीं पहुंच पाती है।

 

इस ऐतिहासिक कदम की घोषणा के अतिरिक्त भी प्रधानमंत्री मोदी ने कई अन्य क्रांतिकारी कदम उठाए हैं, जिसने किसानों की छोटी से छोटी समस्याओं का समाधान किया है। इन समस्याओं के समाधान से किसानों के लिए खेती का काम सरल और लाभप्रद बनता जा रहा है। आइए, इन क्रांतिकारी कदमों के बारे में जानते हैं-

प्याज की प्रोत्साहन राशि को किया दोगुना
मोदी सरकार ने प्‍याज उगाने वाले किसानों के लिए निर्यात-प्रोत्‍साहन राशि मौजूदा पांच प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दी है। घरेलू बाजारों में प्‍याज की आपूर्ति मांग से ज्यादा होने के कारण इसकी कीमत कम हो गई है। कृषि मंत्रालय का कहना है कि इस स्थिति पर काबू पाने के लिए प्‍याज का निर्यात बढ़ाने का फैसला किया गया है ताकि घरेलू बाजार में इसकी कीमत स्थिर हो सके। जुलाई 2018 से प्‍याज के निर्यात को प्रोत्‍साहन देने के लिए पांच प्रतिशत की छूट की घोषणा कर दी गई। इसका फायदा हुआ है कि प्‍याज सबसे अधिक निर्यात होने वाले कृषि उत्‍पादों में आ गया है।
दलहन-तिलहन की खरीद में 13 गुना वृद्धि
मोदी सरकार ने पिछले साढ़े चार साल में दलहन और तिलहन के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न तरह की गतिविधियां शुरू की हैं, जिसके कारण 2009-2014 के दौरान की गई खरीद की तुलना में 2014 से आज तक दलहन और तिलहन की खरीद में लगभग 13 गुना वृद्धि हुई। इस दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 44142.50 करोड़ रुपये की इन वस्तुओं की खरीद की गयी है। इससे करीब 54 लाख किसानों को लाभ पहुंचा है। मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगना और आन्ध्र प्रदेश में 35,800 करोड़ रुपये की 78.84 लाख टन दलहन और तिलहनों की खरीद की गयी।

खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन
मोदी सरकार की नीतियों का ही असर है कि खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन हो रहा है और किसान खुशहाल हो रहा है। कृषि मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि देश में वर्ष 2017-18 में 284.83 मिलियन टन अनाज का उत्‍पादन किया गया, जबकि 2010 से 2014 के बीच प्रति वर्ष 255.59 मिलियन टन का औसत उत्‍पादन हुआ था। इसी प्रकार वर्ष 2017-18 में दाल का 25.23 मिलियन टन उत्‍पादन हुआ है। 2010 से 2014 के बीच प्रतिवर्ष औसतन 18.01 मिलियन टन की तुलना में दाल उत्‍पादन में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। बागवानी फसलों में रिकॉर्ड 15.79 प्रतिशत वृद्धि हुई, नीली क्रांति के अंतर्गत मछली उत्‍पादन 26.86 प्रतिशत बढ़ा और पशुपालन तथा दूध उत्‍पादन में 23.80 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

मोदी सरकार ने फसल उत्‍पादन लागत घटाने के लिए मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड, नीम कोटेड यूरिया के इस्‍तेमाल और प्रति बूंद अधिक फसल से संबंधित योजनाएं लक्षित रूप में लागू की हैं। जैव कृषि को प्रोत्‍साहित करने के लिए 2014-15 में परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) प्रारंभ की गई और पूर्वोत्‍तर राज्‍यों के लिए पूर्वोत्‍तर क्षेत्र मिशन ऑर्गेंनिक वेल्‍यू चेंज डेवलपमेंट (एमओवीसीडी-एनईआर) प्रारंभ किया गया। मोदी सरकार ने राष्‍ट्रीय कृषि बाजार (ई नैम) प्रारंभ किया गया है ताकि एक देश एक बाजार की ओर बढ़ते हुए किसानों के उत्‍पाद के लिए लाभकारी मूल्‍य सुनिश्चित किया जा सके। मार्च 2018 तक ई नैम के साथ 585 मंडियों को जोड़ने का काम किया गया। केंद्र सरकार खाद्य प्रसंस्‍करण के माध्‍यम से कृषि में गुणवत्‍ता को प्रोत्‍साहित कर रही है। 6 हजार करोड़ रुपये के आवंटन के साथ प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना प्रारंभ की गई है। 

नई अनाज खरीद नीति को मंजूरी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हर पल किसानों को मजबूत करने के लिए कार्य किया है। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने नई अनाज खरीद नीति को मंजूर कर दिया है। केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मंजूर किए गए ‘प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान’ (PM-AASHA) के तहत राज्यों को एक से ज्यादा स्कीमों का विकल्प मिला है। अगर, बाजार की कीमतें समर्थन मूल्य से नीचे आती हैं तो सरकार एमएसपी को सुनिश्चित करेगी और किसानों के नुकसान की भरपाई करती है। यह स्कीम राज्यों में तिलहन उत्पादन के 25% हिस्से पर भी लागू है।

लागत से डेढ़ गुना एमएसपी भरेगी नई रफ्तार

एक दशक पहले किसानों को लागत का डेढ़ गुना एमएसपी देने का सुझाव स्वामीनाथन आयोग ने कांग्रेस की यूपीए सरकार को दिया था। लेकिन यूपीए सरकार इसे लागू करने का हिम्मत नहीं जुटा सकी। वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों को हर हाल में खुशहाल करने के लिए लागत का डेढ़ गुना अधिक एमएसपी देने का निर्णय ले लिया, साथ में यह भी सुनिश्चिचत कर दिया कि एमएसपी से कम मूल्य मिलने पर किसानों के नुकसान की भरपाई सरकार करे।

मोटे अनाज की पैदावार बढ़ाने पर जोर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार जहां एक तरफ किसानों की आय बढ़ाने में लगी है, वहीं दूसरी तरफ जन-जन को पोषक अनाज उपलब्ध कराने के लिए भी काम कर रही है।  प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों और देश की सेहत के लिए पोषक मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए उपमिशन लागू कर दिया है।  इसके तहत देश के 14 राज्यों के दो सौ से अधिक जिलों को चिन्हित मोटे अनाज वाली फसलों के लिए किसानों को सहायता दी गई।  पिछले फसल वर्ष के दौरान रिकॉर्ड 4.70 करोड़ टन मोटे अनाज का उत्पादन हुआ । ये योजना उन किसानों के लिए फायदेमंद रही जहां ज्यादातर सूखा पड़ता है। मोटे अनाज की खेती में अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है। 

‘बीज से बाजार’ तक की महत्वपूर्ण पहल
किसानों को सशक्त करने के लिए ‘बीज से बाजार तक’ मोदी सरकार की एक अनुपम पहल है। जैसा कि नाम से भी स्पष्ट है, इस पहल के अंतर्गत पूरे फसल चक्र में किसानों के लिए कृषि कार्य को आसान बनाने की व्यवस्था है। यानि किसानों के लिए बीज हासिल करने से लेकर उपज को बाजार में बेचने तक का प्रावधान है। इस व्यवस्था में सबसे पहले बुआई से पहले किसानों की जरूरतों को ध्यान में रखा गया है जिसमें कृषि ऋण की उपलब्धता महत्वपूर्ण है।

उपज की उचित बिक्री के इंतजाम पर जोर
देश में 86 प्रतिशत से ज्यादा छोटे या सीमांत किसान हैं। इनके लिए मार्केट तक पहुंचना आसान नहीं है। इसलिए इन्हें ध्यान में रखते हुए मौजूदा सरकार का इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जोर है। इसके लिए सरकार 22 हजार ग्रामीण हॉट को ग्रामीण कृषि बाजार में बदलने की तैयारी चल रही है जिसके बाद इन्हें APMC और e-NAM प्लेटफॉर्म के साथ इंटीग्रेट कर दिया जाएगा। 2,000 करोड़ रुपये से कृषि बाजार और संरचना कोष का गठन होगा। e-NAM को किसानों से जोड़ा गया है, ताकि किसानों को उनकी उपज का ज्यादा मूल्य मिल सके। अब तक देश की लगभग 585 मंडियों को ऑनलाइन जोड़ा जा चुका है। e-Nam से जुड़ने वाली हर मंडी को 75 लाख रुपये की मदद का प्रावधान है। इसके साथ ही कृषि उत्पादों के निर्यात को 100 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंचाने का लक्ष्य भी सरकार ने रखा है।

किसान संपदा योजना से सप्लाई चेन को मजबूती
मोदी सरकार प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के जरिए खेत से लेकर बाजार तक पूरी सप्लाई चेन को मजबूत कर रही है। इसके लिए प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना शुरू की गई जिसका उद्देश्य कृषि उत्पादों की कमियों को पूरा करना, खाद्य प्रसंस्करण का आधुनिकीकरण करना है। 6,000 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना से वर्ष 2019-20 तक करीब 334 लाख मीट्रिक टन कृषि उत्पादों का संचय किया जा सकेगा। इससे देश के 20 लाख किसानों को लाभ होगा और बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर भी निकलने वाले हैं। गौर करने वाली बात है कि इस योजना को फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में 100 प्रतिशत FDI के सरकार के फैसले से भी नया बल मिला है।

गन्ना किसानों के लिए राहत पैकेज
एक तरफ जहां मोदी सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में काम कर रही है, वहीं दूसरी तरफ कृषि में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने में शिद्दत से लगी है। मोदी सरकार ने हाल ही में देश के गन्ना किसानों को राहत देने के लिए 8,500 के पैकेज का ऐलान किया है। सरकार का कहना है कि चीनी की कीमत बढ़ाए बगैर किसानों को बड़ी राहत पहुंचाई जाएगी। गन्ना किसानों के लिए राहत पैकेज में चीनी का 30 लाख टन का बफर स्टॉक बनाने के लिए 1200 करोड़ रुपए दिए जाने की घोषणा की गई। जाहिर है कि पिछले महीने सरकार ने गन्ना किसानों को भुगतान में मिलों की मदद के लिए 1,540 करोड़ रुपए प्रोडक्शन-लिंक्ड सब्सिडी देने की घोषणा की थी, इसे भी मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। गन्ना किसानों की मदद के लिए सरकार पहले ही गन्ने पर आयात शुक्ल को दोगुना कर चुकी है, जो कि अब 100% है। इसके अलावा निर्यात शुल्क कम किया गया है।

जंगली जानवरों के कारण बर्बाद फसलों की भरपाई
मोदी सरकार ने अब प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत प्रायोगिक तौर पर जंगली जानवरों के कारण बर्बाद फसलों की भरपाई का फैसला किया है। केन्द्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह के अनुसार सरकार ने कुछ चुने हुए जिलों में जंगली पशुओं के कारण फसल बर्बादी की भरपाई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत प्रायोगिक आधार पर करने का फैसला किया है। श्री सिंह ने कहा कि जल जमाव, भूस्खलन और ओले से फसल की बर्बादी पहले इस योजना के दायरे में नहीं थी लेकिन अब नये प्रावधानों के तहत इऩ्हें भी इसके दायरे में लाया जा रहा है। कृषि मंत्री ने कहा कि विभिन्न पक्षों से परामर्श के बाद फसल बीमा योजना के प्रावधानों में संशोधन इस महीने से लागू किये गये हैं। उन्होंने कहा कि संशोधनों के तहत फसल नुकसान के बीमा दावे मंजूर करने में देरी पर जुर्माने का भी प्रावधान है।

किसानों की दशकों पुरानी समस्याएं खत्म करने के लिए उठाए कदम
प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों की समस्याओं के समाधान को निश्चित समय में लागू करने के लिए कई ऐतिहासिक निर्णय लिए। कांग्रेस की सरकारों में किसानों के लिए पानी, बिजली, खाद आदि से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए योजनाएं तो बनीं, लेकिन उनके क्रियान्वयन की समयसीमा को निश्चित नहीं किया गया, इसका परिणाम यह हुआ कि समस्या हमेशा बनी ही रही। प्रधानमंत्री मोदी ने इसके विपरीत किसानों की पानी, बिजली, बीज, खाद, कृषि से जुड़े अन्य धंधों, बाजार, बीमा आदि से जुड़ी योजनाओं को निश्चित समय में लागू करने निर्णय लिया। प्रधानमंत्री का संकल्प है कि देश के किसानों की आय को 2022 तक दोगुना कर देंगे। किसानों की समस्याओं का समाधान करते हुए, आय दोगुनी करने का संकल्प मोदी सरकार से पहले इस देश में किसी सरकार ने नहीं लिया।

किसानों की आय दोगुनी करने के लिए डबल किया बजट
प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों की आय को दोगुना करने के संकल्प को 2022 तक पूरा करने के लिए केंद्रीय बजट में खेती को दिए जाने वाले धन को भी दोगुना कर दिया है। कांग्रेस की यूपीए सरकार ने जहां 2009 से 2014 के दौरान मात्र 1 लाख 21 हजार 82 करोड़ रुपये दिए थे वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने 2014-18 के बीच, चार सालों में ही, 2 लाख 11 हजार 694 करोड़ रुपये दे दिए। संकल्प को पूरा करने के लिए उठाये गये कदम बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी जो कहते हैं, उसे पूरा करते हैं।

कृषि कार्य के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी किसानों की समस्याओं को सुलझाने के उपायों को लागू करने के लिए भी धन को रिकॉर्ड मात्रा में उपलब्ध कराया गया है। इससे साफ होता है कि आय को दोगुना करने का संकल्प मजबूत है।

किसानों को ऋण लेने में आने वाली दिक्कतों को दूर किया
किसान को खेती के लिए जरूरत में धन सही समय पर उपलब्ध कराने का काम किया गया है। बैकों से मिलने वाला ऋण, एक साल के लिए मात्र 7 प्रतिशत की ब्याज दर पर मिल रहा है। छोटे किसानों को भी, बैकों से यह धन मिले, इसके लिए छोटे किसानों के छोटे से छोटे समूहों  को बैकों से ऋण लेना आसान हो गया है। केन्द्रीय बजट से निकला धन किसानों तक बैंकों के माध्यम से पहुंचाने का रास्ता सरल और आसान हो चुका है। 

सिंचाई के पानी की समस्या खत्म हुई
खेती के लिए, किसानों के पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए फाइलों में बंद पड़ी योजनाओं को लागू किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की सोच है कि देश में योजनाओं की कमी नहीं है, लेकिन उन्हें लागू करने की राजनीतिक इच्छा शक्ति और कर्मठता की कमी रही है,जिसे वह पिछले चार सालों से पूरा कर रहे हैं। हर खेत को पानी पहुंचाने के लिए 50,000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ नहरों और बांधों पर काम चल रहा है। इसके साथ पानी का खेती के कामों में उचित उपयोग हो, ड्रिप सिंचाई की तकनीक को चार सालों के अंदर ही 26.87 लाख हेक्टेयर खेतों तक पहुंचा दिया गया है।

सॉयल हेल्थ कार्ड से खेतों की पैदावार की ताकत बढ़ाई
प्रधानमंत्री मोदी की किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करने के संकल्प के प्रति कितनी निष्ठा है, इसका अंदाजा मात्र एक ऐतिहासिक योजना से लग जाता है। सॉयल हेल्थ कार्ड खेतों की उपज शक्ति मापने का किसानों के हाथ में जबरदस्त हथियार है। अब तक किसी सरकार ने किसानों के खेतों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने में खेतों की ताकत के बारे में कभी नहीं सोचा था। सॉयल हेल्थ कार्ड, किसान को यह बता देता है कि उसके खेत में किस तरह के उर्वरक की जरूरत है। प्रधानमंत्री मोदी का इस छोटी सी लेकिन महत्वपूर्ण समस्या के समाधान के बारे में सोचना और योजना को लागू करना,यह साबित करता है कि 2022 तक किसानों की आय दो गुनी होने से कोई नहीं रोक सकता है।

अब किसानों को आसानी से मिलती है खाद
कांग्रेस की सरकारों के दौरान किसानों को खेती के लिए उर्वरक लाने में जान के लाले पड़ जाते थे। सरकारी खाद की दुकानों पर किसानों का अधिक समय लाइन लगाने और खाद लाने में बीत जाता था। इन लाइनों में खाद न मिलने के कारण कई राज्यों में अनेकों बार हिंसक घटनाएं हुईं। लेकिन अब देश में यह बीते दिनों की बातें हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने नीम कोटिंग का ऐतिहासिक फैसला लेकर कालाबजारी को पूरी तरह से बंद कर दिया, अब रासायनिक उर्वरकों का उपयोग केवल खेतों में ही हो सकता है, पहले की तरह उद्योगों में  इसका उपयोग होना बंद हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरा ऐतिहासिक कदम यह उठाया कि सभी बंद पड़े उर्वरक संयंत्रों को उत्पादन के लायक बनाकर, देश में उर्वरक उत्पादन को बढ़ा दिया। कांग्रेस की सरकारों के समय से बंद पड़े कई उर्वरक संयंत्रों को पुर्नजीवित किया जा रहा है।

मोदी सरकार की नीतियों से अनाज का रिकॉर्ड उत्पादन 
प्रधानमंत्री मोदी की योजनाएं, किसानों तक सही समय पर पहुंच रही हैं इसका अंदाजा इस तथ्य से लगता है कि पिछले चार साल में देश में किसानों ने अपने खेतों से अनाजों का रिकॉर्ड उत्पादन किया है। इस रिकॉर्ड उत्पादन से जहां किसानों की आय बढ़ी है, वहीं देश अनाजों के मामले में आत्मनिर्भर होने के साथ ही साथ, विश्व के दूसरे देशों को निर्यात करने वाला भी बन गया है।

किसानों को लगभग मुफ्त में फसल बीमा का लाभ मिला है
आज किसानों को खरीफ फसलों के लिए 2 प्रतिशत और रबी फसलों के लिए 1.5 प्रतिशत के प्रीमियम पर बीमा मिल रहा है, शेष 98 प्रतिशत प्रीमियम राज्य और केन्द्र सरकारें देती हैं। फसल बीमा से खेती में अचानक हुए किसी भी तरह के नुकसान की भरपाई बैंक कर रहे हैं। फसल बीमा से किसानों को खेती की अनिश्चितता से होने वाली चिंता खत्म हुई है। इससे छोटे -छोटे किसान भी बड़ी तेजी से फसल बीमा कराके चिंताओं से मुक्त हो रहे हैं।

किसानों को खेत से ही फसल बेचने की सुविधा
देश में सभी अनाज और फल-सब्जी मंडियों के कानून में संशोधन करके, इंटरनेट के माध्यम से जोड़ा जा रहा है। पूरे देश की अनाज और फल की मंडियों के एक हो जाने से किसी भी गांव का किसान देश में उपज कहीं भी बेच सकता है। 2022 तक यह पूरी तरह से व्यवस्थित होकर एक हो जाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। अब तक 585 मंडियों को e-NAM से जोड़ा जा चुका है जिस पर 87.5 लाख किसान अपना उपज बेच रहे हैं। अब तक e-NAM पर 164.5 लाख टन कृषि उपज बेचा जा चुका है, जिससे किसानों को 41, 591 करोड़ रुपये मिले हैं।

किसानों की वैकल्पिक आय के साधन बढ़ाए, दुग्ध उत्पादन बढ़ा
बीते चार वर्षों में देश में दूध उत्पाद रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ा है। पूरे विश्व में दूध उत्‍पादन की वृद्धि दर दो प्रतिशत है, जबकि भारत ने चार वर्षों में दूध उत्‍पादन में 4 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की है।

प्रधानमंत्री मोदी ने देश के किसानों की आय को दोगुना करने और उन्हे आत्मनिर्भर करने का जो संकल्प लिया है, उससे किसान उस शोषण के तंत्र से स्वतः ही मुक्त हो जायेंगे, जिसे पिछले 48 सालों में कांग्रेस की सरकारों ने तैयार किया था। किसानों की समस्याओं को लेकर देश में होने वाली राजनीति समस्याओं का समाधान नहीं चाहती है, बल्कि उसके बल पर देश की सत्ता पर काबिज होने का प्रयास करती है, जैसा पिछले 48 सालों में कांग्रेस और उसके जैसी सोच रखने वाले क्षेत्रीय दल करते रहे हैं।

एक नजर डालते हैं केंद्र सरकार के उन फैसलों पर, जिनसे किसानों की राह आसान हुई है और उनकी इनकम भी बढ़ रही है।

सूक्ष्म सिंचाई योजना के लिए 5000 करोड़ मंजूर
मोदी सरकार ने देश में सिंचाई सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत सूक्ष्म सिंचाई योजनाओं के लिए 5,000 करोड़ रुपये का सूक्ष्म सिंचाई कोष गठित करने को मंजूरी दी है। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी की अध्‍यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने सूक्ष्‍म सिंचाई कोष (एमआईएफ) स्‍थापित करने के लिए नाबार्ड के साथ 5000 करोड़ रुपये की आरंभिक राशि देने की मंजूरी दे दी।

एमआईएफ की प्रमुख बातें-
*नाबार्ड राज्‍य सरकारों को ऋण का भुगतान करेगा। नाबार्ड से प्राप्‍त ऋण राशि दो वर्ष की छूट अवधि सहित सात वर्ष में लौटाई जा सकेगी। एमआईएफ के अंतर्गत ऋण की प्रस्‍तावित दर 3 प्रतिशत रखी गई है जो नाबार्ड द्वारा धनराशि जुटाने की लागत से कम है।

*सूक्ष्‍म सिंचाई कोष प्रभावशाली तरीके से और समय पर प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के पर ड्रॉप मोर क्रॉप (पीडीएमसी) के प्रयासों में वृद्धि करेगा।
इस अतिरिक्‍त निवेश से करीब दस लाख हेक्‍टेयर जमीन इसके अंदर आएगी।

*एमआईएफ से यह उम्‍मीद की जाती है कि ऐसे राज्‍य जो सूक्ष्‍म सिंचाई अपनाने में पीछे चल रहे हैं उन्‍हें किसानों को प्रोत्‍साहित करने के लिए धनराशि का लाभ उठाने के लिए प्रेरित किया जाएगा।

*सूक्ष्‍म सिंचाई पर कार्य बल ने सूक्ष्‍म सिंचाई के अंतर्गत 69.5 मिलियन हेक्‍टेयर की संभावना का अनुमान लगाया है, जो अब तक केवल करीब 10 मिलियन हेक्‍टेयर (14 प्रतिशत) है।

सॉयल हेल्थ कार्ड से इनकम बढ़ाने की योजना
केंद्र सरकार देशभर में छोटे किसानों को उपज का सही दाम दिलाने के लिए सॉयल हेल्थ कार्ड का प्रयोग एक उपकरण की तरह करने की तैयारी में है। 16.39 करोड़ किसानों का आंकड़ा जुटा चुके इस प्लेटफार्म से खाद्य क्षेत्र में काम कर रहे सामाजिक उद्यमों को जोड़ा जाएगा। ये उद्यम किसानों को उपज की सही कीमत मुहैया कराने की मुहिम में सरकार का साथ देने को तैयार हैं।  मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नीति आयोग ने इन उद्यमियों से बातचीत की है और सॉयल हेल्थ कार्ड को अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचने के उपकरण के तौर पर इस्तेमाल करने पर विचार किया जा रहा है। किसान और सामाजिक उद्यमों समेत अन्य, जो सीधे तौर पर किसान से खरीद करना चाहते हैं, उन्हें सॉयल हेल्थ कार्ड के जरिए एक दूसरे से मिलाया जा सकता है। बताया जा रहा है कि इससे छोटे और सीमांत किसानों को बड़ा फायदा होगा।

बिचौलियों के जाल से किसानों के मिलेगी मुक्ति
मौजूदा समय में किसान दूर तक अनाज ढोने समेत तमाम समस्याओं के मद्देनजर बिचौलिए को अनाज बेचता है और इससे किसानों को 30 से 40 प्रतिशत का नुकसान हो जाता है। जाहिर है कि सॉयल हेल्थ कार्ड के माध्यम से सामाजिक उद्यमी किसानों से सीधे संपर्क स्थापित कर सकते हैं। सॉयल हेल्थ कार्ड में 16.39 करोड़ किसान अब तक जुड़ चुके हैं।

‘हरित क्रांति-कृषोन्‍नति योजना’ जारी रखने की स्‍वीकृति
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कृषि क्षेत्र में छतरी योजना ‘हरित क्रांति-कृषोन्‍नति योजना’ को 12वीं पंचवर्षीय योजना से आगे यानी 2017-18 से 2019-20 तक जारी रखने को मंजूरी दी है। इसमें कुल केंद्रीय हिस्‍सा 33,269.976 करोड़ रुपये का है। छतरी योजना में 11 योजनाएं शामिल हैं। इन योजनाओं का उद्देश्‍य समग्र और वैज्ञानिक तरीके से उत्‍पादन और उत्‍पादकता बढ़ाकर तथा उत्‍पाद पर बेहतर लाभ सुनिश्‍चत करके किसानों की आय बढ़ाना है। ये योजनाएं 33,269.976 करोड़ रूपये के व्‍यय के साथ तीन वित्‍तीय वर्षों यानी 2017-18, 2018-19 और 2019-20 के लिए जारी रहेंगी। इन 11 योजनाओं का फोकस उत्‍पादन संरचना सृजन, उत्‍पादन लागत में कमी और कृषि तथा संबंद्ध उत्‍पाद के विपणन पर है। ये योजनाएं अलग-अलग अवधि के लिए पिछले कुछ वर्षों से क्रियान्वित की जा रही हैं।

एक साल में बांटा 10 लाख करोड़ का कृषि ऋण
किसानों को फसल उत्पादन में मदद के लिए सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 में 10 लाख करोड़ रुपये का ऋण बांटा है। सरकार ने जमीन पर मालिकाना हक रखने वाले किसानों को ही कर्ज नहीं दिया है, बल्कि बटाईदार यानी दूसरे के खेतों को किराए पर लेकर खेती करने वाले किसानों को भी बड़ी संख्या में ऋण वितरित किया है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक सरकार छोटे और सीमांत किसानों के लिए ऋण सुविधा बेहतर करने पर भी ध्यान दे रही है। 10 लाख करोड़ के कृषि ऋण में से 6.8 लाख करोड़ रुपये छोटी अवधि के फसली ऋण में दिए गए हैं। इतना ही नहीं इस 6.8 लाख करोड़ रुपये में से आधी रकम छोटे और सीमांत किसानों को बांटी गई है। 2017-18 में 10 लाख करोड़ का ऋण बांटने का लक्ष्य इस वित्तीय वर्ष में बढ़ाकर 11 लाख करोड़ कर दिया गया है।

2020 तक जारी रहेगी यूरिया सब्सिडी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार किसानों की आर्थिक उन्नति, फसल की लागत कम करने और उन्हें उपज का उचित मूल्य दिलाने के कार्य में लगी है। फसल की पैदावार बढ़ाने में यूरिया की अहम भूमिका है। हाल ही में मोदी सरकार ने किसानों के हित में महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए यूरिया पर सब्सिडी को 2020 तक बढ़ाने का फैसला लिया है। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने उर्वरक सब्सिडी को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर यानी डीबीटी के माध्यम से किसानों तक पहुंचाने का भी निर्णय लिया है। डीबीटी के माध्यम से सब्सिडी का पैसा सीधे किसानों के खाते में भेजने से भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी। आपको बता दें कि इस वर्ष केंद्र सरकार किसानों को दी जा रही यूरिया सब्सिडी पर 42,748 करोड़ रुपये खर्च कर रही हैं, जबकि 2018-19 में यूरिया सब्सिडी 45,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। वर्ष 2020 तक किसानों को यूरिया सब्सिडी देने पर कुल 1,64,935 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। उर्वरक मंत्रालय सालाना आधार पर यूरिया सब्सिडी मंजूर करता है, लेकिन मोदी सरकार ने किसानों के हित में फैसला लेते हुए पहली बार तीन वर्षों के लिए यूरिया सब्सिडी को मंजूरी दी है।

अब छोटे पैक में मिलेगा यूरिया
किसानों की सहूलियत का ख्याल रखते हुए सरकार यूरिया के छोटे बैग मुहैया कराने पर विचार कर रही है। वर्तमान में किसानों को यूरिया 50 किलो के बैग में मिलता है। सरकार का प्रयास बैग के आकार को छोटा कर 45 किलो करने का है। सरकार मानना है कि इससे यूरिया की बचत होगी। दरअसल किसान अपने फसल में यूरिया की मात्रा तौल कर नहीं डालते हैं। बैग में यूरिया की मात्रा कम करने से इसकी खपत कम होगी।

यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भर हो रहा भारत
एक वक्त था जब यूरिया की कालाबाजारी से किसान परेशान रहते थे। लेकिन मोदी सरकार की नीतियों से इसपर रोक लग गई है। दूसरी ओर सरकार ने देश को यूरिया उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का निर्णय लिया है। इस प्रयास में पुराने कारखानों को शुरू करने के साथ नए कारखानों की भी शुरुआत हुई है। कई राज्यों में बन रहे यूरिया कारखानों के निर्माण में भी कार्य तेज गति से चल रहा है। भारत सरकार गोरखपुर, सिंदरी, बरौनी, तालचर और रामागुण्डम स्थित पांच उर्वरक संयत्रों का पुनरूद्धार कर रही है। गोरखपुर में निर्माणाधीन फैक्ट्री में यूरिया का उत्पादन वर्ष 2022 से शुरू हो जाएगा। इन संयत्रों में 65 लाख टन यूरिया का उत्पादन होना है। गौरतलब है कि देश में सालाना लगभग 310 लाख टन उर्वरक की जरुरत होती है। करीब 55 लाख टन उवर्रक आयात करना पड़ता है। 

नीम कोटिंग यूरिया से खेती बढ़ी, खाद का उपयोग घटा
नीम कोटेड यूरिया की पहल जमीन पर रंग ला रही है। इससे यूरिया की खपत में तो कमी आई ही है साथ में किसानों को खेती की लागत में कमी आई है। नीम कोटेड यूरिया के चलते खाद की बिक्री में कमी देखने को मिली है लेकिन अनाज की पैदावार में बढ़ोत्‍तरी दर्ज की गई है। साल 2012-13 से 2015-16 के बीच यूरिया की बिक्री 30 से 30.6 मिलियन टन के बीच रही। लेकिन 2017 में यह आंकड़ा 28 मिलियन टन पर आ गया और 2018 में इसके और घटने की संभावना है। यूरिया के अलावा केंद्र सरकार ने कई ऐसी योजनाएं बनाईं हैं जो किसानों के हित के लिए हैं। आइये देखते हैं इन्हीं में से कुछ महत्वपूर्ण कदम।  

गोबर-धन योजना से गांवों का होगा विकास
सरकार ने ग्रामीणों के जीवन को बेहतर बनाने के अपने प्रयासों के तहत बजट 2018-19  में गोबर-धन यानि गैलवनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्स योजना की घोषणा की है। इस योजना के तहत गोबर और खेतों के ठोस अपशिष्ट पदार्थों को कम्पोस्ट, बायो-गैस और बायो-सीएनजी में परिवर्तित किया जाएगा। समावेशी समाज निर्माण के दृष्टिकोण के तहत सरकार ने विकास के लिए 115 जिलों की पहचान की है। इन जिलों में स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, सिंचाई, ग्रामीण विद्युतीकरण, पेयजल, शौचालय जैसे क्षेत्रों में निवेश करके निश्चित समयावधि में विकास की गति को तेज किया जाएगा और ये 115 जिले विकास के मॉडल साबित होंगे।

गांवों में ही किसानों को मिलेगा उपज का बाजार
देश में 86 प्रतिशत से ज्यादा छोटे या सीमांत किसान हैं। इनके लिए मार्केट तक पहुंचना आसान नहीं है। इसलिए सरकार इन्हें में ध्यान रखकर इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करेगी। इसके लिए सरकार 22 हजार ग्रामीण हॉट को ग्रामीण कृषि बाजार में बदलेगी। 2,000 करोड़ से कृषि बाजार और संरचना कोष का गठन होगा। ई-नैम को किसानों से जोड़ा गया है, ताकि किसानों को उनकी उपज का ज्यादा मूल्य मिल सके। 585 EMPC को ई-नैम के जरिए जोड़ा जाएगा। यह काम मार्च 2019 तक ही खत्म हो जाएगा।कृषि उत्पादों के निर्यात को 100 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंचाने का लक्ष्य भी सरकार ने रखा है। पीएम कृषि सिंचाई योजना के तहत हर खेत को पानी उपलब्ध कराने की योजना चलाई जा रही है. इसके तहत सिंचाई के पानी की कमी से जूझ रहे 96 जिलों को चिन्हित कर 2,600 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। 

देश भर में किसानों को निर्बाध बिजली
खेती-किसानी में बिजली का अहम योगदान होता है, क्योंकि खेतों में ट्यूबबेल चलाने, सिंचाई के लिए बिजली जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को बाखूबी समझते हैं। हालांकि किसानों के लिए बिजली की अलग फीडर लाइन पर पिछले डेढ़ दशक से चर्चाएं हो रही हैं, लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी के दखल के बाद इस पर अमल की प्रक्रिया शुरू हो गई है। देश में “पीएम सहज बिजली हर घर योजना” लांच की गई है। इसका फायदा खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में होगा, लेकिन किसानों को बिजली का असली फायदा देने के लिए अब फीडर लाइन को अलग किया जाएगा। अलग बिजली फीडर होने से किसानों को बिजली सब्सिडी सीधे बैंक खाते में देने की व्यवस्था शुरू करने में भी काफी आसानी होगी। साथ ही किसानों को समय पर पर्याप्त बिजली आपूर्ति भी सुनिश्चित होगी।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का उद्देश्य ही यह है कि ‘हर खेत में पानी।‘ शायद ही इस कारण की जटिलता को पहले किसी और सरकार ने इस गंभीरता से समझा हो, जितना मोदी सरकार ने कि भारतीय खेती की सिंचाई संबंधी निर्भरता बहुत बड़े स्तर पर वर्षा पर है। वर्षा की अनिश्चितता सीधे तौर पर फसलों के उत्पादन को प्रभावित करती है, जिससे किसान का हित प्रभावित होता है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सिंचाई योजना इसी समस्या का सशक्त समाधान है।

प्रधानमंत्री कृषि कौशल योजना
किसी भी कार्य का व्यावसायिक तथा व्यावहारिक प्रशिक्षण उस कार्य में प्रगति की संभावनाओं को कई गुना बढ़ा देता है। प्रधानमंत्री कृषि कौशल योजना का मुख्य उद्देश्य कृषि से संबंधित विस्तृत प्रशिक्षण प्रदान करवाना है। विशेषकर ऐसे युवाओं को, जो बीच में पढ़ाई छोड़ चुके हैं अथवा खेती से विमुख हो रहे हैं। इस प्रशिक्षण द्वारा कुशल कामगारों को विकसित किया जाता है। इसके अंतर्गत पाठ्यक्रमों में सुधार करना, बेहतर शिक्षण और प्रशिक्षित शिक्षकों पर विशेष जोर दिया गया है। प्रशिक्षण में अन्‍य पहलुओं के साथ व्‍यवहार कुशलता और व्‍यवहार में परिवर्तन भी शामिल है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
किसानों के हित में बनने वाली किसी भी अन्य योजना के मुकाबले इस योजना का महत्त्व कई गुना अधिक इसलिए है, क्योंकि यह अन्य योजनाओं की समीक्षा कर, उसके गुण-दोषों की विवेचना के आधार पर बनाई गई है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत किसानों की फसल को प्राकृतिक आपदाओं के कारण पहुंची क्षति को प्रीमियम के भुगतान द्वारा एक सीमा तक कम किया जा सकेगा। इसके अंतर्गत 8,800 करोड़ रुपये खर्च होंगे, ताकि किसानों के प्रीमियम का भुगतान देकर एक सीमा तक कम किया जा सके। यह खरीफ और रबी की फसल के अतिरिक्त वाणिज्यिक और बागवानी फसलों को भी सुरक्षा प्रदान करेगी। खराब फसलों के विरूद्ध किसानों द्वारा दी जा रही बीमा की फसलों को बहुत नीचे रखा गया है।

कृषि एप का लाभ
मौसम से जुड़ी सही-सही जानकारी को समय पर किसानों को उपलब्ध कराना इस योजना का उद्देश्य है। मौसम में बदलाव, वर्षा अथवा इस विषय से संबंधित सभी महत्वपूर्ण सूचनाएं इस एप पर उपलब्ध हैं।

ई-कृषि मंडी योजना
कड़ी से कड़ी मेहनत और उत्पादन का कोई लाभ नहीं, यदि किसान को उसके उत्पादन के सही दाम न मिलें। यही वह विषय है, जो पूरी कृषि-प्रक्रिया का सबसे संवेदनशील पक्ष है। बिचौलियों के वर्चस्व के चलते किसानों का हित हमेशा से प्रभावित होता रहा है। इसी समस्या के समाधान के तौर पर इ-कृषि मंडी योजना की रूपरेखा तय की गई, ताकि किसान अपनी उपज के सही दाम जानकर उसी पर फसल बाजार में बेच पाएं।

परंपरागत कृषि विकास योजना
परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) को लागू किया जा रहा है ताकि देश में जैव कृषि को बढ़ावा मिल सके। इससे मिट्टी की सेहत और जैव पदार्थ तत्वों को सुधारने तथा किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद मिलेगी।

भंडार गृह की सुविधा
किसानों द्वारा मजबूरी में अपने उत्पाद बेचने को हतोत्साहित करने और उन्हें अपने उत्पाद भंडार गृहों की रसीद के साथ भंडार गृहों में रखने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए ऐसे छोटे और मझौले किसानों को ब्याज रियायत का लाभ मिलेगा, जिनके पास फसल कटाई के बाद के 6 महीनों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड होंगे।

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) को सरकार उनकी जरूरतों के मुताबिक राज्यों में लागू कर सकेगी, जिसके लिए राज्य में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। राज्यों को उऩकी जरूरतों, प्राथमिकताओं और कृषि-जलवायु जरूरतों के अनुसार योजना के अंतर्गत परियोजनाओँ/कार्यक्रमों के चयन, योजना की मंजूरी और उऩ्हें अमल में लाने के लिए लचीलापन और स्वयत्ता प्रदान की गई है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम), केन्द्र प्रायोजित योजना के अंतर्गत 29 राज्यों के 638 जिलों में एनएफएसएम दाल, 25 राज्यों के 194 जिलों में एनएफएसएम चावल, 11 राज्यों के 126 जिलों में एनएफएसएम गेहूं और देश के 28 राज्यों के 265 जिलों में एनएफएसएम मोटा अनाज लागू की गई है ताकि चावल, गेहूं, दालों, मोटे अऩाजों के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाया जा सके। एनएफएसएम के अंतर्गत किसानों को बीजों के वितरण (एचवाईवी/हाईब्रिड), बीजों के उत्पादन (केवल दालों के), आईएनएम और आईपीएम तकनीकों, संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकीयों/उपकणों, प्रभावी जल प्रयोग साधन, फसल प्रणाली जो किसानों को प्रशिक्षण देने पर आधारित है, को लागू किया जा रहा है।

राष्ट्रीय तिलहन और तेल मिशन कार्यक्रम
राष्ट्रीय तिलहन और तेल (एनएमओओपी) मिशन कार्यक्रम 2014-15 से लागू है। इसका उद्देश्य खाद्य तेलों की घरेलू जरूरत को पूरा करने के लिए तिलहनों का उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाना है। इस मिशन की विभिन्न कार्यक्रमों को राज्य कृषि/बागवानी विभाग के जरिये लागू किया जा रहा है।

बागवानी के समन्वित विकास के लिए मिशन
बागवानी के समन्वित विकास के लिए मिशन (एमआईडीएच), केन्द्र प्रायोजित योजना फलों, सब्जियों के जड़ और कन्द फसलों, मशरूम, मसालों, फूलों, सुगंध वाले वनस्पति,नारियल, काजू, कोको और बांस सहित बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास के लिए 2014-15 से लागू है। इस मिशन में ऱाष्ट्रीय बागवानी मिशन, पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए बागवानी मिशन, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, नारियल विकास बोर्ड और बागवानी के लिए केन्द्रीय संस्थान, नागालैंड को शामिल कर दिया गया है।

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