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सरदार पटेल का अपमान करने वाली कांग्रेस का ‘मोहरा’ बन गए हैं हार्दिक पटेल !

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गुजरात के पटेल-पाटीदार शुरू से ही कारोबारी और काफी संपन्न रहें हैं और देश की अर्थव्यवस्था में उनका अमूल्य योगदान रहा है। राज्य के आठ मंत्री और 44 विधायक पटेल समुदाय के हैं। न तो वे गरीब हैं और न ही राजनीतिक या सामाजिक रूप से पिछड़े। इनकी सत्ता में जबरदस्त भागीदारी रही है और राज्य सरकार की सामाजिक नीतियों के निर्माण में इनकी बड़ी भूमिका रहती आई है। ऐसे में पटेलों का आरक्षण के लिये हिंसक और अनियंत्रित आंदोलन घोर आश्चर्य में डालने वाला था। यह इसलिए भी गले से उतरने वाला नहीं था, क्योंकि कई अवसरों पर पटेल-पाटीदार समुदाय की आरक्षण के विरोध में कभी तेज तो कभी मंद आवाजें उठती रही। दरअसल इस आंदोलन से उपजे चंद सवाल ऐसे है जो परदे के पीछे की एक अलग ही कहानी बयां करते है। जिस कांग्रेस पार्टी ने हमेशा सरदार पटेल का अपमान किया वह पाटीदारों के सम्मान से खिलवाड़ नहीं कर रही है? पाटीदार समुदाय को अपनी राजनीति साजिश का हिस्सा बनाकर क्या वह बहुसंख्यक समुदाय में विभेद पैदा नहीं कर रही है? क्या हार्दिक पटेल अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा साधने में कांग्रेस के हाथ का खिलौना नहीं बन गए हैं?

पाटीदारों को धोखा दे रहे हार्दिक के लिए चित्र परिणाम

राजनीतिक महत्वाकांक्षा साधने की कोशिश में गुजरात को बर्बाद कर रहे हार्दिक पटेल
हार्दिक पटेल के बारे में कहा जाता है कि वे साधारण घर से आते हैं। 2015 के पहले वे पैदल ही घूमा करते थे। औसत दर्जे के छात्र थे और सामाजिक रुतबे में भी उनका कोई स्थान नहीं था। लेकिन बीते दो सालों में उनका खूब ‘विकास’ हुआ है। अब वे पैदल नहीं बल्कि फॉर्चुनर गाड़ी में घूमते हैं। उनके साथ महंगी गाड़ियों का काफिला चलता है। प्रदेश से बाहर जहां भी जाते हैं हवाई जहाज से ही जाते हैं। सवाल यह कि दो सालों में ही हार्दिक पटेल का इतना विकास कैसे हो गया? कौन है जो उनका इतना ‘विकास’ कर रहा है? उनके फाइनैंसर कौन हैं? इन सवालों के बीच एक सवाल ये भी कि अब वे ओबीसी कोटे में वे आरक्षण की बात नहीं करते, बल्कि वे राजनीति की बात करते हैं और पाटीदार समुदाय को धोखा देने में लग गए हैं।

हार्दिक पटेल भले ही अपने आप को राजनीति से दूर रखने की बात कर रहे हों, लेकिन उनके 10 साथी कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। हार्दिक पटेल के करीबी और पाटीदार आरक्षण समिति की पहली पंक्ति के 10 नेता चुनाव लड़ने जा रहे हैं और कांग्रेस से उनकी ‘डील’ इसी बात की हो रही है न कि पाटीदारों के आरक्षण की। दरअसल हार्दिक पटेल अपनी महत्वाकांक्षा के लिए पाटीदारों को धोखा दे रहे हैं और वे अपनी ‘THE WAR AGAINST RESERVATION’ से भी मुंह मोड़ चुके हैं। जाहिर है वे अब राजनीति का एक चेहरा बन गए हैं और वे किसी का मोहरा भी हैं।

पाटीदार समुदाय को बहकाकर गुजरात को ‘विनाश’ की दिशा में ले जा रहे हार्दिक
गुजरात की सत्ता से करीब दो दशक से बाहर कांग्रेस इस बार हर स्तर पर जाकर राजनीति कर रही है। गुजराती समाज को बांटकर पाटीदारों को ‘अकेला’ खड़ा कर दिया है। आलम यह है कि 50 प्रतिशत के दायरे से अधिक के कोटे में आरक्षण का गैर संवैधानिक वादा भी कर रही है। जाहिर है यह सरासर पाटीदारों के साथ धोखा है। अल्पेश और जिग्नेश जैसे नेताओं को अपने पाले में कर चुकी कांग्रेस की हार्दिक पटेल से हो रही डील भी अब अपने अंतिम चरण में है। माना जा रहा है कि सौदेबाजी की बात पर सहमति बन गई है और हार्दिक के कांग्रेस को समर्थन की बात तो करीब करीब पक्की है। लेकिन गुजरात में पाटीदार समुदाय की प्रतिष्ठा को दांव पर लगाकर हार्दिक आखिर कांग्रेस की कठपुतली क्यों बन गए हैं? दरअसल गुजरात में पटेलों की आबादी करीब 15 प्रतिशत है और करीब 80 सीटों पर पटेल समुदाय का प्रभाव है। पटेल समुदाय भाजपा का मुख्य समर्थक समुदायों में से है। बीजेपी के 182 में से 44 विधायक पटेल जाति से आते हैं। गुजरात में कड़वा, लेउवा और आंजना तीन तरह के पटेल हैं। आंजना पटेल ओबीसी में आते हैं, जबकि कड़वा और लेउवा पटेल ओबीसी आरक्षण की मांग कर रहे हैं।

पाटीदारों के आंदोलन को ‘धोखा’ देकर खुद किंग मेकर बनना चाह रहे हार्दिक पटेल
गुजरात विधानसभा चुनाव में पटेलों को लुभाने के लिए कांग्रेस ने नया दांव चला है। कांग्रेस ने संविधान के अनुच्छेद 31 और 38 (2) के तहत पाटीदारों को आरक्षण देने का प्रस्ताव दिया है। कांग्रेस का कहना है कि यह ओबीसी समेत अन्य आरक्षित जातियों के पहले से लागू 49 फीसदी आरक्षण के दायरे में नहीं आएगा। साफ है कि इसके लिए नये कानून बनाने की आवश्यकता होगी और इस प्रस्ताव पर केंद्र सरकार के पास प्रस्ताव भेजा जाएगा। जाहिर है कांग्रेस इसके तहत पॉलिटिक्स का डबल गेम कर रही है। एक ओर वह पाटीदारों को यह बताना चाह रही है कि वे प्रयासरत हैं और केंद्र इसकी मंजूरी नहीं दे रहा है। जाहिर है इसके तहत उनकी मंशा आरक्षण की वर्तमान स्थिति में किसी भी तरह के फेरबदल से इनकार करती है और पाटीदार समुदाय को इससे धोखा ही मिलने जा रहा है। लेकिन यह भी सत्य है कि इस बीच हार्दिक पटेल एक बड़े नेता बनकर उभरेंगे और उनकी राजनीति चल निकलेगी। इतना ही नहीं वर्तमान में हार्दिक पटेल ऐसी भूमिका में खुद को देख रहे हैं ताकि वे किंग मेकर की भूमिका में सामने आ सकें और अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति कर सकें।

हार्दिक की हर हरकत से मजबूत हो रही कांग्रेस, कमजोर हो रहा ‘गुजरात नुं गौरव’
गुजरात चुनाव में जहां कांग्रेस पाटीदारों को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रही है, पाटीदार समुदाय के बीच इस पर एक राय नहीं है। पाटीदार समुदाय में पुरानी पीढ़ी के लोग बीजेपी के साथ तो हैं ही अब युवाओं में भी हार्दिक पटेल की हरकतों के कारण गुस्सा है। दरअसल पाटीदारों को लगने लगा है कि हार्दिक पटेल आरक्षण की लड़ाई से भटक गए हैं और कांग्रेस की फूट डालो और राज करो की राजनीति का हिस्सा हो गए हैं। अहमदाबाद में पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के नेता हार्दिक पटेल जैसे ही राहुल गांधी से गुपचुप तरीके से मिले तो यह समझ में आने लगा था कि दाल में कुछ काला है। हार्दिक की ये हरकत गुजरात के पाटीदार समुदाय के लोगों को भी अच्छा नहीं लगा। दरअसल पाटीदार समुदाय में से अधिकतर लोगों का मानना है कि आरक्षण की लड़ाई और मांग तो ठीक है, लेकिन इस बहाने कांग्रेस से हाथ मिलाना उचित नहीं है। क्योंकि पाटीदार समुदाय हमेशा से बीजेपी के साथ रही है, बीजेपी में उन्हें हमेशा सम्मान मिला है। थोड़ी नाराजगी के बावजूद भी यह समुदाय बीजेपी के ही साथ रहना चाहता है।

हिंदू समाज को विभाजित करने की कांग्रेसी साजिश का हिस्सा बन गए हैं हार्दिक
संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गई थी तो इसका उद्देश्य सदियों से दबे, कुचले शोषित और दलित वर्ग को समाज की मुख्य धारा में लाना था। इसके लिए संविधान में 10 वर्षों तक उन्हें आरक्षण देने का प्रावधान किया गया था और लक्ष्य पूरा नही होने पर इसे अगले 10 वर्षों तक बढ़ाने का भी प्रावधान किया गया। इससे दलित और वंचित वर्ग को काफी लाभ भी मिला और धीरे-धीरे उन्हें समाज में बराबरी का सम्मान मिला। कांग्रेस पार्टी ने इसे राजनीति का हथियार बना लिया और इसे खूब भुनाया। इसके बाद कांग्रेस को जैसे-जैसे राजनीतिक जरूरत महसूस होती गई, उसने अपनी सुविधा से अनेक जातियों को इस वर्ग में शामिल करना प्रारंभ कर दिया। आज आरक्षण के राजनीतक महत्व को देखते हुये अनेक जातियां अपने को अनु.जाति/जनजाति में शामिल करने की मांग कर रही है तो अनेक जातियां पिछड़े वर्ग में शामिल करने के लिये। देखने में गुजरात का पटेल आंदोलन भी इसी श्रंखला की एक कड़ी दिखाई देता है, लेकिन यह कांग्रेस की उसी राजनीति का हिस्सा भर है जिसके तहत सत्तर वर्षों में से साठ वर्षों तक कांग्रेस शासन करती रही है। यानी फूट डालो और राज करो। हार्दिक पटेल ने 22 अक्‍टूबर को गोधरा में मुस्लिम समुदाय के लोगों से भी मुलाकात की। वहां उन्होंने पटेलों और मुस्लिमों को एक साथ आने का न्योता दिया। ये वही गोधरा है जहां 59 कार सेवकों को जिंदा जला दिया गया था और पूरा गुजरात जल उठा था, लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि हार्दिक पटेल ने उसी गोधरा में जाकर मुस्लिमों से मुलाकात क्यों की? जाहिर है हिंदू समाज को विभाजित करने और उसे कमजोर करने की कुत्सित कोशिश एक बार फिर गुजरात में जारी है, लेकिन क्या गुजरात की जनता कांग्रेस की इस कुटिल राजनीति को सफल होने देगी।

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