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प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव प्रचार में उतरने का मतलब होता है विरोधियों का सफाया!

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भारतीय राजनीति में अब ऐसी स्थिति आ गई है कि मोदी Vs ऑल हो गया है। कांग्रेस हो या फिर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी जैसे क्षेत्रीय दल या फिर आम आदमी पार्टी जैसे नए दल, सबके निशाने पर नरेंद्र मोदी हैं। ममता बनर्जी, एम करुणानिधि, नवीन पटनायक, लालू यादव जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों के टारगेट भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले एक विशेष तरह का ध्रुवीकरण था, लेकिन बीते साढ़े तीन वर्षों में एक खास तरह का पोलराइजेशन हुआ है जो केवल मोदी विरोध के नाम पर है। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र हो या फिर अब गुजरात… सभी जगहों पर मोदी विरोध के नाम पर सैद्धांतिक और व्यावहारिक रूप से अलग-अलग किनारों पर खड़ी पार्टियां एक साथ आती रही हैं।

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दरअसल प्रधानमंत्री मोदी ने जाति, वर्ग, संप्रदाय से ऊपर उठकर सबका साथ, सबका विकास की राजनीति की ऐसी लकीर खींची है जिसने प्रधानमंत्री मोदी का कद इतना ऊंचा कर दिया है कि विभाजनकारी ताकतें खुद-ब-खुद छोटी होती चली गई हैं। बीते साढ़े तीन सालों के दौरान हुए चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी पार्टी और वोटरों के बीच सबसे बड़ी कड़ी साबित हुए हैं। …चाहे उनके वादे हों या उनकी नीतियां हों… प्रधानमंत्री की हर चीज वोटरों को पसंद आई और चुनाव-दर-चुनाव जीत मिलती चली गई, लेकिन विरोधी दलों का यह प्रयोग अभी भी जारी है और हालिया गुजरात चुनाव में भी यह देखा जा रहा है।

गुजरात में एक हुईं विभाजनकारी ताकतें
गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस किसी भी हद को पार कर जीत हासिल करना चाहती है और इसके लिए पार्टी ने राज्य में अनेकों साजिशें रची हैं। हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवाणी और प्रवीण राम जैसे चेहरों को आगे कर प्रदेश के जनमानस में जातिवाद और सम्प्रदायवाद का जहर भरा जा रहा है। लेकिन यह देखा गया है कि जब भी प्रधानमंत्री मोदी मैदान में आते हैं तो सबका साथ, सबका विकास की जीत होती है और भाजपा भारी जीत हासिल करती है। 2002 में ‘दंगाई’ कहने के बावजूद नरेन्द्र मोदी ने सर्वसमाज को साथ रखा और विकास की बुनियाद रखी वह उनके गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए हमेशा दिखी। 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में गुजरात की जनता उनके साथ खड़ी रही।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जबरदस्त जीत
महाराष्ट्र विधानसभा में विभाजनकारी ताकतों ने एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी को घेरना चाहा, लेकिन प्रदेश की जनता ने उनका साथ दिया और भारी जीत मिली। कांग्रेस और एनसीपी जैसी मजबूत राजनीतिक शक्तियों ने पुरजोर विरोध किया। शिवसेना का भाजपा का साथ छोड़ने के बावजूद भाजपा ने जिस तरह से जीत का परचम लहराया वह इतिहास है।

दरअसल महाराष्ट्र में हमेशा ही शिवसेना के समक्ष भाजपा छोटी पार्टी के तौर पर रही, लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा की 288 विधानसभा सीटों में से भाजपा 123 सीटें हासिल कर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। सत्तारूढ़ कांग्रेस 42 सीटों के साथ यहां तीसरे स्थान पर खिसक गई, जबकि शिवसेना 63 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही वहीं एनसीपी को 41 सीटें मिलीं। जाहिर है यह जीत प्रधानमंत्री मोदी पर लोगों के भरोसे की जीत थी और मोदी विरोधियों को जनता का जवाब था। 

उत्तर प्रदेश की जनता को ‘साथ’ पसंद नहीं आया
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी परस्पर विरोधी विचारों के बाद भी मोदी विरोध के नाम पर एक हो गए। दोनों ही पार्टियों ने राहुल गांधी और अखिलेश यादव के युवा चेहरों को प्रधानमंत्री मोदी के सामने रखा और नारा दिया- ”यूपी को ये साथ पसंद है”, लेकिन लोगों को प्रधानमंत्री मोदी पर ही यकीन रहा। प्रदेश के लोगों ने विरोधी ताकतों को पहचान लिया और प्रधानमंत्री मोदी में अपनी उम्मीदों को एक शख्स में पूरे होते देखा। लोगों ने जाति, वर्ग और धार्मिक चिंताओं से ऊपर उठकर वोट दिया। जाति और संप्रदाय की गहरी खाई को प्रधानमंत्री मोदी की छवि ने खत्म किया और लोगों की आशा आकांक्षा को पूरा करने वाले व्यक्तित्व के तौर पर भाजपा को अपार जनसमर्थन मिला। आलम यह रहा कि भाजपा और सहयोगी दलों को 325 सीटें मिली और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी 7 सीटों पर सिमट कर रह गई।प्रधानमंत्री की छवि के आगे एक बार फिर सभी ‘मोदी विरोधी’ बौने साबित हो गए और गुजरात में भी वही होने जा रहा है !

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