Home तीन साल बेमिसाल पीएम मोदी की सूझबूझ से साकार हुआ ‘एक देश-एक टैक्स’ का सपना

पीएम मोदी की सूझबूझ से साकार हुआ ‘एक देश-एक टैक्स’ का सपना

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एक देश में एक टैक्स प्रणाली का सपना भारत में पिछले एक दशक से भी अधिक समय से देखा जा रहा था। लेकिन हर बार गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) की गाड़ी अटक-अटक कर रुक जा रही थी। तीन साल पहले सत्ता संभालते ही पीएम मोदी ने जीएसटी को अपनी सरकार की प्राथमिकता के टॉप गियर में डालकर काम करना शुरू किया। परिणाम है कि 30 जून की मध्यरात्रि को स्वतंत्र भारत के इतिहास में इनडायरेक्ट टैक्स के क्षेत्र में सबसे बड़ी क्रांति होने जा रही है। भारत में हो रहे इस टैक्स रिफॉर्म्स के एकमात्र सूत्रधार स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।

पीएम मोदी की राजनीतिक इच्छाशक्ति का फल जीएसटी
भारत जैसे विविधता वाले देश में सभी राजनीतिक दलों और राज्यों को साथ लेकर एक साथ जीएसटी को लागू करवाना सामान्य नेतृत्व कौशल वाले व्यक्तित्व के वश की बात नहीं है। ऐसा बदलाव पीएम मोदी जैसी दूरदर्शी सोच वाला राजनेता ही ला सकता है। आखिर 6 दशकों से अधिक अवधि में किसी प्रधानमंत्री ने एक देश, एक टैक्स की दिशा में सोचने की सच्ची पहल क्यों नहीं की ? अगर सोचा तो उसपर अमल कराने में असफल क्यों रहे? क्योंकि इसके लिए विजन चाहिए जो पीएम मोदी के पास है। पीएम मोदी के इस विजन का लाभ अब भारत की सवा सौ करोड़ जनता को मिलने जा रहा है। लेकिन ये काम इतना आसान नहीं था। पीएम मोदी की राजनीतिक इच्छाशक्ति और देश के प्रति उनके असीम प्रेम का परिणाम है कि उन्हें इस कठिन कार्य को पूरा करने का हौसला मिला।

सफल रही पीएम मोदी की रणनीति
मोदी सरकार के लिए लोकसभा से जीएसटी पास कराना मुश्किल नहीं था। दिक्कत राज्यसभा में आ रही थी। संविधान संशोधन विधेयक होने के नाते वहां 2/3 बहुमत की आवश्यकता थी। मोदी सरकार बनने के बाद से उच्च सदन में कांग्रेस का जो रवैया रहा था उसको लेकर कई तरह की आशंकाएं पैदा होनी स्वभाविक थी। लेकिन पीएम मोदी ने देशहित में राजनीति को दूर रखकर जीएसटी के लिए पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को साथ लेने की पहल शुरू की। अपने मंत्रियों को भेजकर कांग्रेस के बाकी नेताओं से भी बातचीत को आगे बढ़ाया। उनकी जो भी आवश्यक चिंताएं थीं उन्हें ध्यान में रखकर उसका समाधान किया। आखिरकार पीएम मोदी को सफलता मिली।

राजनीतिक सूझबूझ से राज्यसभा में चुनौती को किया पार
पीएम मोदी की सोच रही कि कांग्रेस के साथ-साथ बाकी विपक्षी पार्टियों का भी सहयोग मिलना अपेक्षित है। इसकी पहल उन्होंने स्वयं शुरू की। सभी राजनीतिक दलों को जीएसटी की आवश्यकता से अवगत कराया। छोटी-छोटी विपक्षी पार्टियों की चिंताओं को भी दूर करने का प्रयास किया। उनकी आवश्यक मांगों को संशोधनों में जगह दी गई। जैसे-जैसे बाकी राजनीतिक दलों का समर्थन मिलता गया, कांग्रेस नेतृत्व भी दबाव में आने लगा।

कांग्रेस की सहयोगियों को भी साथ लिया
कांग्रेस की मुश्किल ये थी कि धीरे-धीरे उसकी सहयोगी पार्टियां भी जीएसटी के समर्थन में उतरती चली गईं। बिहार की सत्ताधारी जेडीयू तो बहुत उत्साहित थी। बड़ी बात है कि आरजेडी ने भी इस मामले में जेडीयू के साथ ही रहने का निर्णय लिया। उसी तरह टीएमसी भी इसका अधिक विरोध नहीं कर सकी। क्योंकि जीएसटी लागू होने का सबसे अधिक लाभ पिछड़े राज्यों को ही मिलने की संभावना है। जीएसटी के लागू करने और उसकी प्रणाली पर भले ही कुछ मतभेद रहे, लेकिन आमतौर पर पीएम मोदी ने सभी दलों को इसके लिए तैयार कर लिया कि ये संविधान संशोधन देश के लिए बहुत आवश्यक है।

आधे राज्यों से मुहर लगाने की चुनौती को पार किया
जीएसटी एक ऐसा संविधान संशोधन विधेयक था, जिसे लोकसभा और राज्यसभा से पास कराने के बाद कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं से भी मुहर लगाना जरूरी था। मोदी सरकार को भरोसा था कि ये कार्य बहुत अधिक मुश्किल नहीं है। लेकिन बिहार, ओडिशा और बाकी कांग्रेस शासित राज्यों के सहयोग से इस जिम्मेदारी को पूरा करने में उम्मीद से कम परेशानी हुई। जैसे ही देश के आधे से अधिक विधानसभाओं ने आजादी के बाद इस सबसे टैक्स रिफॉर्म्स पर हामी दिखाई, जीएसटी का सपना लगभग साकार होने की स्थिति में आ गया।

जीएसटी कानूनों पर फिर से संसद की मुहर
जब राज्य विधानसभाओं ने जीएसटी संविधान संशोधन पर मुहर लगा दी। जो इसके बाद इससे जुड़े विभिन्न कानूनों को फिर से संसद से पास कराया जाना था। पहले की तरह एक बार फिर से इसपर चर्चा शुरू हुई। कई बाधाएं भी खड़ी हुईं, लेकिन पीएम मोदी की सरकार ने हर बाधाओं को आसानी से पार कर लिया।

जीएसटी काउंसिल में डीलिंग
मोदी सरकार ने एक बहुत बड़े माइलस्टोन को तो पार कर लिया था। लेकिन वस्तुओं और सेवाओं के टैक्स का रेट तय करने की एक बहुत बड़ी चुनौती बाकी थी। केंद्र सरकार ने एक बार फिर जीएसटी काउंसिल में इसके लिए भगीरथ प्रयास शुरू की। राज्यों के वित्त मंत्रियों के साथ कई दौर की चर्चा की गई। वस्तुओं के टैक्स दरों को लेकर सबकी अपनी-अपनी हितों की चिंताएं स्वभाविक थीं। किसी एक चीज के लिए एक विशेष दर को लेकर सबको तैयार करना टेढ़ी खीर साबित हो रही थी। लेकिन सरकार ने सबकी चिंताओं का समाधान निकाला। अलग-अलग चीजों के लिए अलग-अलग टैक्स रेट निर्धारित किए गए। पीएम मोदी ने एक बार साबित किया कि अगर देशहित के प्रति समर्पण हो तो सबका साथ लेने में परेशानी जरूर हो सकती है, लेकिन ये असंभव भी नहीं है।

30 जून और एक जुलाई कि दरमियानी रात से जीएसटी लागू होते ही भारत उन 160 से अधिक देशों की लिस्ट में शामिल हो जाएगा, जहां ये व्यवस्था पहले से ही चल रही है। अगर जीएसटी के लिए लोकतांत्रिक सोच नहीं दिखाई गई होती तो भारत जैसे विविधता वाले देश में इसे संभव कर पाना नामुमकिन था। प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत कौशल के चलते ही सरकार को सभी राज्यों और राजनीतिक दलों का सकारात्मक सहयोग मिला। उनकी वजह से इस मसले पर संवाद का स्तर और चर्चा इतने ऊंचे स्तर पर गया कि हर देशवासी का सपना पूरा हुआ है। पीएम मोदी के इस प्रयास की तमाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं खूब सराहना कर रही हैं। सबका कहना है कि देश में विकास की गति बढ़ाने, विकास दर बढ़ाने, कारोबार और रोजगार के नए द्वार खोलने के लिए ये सुधार रामबाण का काम करेगा।

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