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इतिहासकार रामचंद्र गुहा का प्रधानमंत्री मोदी से वैमनस्य

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रामचंद्र गुहा, देश के जाने-माने इतिहासकार हैं और विश्व के तमाम विश्वविद्यालयों में अध्यापन का काम कर चुके हैं। इतिहासकार, घटनाओं और व्यक्तियों का विश्लेषण वृहद परिपेक्ष्य में करता है और एक समेकित दृष्टि देने का प्रयास करता है। रामचंद्र गुहा के साथ ऐसा नहीं है, वह जब भी प्रधानमंत्री मोदी को लेकर बोलते या लिखते हैं तो संकुचित हो जाते हैं। वह इतिहास की विभिन्न धाराओं का विशलेष्ण करते हुए, पूर्वाग्रहों से ग्रसित दिखाई देते हैं। वर्तमान में रामचंद्र गुहा, प्रधानमंत्री मोदी के प्रति ऐसे पूर्वाग्रहों से ग्रसित हैं, जो उन्हें वैमनस्य की सीमा तक ले जाती है। रामचंद्र गुहा के सोशल मीडिया एकाउंट पर प्रधानमंत्री मोदी को लेकर की गई टिप्पणियों से उनके वैमनस्यपूर्ण पूर्वाग्रहों का स्पष्ट भान होता है। आइए, आपको रामचंद्र गुहा के वैमनस्य से भरे सोशल मीडिया कमेंटस के बारे में बताते हैं-

रामचंद्र गुहा का वैमनस्य-1
जनवरी में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का 6 दिवसीय दौरे पर भारत आना रामचंद्र गुहा के गले के नीचे नहीं उतरा। इजरायली प्रधानमंत्री को भारत आमंत्रित करने पर रामचंद्र गुहा ने 17 जनवरी को Twitter पर प्रधानमंत्री मोदी के विरोध में लिखा-

रामचंद्र गुहा का वैमनस्य-2
इजरायल के प्रधानमंत्री को भारत आमंत्रित करने पर, रामचंद्र गुहा ने इतिहासकार के निष्पक्ष विश्लेषण के धर्म को छोड़कर, अपने पूर्वाग्रहों की संकुचित सोच दिखाते हुए Twitter पर अमर्यादित टिप्पणी की। 16 जनवरी को बेंजामिन नेतन्याहू को जब उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ताजमहल देखने आगरा पहुंचे, तो Twitter पर लिखा-

रामचंद्र गुहा का वैमनस्य-3
वस्तुस्थिति को देखना, एक इतिहासकार का सबसे बड़ा धर्म होता है, लेकिन रामचंद्र गुहा अटकलबाजी के जरिए प्रधानमंत्री मोदी के व्यक्तित्व का विश्लेषण करते हैं। 3 जनवरी को Twitter पर रामचंद्र गुहा ने प्रधानमंत्री मोदी के विरोध में अटकलबाजी करते हुए अमर्यादित टिप्पणी में लिखा-

रामचंद्र गुहा का वैमनस्य-4
रामचंद्र गुहा का प्रधानमंत्री मोदी से वैमनस्य इस हद तक है कि वह किसी भी घटना के जरिए प्रधानमंत्री मोदी की छवि को नकारात्मक रुप में पेश करते हैं। 13 दिसंबर को राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव के दूसरे चरण के ठीक एक दिन पहले गुजराती टीवी चैनलों को जो इंटरव्यू दिया था, उस पर चुनाव आयोग ने रोक लगा दी, इस घटना को भी प्रधानमंत्री मोदी से जोड़कर रामचंद्र गुहा ने 14 दिसंबर को Twitter पर लिखा-

रामचंद्र गुहा का वैमनस्य-5
अमेरिकी राष्ट्रपति का येरुसलम को इजरायल की राजधानी के रुप में मान्यता देने के मुद्दे पर भी उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर 22 दिसंबर को Twitter पर अमर्यादित टिप्पणी की। उनकी यह टिप्पणी सरासर निराधार साबित हुई, जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में येरुसलम को इजरायल की राजधानी बनाने का विरोध किया।

रामचंद्र गुहा का वैमनस्य-6
दिल्ली के वायु प्रदुषण की समस्या को भी प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली से जोड़ते हुए, 7 नवंबर के Tweets में सीधा हमला किया। हकीकत में दिल्ली की एक अपनी चुनी हुई सरकार है, और उसकी दिल्ली के वायु प्रदुषण से निपटने की पूरी जिम्मेदारी है। एक तरफ गुहा प्रधानमंत्री पर आरोप लगाते हैं कि शासन को केन्द्रित कर रखा है, और दिल्ली के हर काम में दखलदांजी करते हैं, दूसरी तरफ Tweets में कहते हैं कि दिल्ली की ठीक से देखभाल नहीं कर रहे हैं। रामचंद्र गुहा जैसे लोग हर हाल में प्रधानमंत्री मोदी के विरोध में चित भी मेरी और पट भी मेरी के नुस्खे को अपनाने से बाज नहीं आते।

रामचंद्र गुहा का वैमनस्य-7
फिल्म पद्मावत को लेकर अलग-अलग राज्यों में चल रहे विरोध प्रदर्शनों को लेकर भी रामचंद्र गुहा ने प्रधानमंत्री मोदी से जोड़ दिया। यह सभी को पता है कि कानून व्यवस्था, राज्य सरकार के दायरे में आता है, और केन्द्र सरकार ने फिल्म पद्मावत पर किसी तरह का बैन नहीं लगाया। यह सारा मामला राज्य सरकारों और न्यायलय के बीच का है, लेकिन वो पीएम मोदी को नकारात्मक रुप में पेश करते हुए 20 जनवरी के Tweet में लिखते हैं-

रामचंद्र गुहा का वैमनस्य-8
प्रधानमंत्री मोदी की यदि कोई प्रशंसा करता है तो रामचंद्र गुहा को तनिक भी पसंद नहीं आता है। अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान या विराट कोहली का प्रधानमंत्री के साथ होना इनको थोड़ा भी नहीं भाता है। प्रधानमंत्री मोदी के प्रति अपने इसी वैमनस्य को दर्शाते हुए 12 नवंबर को Twitter पर लिखा-

इतिहास को वृहद परिपेक्ष्य में प्रस्तुत करना इतिहासकार का सबसे बड़ा धर्म होता ताकि आने वाली पीढ़ियों को घटनाओं को निष्पक्ष रुप से समझकर, मानव सभ्यता को आगे बढ़ाने में मदद मिल सके। जब रामचंद्र गुहा जैसे इतिहासकार प्रधानमंत्री मोदी जैसे व्यक्ति विशेष के प्रति वैमनस्य के भाव के साथ इतिहास की घटनाओं का विश्लेषण करते हैं, तो एक पक्षपातपूर्ण इतिहास हमारे सामने आता है, जैसा कि पिछले कई दशकों से इस देश के इतिहासकार करते आ रहे हैं।

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