डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित को भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला। ये भीड़ वो भीड़ थी, जो मस्जिद से बाहर निकल रही थी। डीएसपी अयूब पंडित को नंगा कर उन्हें पत्थरों से मार-मार कर उनकी जान लेने वाली भीड़ नमाजी थी। नमाज पढ़कर निकली थी। जो जिन्दा तस्वीर सामने आयी है वह चुगली कर रही है कि घटना के वक्त मस्जिद के भीतर से माइक पर पाक रमजान महीने में खुदा की खिदमत वाली पंक्तियां भी कही जा रही थीं। इस घटना ने नमाजियों को बदनाम किया है, मस्जिद पर कलंक लगाया है और खुदा की खिदमत में पढ़ी जा रही पंक्तियों की पवित्रता नष्ट कर दी है।
Horrific video of DSP lynching. All these murderers must be identified and booked. pic.twitter.com/qrr8bUdjJp
— Manak Gupta (@manakgupta) June 23, 2017
कोई भी मजहबी इतना क्रूर कैसे हो सकता है कि अपनी ही जमात के इंसान को सरकारी वर्दी पहनने की इतनी क्रूर सज़ा दे। इस घटना पर प्रतिक्रियाओं का चरित्र भी फिजां में फैले वैचारिक,सामाजिक और मानसिक प्रदूषण से युक्त है। बावजूद इसके हवा सांस लेने वाली इसलिए है क्योंकि ज्यादातर लोग इस घटना को बदनुमा दाग के रूप में ले रहे हैं। कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने तो अपने गुस्से का इजहार इस रूप में किया है कि अगर वर्दीधारी पुलिस अपना सब्र तोड़ दें तो वो दिन लौट सकते हैं जब पुलिस की जिप्सी देखकर रियाया दुम दबाकर भाग खड़ी होती थी, घरों में छिप जाया करती थी।
स्थानीय पत्रकार मीर हिलाल की पत्रकारिता तो देखिए, जो भीड़ के हाथों मारे गये डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित को ही दोषी ठहरा रहे हैं। पुलिस चौकी घटनास्थल से 200-300 मीटर की दूरी पर है इसलिए दोष पुलिस को ही दे रहे हैं। वो ये भी कहते हैं कि पवित्र रमजान के महीने में रात के वक्त ऐसी सुरक्षा की जरूरत ही नहीं थी। इससे शर्मनाक दलील और क्या हो सकती है। डीएसपी को भीड़ नंगा कर रही है, पत्थर से मार-मार कर जान ले रही है और उसके लिए दिवंगत डीएसपी को ही दोषी ठहराया जा रहा है ये कहकर कि उनका फोटो लेने का काम संदिग्ध था! तारिक फतेह ने ऐसे पत्रकार पर बहुत सही सवाल जड़ा है और उन्हें जेहादी पत्रकार बताया है।
Disgusting. Jihadi journalist @MirHilaal blames DSP #AyubPandit for being lynched by a Muslim Mob. #MirHilaal ws only 100 metres 4m killing pic.twitter.com/Jv71yZU5bf
— Tarek Fatah (@TarekFatah) June 23, 2017
राजदीप सरदेसाईयों की तटस्थता कम घृणित नहीं है जो इस घटना की निन्दा नहीं करते, उन्मादी नमाजियों पर कार्रवाई की मांग नहीं करते बल्कि सवाल करते हैं कि कश्मीर में खूनी संघर्ष को कबूल कर लेने तक हमें कितने और डीएसपी की जान गंवानी पड़ेगी? राजदीप सरदेसाईजी क्या एक डीएसपी की कुर्बानी का ये वक्त यह कबूल करवाने के लिए होना चाहिए कि सरकार कश्मीर में खूनी संघर्ष की बात कबूल करे? शर्मनाक है आपकी पत्रकारिता!
How many more DSP Mohd Ayubs will have to die before we accept that there is a bloody war in Kashmir with no winners, only victims?
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) June 23, 2017
सवाल उठ रहे हैं कि सरकार कब तक नरम रुख अपनाती रहेगी? अगर कोई भी हमारे डीएसपी को क्रूर मौत देने में भी खौफ नहीं रखता है, तो कानून का शासन कायम कैसे रह सकेगा? मेजर गौरव आर्या ने ट्वीट कर यही सवाल उठाया है।
DSP Mohd. Ayub Pandit beaten to death by mob near Jamia Masjid, Srinagar. Extremely tragic. Why are we such a soft state? #TakeOffTheGloves https://t.co/jtFIUfYIFS
— Major Gaurav Arya (@majorgauravarya) June 23, 2017
मधु पूर्णिमा किश्वर ने बहुत सही आशंका जताई है कि मीरवाइज मस्जिद के सामने घटी यह क्रूर घटना जम्मू-कश्मीर के लिए टर्निंग प्वाइन्ट साबित होने वाला है। महबूबा मुफ्ती को इसकी आशंका है- ये बताते हुए वह ट्वीट करती हैं कि पीडीपी के लोगों के साथ भी यही सलूक किया जा सकता है।
Lynching of DSP in Kashmir outside Mirwaiz mosque will prove 2b turning point in Kashmir politics.Mehbooba knows same could happen to PDP.
— MadhuPurnima Kishwar (@madhukishwar) June 23, 2017
डीएसपी पंडित की हत्या एक खतरनाक स्थिति को बयां कर रही है। एक धार्मिक स्थल से निकली धार्मिक भीड़ अपने ही धर्म के एक अफसर की इसलिए जान ले लेती है क्योंकि वह सरकार के लिए ड्यूटी कर रहा है। सरकार के खिलाफ नफ़रत को इस हद तक पहुंचाने वाले लोगों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। ये सरकार की नरमी है कि ऐसी घटनाएं घट जाती हैं वरना ऐसी घटनाओं के बाद सलूक ऐसा होना चाहिए कि दोबारा कोई ऐसी वारदात अंजाम देने के बारे में सोचे तक नहीं। जो लोग खुद डीएसपी अयूब पंडित को अपनी मौत का जिम्मेदार बता रहे हैं ऐसे जेहादी दलील रखने वालों को भी बख्शा नहीं जाना चाहिए। उन्हें भी कानून के कठघरे में खड़ा करने की जरूरत है।