Home विचार देश को ‘Medieval Period’ में ले जाने का काम करती है कांग्रेस

देश को ‘Medieval Period’ में ले जाने का काम करती है कांग्रेस

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मध्ययुगीन काल में वंशवाद, सामंतवाद, अवसरवादिता और समाज को विभिन्न वर्गों में बांटकर देखने की विचारधारा का बोलबाला था। ऐसी ही वैचारिक शक्तियों के पाश में आज भी देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस जकड़ी हुई है। भले ही इस पार्टी का नया अध्यक्ष युवा राहुल गांधी हो। राहुल गांधी के युवा होने का यह मतलब नहीं है कि कांग्रेस आधुनिक और प्रजातांत्रिक विचारों और मूल्यों की पार्टी हो गई है। देखने में युवा लगने वाली इस पार्टी के कर्म और सोच मध्ययुगीन काल के हैं, जिसमें वंशवाद, सामंतवाद,अवसरवादिता और समाज को विभिन्न वर्गों में बांटकर देखने की शक्तियों की पूजा की जाती है। कांग्रेस के उन्हीं मध्ययुगीन शक्तियों के गिरफ्त में होने के उदाहरणों की एक लंबी फेहरिस्त है-पार्टी में वंशवाद – आजादी के बाद कांग्रेस का नेतृत्व एक ही परिवार के हाथों में है। इस परिवार के पास ऐसा कोई दैवीय फरमान नहीं है कि इसे ही कांग्रेस का नेतृत्व करना है, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से पंडित जवाहर लाल नेहरू को स्वतंत्रता के बाद देश का प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला, जिसका लाभ उठाते हुए उन्होंने अपनी बेटी इंदिरा गांधी को सत्ता की बागडोर संभालने के लिए तैयार कर दिया। इसी तरह इंदिरा गांधी ने अपने पुत्र संजय गांधी को सत्ता का उत्तराधिकारी बनाने का प्रयास किया, लेकिन अकाल मृत्यु हो जाने के कारण इंदिरा गांधी को अपने बड़े बेटे राजीव गांधी को सत्ता का हिस्सेदार बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा। प्रश्न उठता है कि इंदिरा गांधी ने कांग्रेस पार्टी से किसी और को क्यों नहीं चुना ? फिर राजीव गांधी की हत्या के बाद, उनकी पत्नी सोनिया गांधी ही पार्टी की अध्यक्ष बनीं। आज, 20 साल बाद, एक बार फिर पार्टी की कमान सोनिया गांधी ने अपने पुत्र राहुल गांधी को सौंप दिया है। इस तरह कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व का दायित्व, गांधी परिवार के ही सदस्य को मिलता रहा है। यह इस बात को रेखांकित करता है कि पार्टी आज भी वंशवाद की मानसिकता से ग्रसित है। वर्गों में विभाजित करके, समाज को देखने की सोच-कांग्रेस भारतीय समाज की विभिन्नता के स्वरूप को संजोने के बजाय, उसे विभक्त करने का काम करती रही है। नेहरू की परंपरा ने देश के सूक्ष्म सांस्कृतिक ताने-बाने को आत्मसात किये बगैर समाज को विभिन्न धर्मों, संप्रदायों और जातियों के गुच्छे की तरह से देखने की सोच को कांग्रेस में पल्लवित किया। इसका परिणाम यह रहा कि कांग्रेस ने सत्ता पर अपना कब्जा बनाये रखने के लिए देश की इस विभिन्नता को वोट बैंक में बदल दिया। जिस वर्ग के वोट मिलने से सत्ता बची रह सकती है, उस वर्ग का तुष्टिकरण इन्होंने अपना धर्म समझ लिया। इतिहास में कांग्रेस की इस सोच के अनेकों उदाहरण है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज भी कांग्रेस उसी रास्ते पर चल रही है।गुजरात के समाज को पाटीदार, दलित और पिछड़ों में बांट दिया- अभी हाल ही में संपन्न हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में सत्ता पाने के लालच में अंधी कांग्रेस ने गुजरात के समाज को वर्गों में बांट दिया। हार्दिक पटेल को पाटीदार पटेल के नेता के रुप में, तो जिग्नेश मेवाणी को दलित समाज के नेता के रूप में, और अल्पेश ठाकोर को अन्य पिछड़ा वर्ग के नेता के रूप में उभरने की महत्वाकांक्षा को बरगलाया, फिर इनकी तुष्टिकरण के लिए चुनाव साथ में लड़ने का फैसला किया। उत्तर प्रदेश के समाज को धर्म और जाति में बांट दिया-गुजरात चुनाव से पहले, इस साल की शुरुआत में, राजनीतिक रूप से अति महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में चुनाव जीत कर सत्ता में आने के लिए समाज को बांटने की कोशिश की। प्रदेश को धर्म के आधार पर हिन्दू और मुस्लिम में तो बांटा ही, हिन्दुओं को भी जातियों के आधार पर बांट कर अधिक से अधिक वोट हासिल करने के लिए गठबंधन बनाये। इन गठबंधनों का आधार मात्र यही था कि कौन सी पार्टी किस वर्ग का अधिक से अधिक वोट लेकर आ सकती है। समाजवादी पार्टी से गठबंधन इसलिए किया कि उसके मुस्लिम और यादव वोट से चुनावों में जीत पक्की हो जायेगी। कांग्रेस ने सभी के विकास या समृद्धि के रास्ते पर न चल कर चुनावों में फायदा पहुंचाने वाले वर्गों के तुष्टिकरण का काम किया, जो आसान और सुगम था।

महाराष्ट्र को बांटने का काम-गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश के साथ देश का ऐसा कोई प्रदेश नहीं है, जहां कांग्रेस ने समाज की विभिन्नता का अनुचित लाभ उठाते हुए, वोटबैंक में न बदला हो। महाराष्ट्र में मराठों को नौकरियों में आरक्षण के लिए बरगला कर राज्य में तूफान खड़ा करने का काम किया। इस तरह से महाराष्ट्र के समाज को मराठी और गैर-मराठियों में बांटने का कुत्सित खेल खेला।

देश को धर्म के नाम पर बांट दिया- देश की विविधता को वोटबैंक के रूप में देखने वाली कांग्रेस ने मुस्लिम नेताओं की महत्वाकांक्षाओं का भरपूर लाभ उठाया। इन नेताओं को तुष्ट करके मुस्लिम समाज का वोट बटरोने का फॉर्मूला कांग्रेस ने निकाला, और देश को धर्म के आधार पर बांट दिया। इसका कई चुनावों में कांग्रेस फायदा उठाती रही। कांग्रेस के इसी फॉर्मूले को कई क्षेत्रीय दलों ने भी अपनाना शुरू कर दिया। उत्तर प्रदेश में समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी, तो बिहार में राष्ट्रीय जनता दल ने। आज भी धर्म को कांग्रेस वोटबैंक के रूप में ही देखती है।

देश में ‘भगवा आतंकवाद’ का जहर बोया-देश को वोट के लिए धर्म और जाति के वर्गों में बांटकर चुनाव जीतने की रणनीति में माहिर कांग्रेस ने मुस्लिम समाज को तुष्ट करने के लिए, मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार में रहे गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भगवा आतंकवाद के स्वरुप को जन्म दिया, ताकि मुस्लिम आतंकवाद के मनोवैज्ञानिक प्रभाव को कम किया जा सके, जिससे मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस के साथ ही बना रहे।

देश में दलितों के दिलों में जहर बोने का काम– ऊना में दलितों की पिटाई का कांड बिहार चुनाव से ठीक पहले करवाया गया। इसका मकसद था कि देश भर के दलितों में ये संदेश जाए कि बीजेपी के राज्यों में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं। लेकिन जांच में सामने आया कि समधियाल गांव का सरपंच प्रफुल कोराट ऊना के कांग्रेसी विधायक और कुछ दूसरे कांग्रेसी नेताओं के साथ संपर्क में था। सरपंच ने ही फोन करके बाहर से हमलावरों को बुलाया था। जो वीडियो वायरल हुआ था वो भी प्रफुल्ल कारोट के फोन से ही बना था। कांग्रेस ने यह जहर देश में सिर्फ इसलिए पैदा किया ताकि चुनावों में दलित वोटों का फायदा लिया जा सके। यही नहीं हैदराबाद विश्वविद्यालय में दलित युवक की आत्महत्या जो एक कानून व्यवस्था की समस्या थी उसे राष्ट्रीय समस्या के रूप में पेश करने के पीछे भी यही मकसद था कि दलितों के वोटबैंक पर कब्जा किया जाए।

कांग्रेस का नेतृत्व आज राहुल गांधी के हाथ में है, लेकिन कांग्रेस की कार्यशैली मध्ययुगीन सभ्यता की है, जिसमें राष्ट्र से बड़ा स्वार्थ होता है। राहुल गांधी की पूरी कवायद यही है कि किस तरह से कांग्रेस को वापस सत्ता पर काबिज किया जाए, उनका यह मकसद नहीं है कि देश की विविधता को एक सूत्र में पिरोते हुए विकास की ऊंचाईयों पर ले जाने का काम किया जाए।

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