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कर्नाटक में हार के बाद कांग्रेस में बगावती सुर, राहुल और सिद्धारमैया पर उठे सवाल

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कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी को जनता ने नकार दिया है। पांच वर्षों से सत्ता पर काबिज कांग्रेस 78 सीटों पर सिमट गई है। कांग्रेस की इस करारी हार के बाद पार्टी की अंदरूनी कलह भी बाहर निकलने लगी है। पार्टी के कई बड़े नेताओं ने हार के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सिद्धारमैया को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया है। इनका कहना है कि कांग्रेस आलाकमान यानी राहुल गांधी ने सिद्धारमैया को खुली छूट दे दी थी और अहंकार में डूबे सिद्धारमैया ने अपनी मनमानी चलाई, इसी के चलते कर्नाटक में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी।

सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला फ्लॉप
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली ने कर्नाटक की हार के लिए पार्टी की नीतियों को दोषी ठहराया है। उन्होंने कहा कि कर्नाटक में लिंगायत का दांव पार्टी को उल्टा पड़ा और सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला फ्लॉप रहा। जाहिर है कि लिंगायत और सोशल इंजीनियरिंग का मुद्दा पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के दिमाग की उपज थी। चुनाव से ठीक कुछ महीने पहले सिद्धारमैया ने इनके माध्यम से राज्य की बड़ी आबादी को कांग्रेस के पक्ष में करने की कोशिश की थी। सिद्धारमैया को इसके लिए पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की पूरी सहमति थी। पर यह मुद्दा कारगर साबित नहीं हुआ, और कांग्रेस की हार का मुख्य कारण भी बना। दक्षिण की राजनीति में पकड़ रखने वाले वीरप्पा मोइली ने कहा कि अगर कांग्रेस पार्टी लिंगायत पर दांव खेलने के बजाए ओबीसी और एससी-एसटी को अधिक टिकट देती तो परिणाम कुछ और होता।

छोटे कार्यकर्ता की अनदेखी पड़ी भारी
किसी भी पार्टी को ऊंचाई पर ले जाने में उसके जमीनी कार्यकर्ताओं का अहम योगदान होता है। सत्ता के अहंकार में डूबे सिद्धारमैया ने कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी ने छोटे कार्यकर्ताओं पर कोई ध्यान नहीं दिया। कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली ने इसको लेकर भी पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की राज्य इकाई के साथ ही केंद्रीय नेतृत्व ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया, जिसकी वजह से कई सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा।

हार के लिए सिद्धारमैया जिम्मेदार
विधानसभा से स्पीकर और कांग्रेस नेता केबी कोलीवाड़ ने भी हार के लिए सीधे तौर पर सिद्धारमैया को जिम्मेदार ठहराया है। कोलीवाड़, राणेबेनूर सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के हाथों 6,000 वोटों से चुनाव हार गए हैं। हार के बाद कोलीवाड़ ने कहा कि कांग्रेस को सिद्धारमैया से पार्टी की ज़िम्मेदारी वापस ले लेनी चाहिए। उन्होंने कहा “सिद्धारमैया इस करारी हार के लिए ज़िम्मेदार है। सिद्धारमैया ने कर्नाटक में कांग्रेस को बर्बाद कर दिया है। सिद्धारमैया का हाव भाव, भाषा सारी बातें कांग्रेस के खिलाफ चली गई हैं। सिद्धारमैया के खून में कांग्रेस नहीं है, उन्होंने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए लिंगायत और वोक्कालिगा से दुश्मनी कर ली।” कोलीवाड़ का बयान साफ दर्शाता है कि कर्नाटक कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा था, हार के बाद सारी चीजें बाहर आ रही हैं।

एक तरफ जहां कांग्रेस के नेता कर्नाटक में हार के लिए सिद्धारमैया को जिम्मेदार ठहरा हैं, वहीं हम आपको बताते हैं कुछ और कारण जिनकी वजह से कर्नाटक में कांग्रेस की लुटिया डूब गई।

1- दलित उत्पीड़न के मामले में पहले नंबर पर कर्नाटक 
सिद्धारमैया के शासनकाल में कर्नाटक दलित उत्पीड़न के मामले में पहले नंबर पर पहुंच गया। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार दलित उत्पीड़न के देशभर में दर्ज हुए केस में अकेले 30% केस कर्नाटक में दर्ज कराए गए। हैरानी की बात है कि बेंगलुरु जैसे महानगर में तो स्थिति और भी विस्फोटक रही। वहां 2016 में एसटी-एससी एक्ट से जुड़े 199 केस दर्ज हुए जो कि एक साल पहले के मुकाबले 43% ज्यादा थे। ऐसी स्थिति में अगर यह कहा जाय कि राज्य में दलित भारी संकट में हैं तो अनुचित नहीं है।

दलित उत्पीड़न के मामले में पहले नंबर पर कर्नाटक साल- 2016
सारा देश अकेले कर्नाटक
70% 30%

 

बेंगलुरु में दलित विरोधी अपराध में भारी वृद्धि
साल संख्या वृद्धि
2015 139
2016 199 43%


2- किसानों की हत्यारी कर्नाटक की कांग्रेसी सरकार

कांग्रेस सरकार के दौरान पिछले पांच वर्षों में कर्नाटक में 3,500 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। यह आंकड़ा अप्रैल, 2013 से लेकर नवंबर, 2017 के बीच का है। किसानों की आत्महत्या के पीछे सूदखोरों का आतंक एक बड़ी वजह है। वहां सूदखोर किसानों को 30 से 40 फीसदी ब्याज पर कर्ज देते हैं और कर्ज वापस नहीं देने पर किसानों का उत्पीड़न करते हैं। राज्य की कांग्रेस सरकार इन सूदखोरों पर लगाम लगाने के लिए कोई ठोस कदम उठाने में नाकाम रही।

स्रोत-दि क्विंट

3- महिलाओं के खिलाफ अपराध में बेतहाशा वृद्धि
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के राज में महिलाओं के खिलाफ अपराध में बेतहाशा वृद्धि हुई। पिछले नवंबर में आई 2016 की एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार अकेले राजधानी बेंगलुरु में एक साल में रेप के मामलों में 186% का भयानक इजाफा हुआ। जबकि कुछ मामले तो दर्ज ही नहीं हुए। यही नहीं बेंगलुरु में यौन उत्पीड़न के मामलों में भी 43% की वृद्धि दर्ज की गई। जबकि महिलाओं के खिलाफ दूसरे अपराधों में भी काफी बढ़ोत्तरी देखी गई। जैसे- दहेज उत्पीड़न के मामले में प्रतिशत के हिसाब से प्रति लाख जनसंख्या के आधार पर यह पहले नंबर पर पहुंच चुका है। यही नहीं देश के महानगरों में दहेज उत्पीड़न के 83% केस सिर्फ बेंगलुरु में हुए।

बेंगलुरु में महिलाओं को डर लगता है
अपराध संख्या साल वृद्धि
रेप 112 2015
रेप 321 2016 186%
यौन प्रताड़ना,शील हनन 708 2015
यौन प्रताड़ना,शील हनन 820 2016 16.1%

 

4- बाकी अपराधों में भी स्थिति विस्फोटक
अकेले राजधानी बेंगलुरु की बात करें तो वहां बड़े अपराधों में 28% की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। इनमें दंगा-फसाद के मामले बहुत ज्यादा हैं, जिसमें 40% की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। वहीं अपहरण में 25%, हत्या में 17% और POSCO ACT से जुड़ी घटनाओं में 16% इजाफा हुआ। आलम ये है कि कांग्रेस के शासन काल में भारत की सिलिकन वैली के रूप में जाना जाने वाला बेंगलुरु ऑनलाइन फ्रॉड के मामले देश का पहला शहर गया। कुल मिलाकर एक वर्ष में कर्नाटक में अपराध की घटनाएं घटने की बजाय लगभग 7% बढ़ गई।

जधन्य अपराधों की राजधानी बनी बेंगलुरु
अपराध संख्या वृद्धि साल
हत्या 195 2015
हत्या 229 17% 2016
दंगे 374 2015
दंगे 524 40% 2016
अपहरण 779   2015
अपहरण 974 25% 2016

 

5- भ्रष्टाचार में डूबी कर्नाटक की कांग्रेसी सरकार
कर्नाटक की कांग्रेसी सरकार भ्रष्टाचार के मामले में भी आकंठ डूबी रही। कर्नाटक के शहरी विकास मंत्री डी के शिवकुमार के काले कारनामें देश में चर्चा का विषय रहा। पिछले अगस्त महीने में आयकर विभाग ने जब उनके ठिकानों पर छापेमारी की थी तो बेंगलुरु से दिल्ली तक कांग्रेसी खेमे में खलबली मच गई। उनके ठिकानों से आयकर अफसरों को लगभग 9.5 करोड़ रुपये कैश मिले थे। इस कार्रवाई को लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर उंगली उठाने की कोशिश की तो जनता ने आयकर विभाग की कार्रवाई का पूरजोर समर्थन किया। उस वक्त किए गए एक सर्वे में बताया गया कि 61% जनता कार्रवाई के समर्थन में खड़ी हो गई। आरोप तो यहां तक हैं कि डी के शिवकुमार ही वो शख्स हैं, जिनके पैसों पर गुजरात के कुछ कांग्रेसी विधायकों को राज्यसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक में अय्याशी कराई गई थी। जाहिर है कि ऐसे गंभीर आरोपों के बावजूद भी शिवकुमार मंत्री बने रहे, तो उसके पीछे कुछ गंभीर वजह जरूर होगी।

6- जनता के पैसों पर अय्याशी में डूबी रही कांग्रेसी सरकार
सिद्धारमैया के शासनकाल में कर्नाटक में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा दहला देने वाला है, लेकिन राज्य सरकार अय्याशी में डूबी रही। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों को एक सरकारी कार्यक्रम में चांदी के बर्तनों में डिनर परोसे जाने की घटना है। इस कार्यक्रम पर जनता के खजाने से 10 लाख रुपये खर्च करने की बात सामने आ चुकी है। एक आरटीआई से तो यहां तक पता चला है कि मुख्यमंत्री के चाय-बिस्किट का ही बिल 65 लाख रुपये से ज्यादा रहा। जिस राज्य में जनता दो जून की रोटी के लिए तरस जाती हो, हजारों की संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हों, वहां जनता की कमाई को ऐसी अय्याशियों में उड़ाने पर मतदाता शांत कैसे रहते।

7- अलगाववाद को बढ़ावा देती रही कर्नाटक सरकार
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार पर अपने फायदे के लिए अलगाववाद को बढ़ावा देने का भी आरोप लगा। पिछले साल जुलाई में तब खलबली मच गई थी, जब मीडिया में ऐसी खबरें आईं कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने राज्य के अलग झंडे के लिए नौ सदस्यों वाली एक कमेटी गठित कर दी है। इस कमेटी को झंडे की डिजाइन और उसे कानूनी मान्यता को लेकर एक रिपोर्ट देने को कहा गया। बाद में राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने खुलेआम अपने राज्य के लिए अलग झंडे की मांग की और इसे कन्नड़ गौरव से जोड़ने की कोशिश की। सबसे बड़ी बात यह रही कि अपने विभाजनकारी एजेंडे पर चलते हुए मुख्यमंत्री राज्य में हिंदी को नहीं चलने देने की मानसिकता भी बार-बार जाहिर करते रहे।

8- केरल की तर्ज पर राजनीतिक हत्याओं में भी अव्वल रहा कर्नाटक सरकार 
सिद्धारमैया सरकार के दौरान कर्नाटक से लगातार हिंदूवादी संगठनों से जुड़े लोगों पर जानलेवा हमलों की खबरें आती रही। हैरानी की बात यह है कि ऐसे मामलों में वहां की सरकार ठोस कार्रवाई करने से कन्नी काटती रही। सिद्धारमैया सरकार के इस रवैये से मतदाताओं को लगा कि अपराधियों और हमलावरों को सरकार का साथ मिला हुआ है। पिछले दो-ढाई सालों में ही राज्य में बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े 10 से ज्यादा नेताओं और कार्यकर्ताओं की राजनीतिक हत्याएं की गयी, लेकिन, राज्य सरकार ने हत्याओं के इन मामलों में कभी कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की।

9- ईमानदार अफसरों की संदिग्ध मौतों पर भी घिरी कर्नाटक सरकार
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में एक के बाद एक ईमानदार अफसरों की संदिग्ध मौतों पर सिद्धारमैया सरकार का रवैया स्वभाविक रूप से संदेह पैदा करता है। मसलन:

  • आईएएस अफसर अनुराग तिवारी पिछले साल मई में लखनऊ में अपने घर में संदिग्ध हालात में मृत पाए गएं। आरोप लगे कि उनकी मौत के पीछे माफिया का हाथ है।
  • वहीं नवंबर 2015 में डीके रवि का शव साउथ बेंगलुरू में तवारेकेरे स्थित अपने प्राइवेट अपार्टमेंट के बेडरूम में पंखे से झूलता हुआ मिला। 
  • कर्नाटक सरकार में एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर एसपी महंतेश ने को-ऑपरेटिव सोसायटी के आवंटन में अनियमितताओं का खुलासा किया था। महंतेश पर हमला हुआ और फिर मौत हो गयी।
  • कर्नाटक पुलिस के सब इंस्पेक्टर मल्लिकार्जुन बंदे की अंडरवर्ल्ड के शार्पशूटर मुन्ना दरबदर और पुलिस के बीच हुई मुठभेड़ के दौरान संदिग्ध मौत हो गई।
  • 5 जुलाई, 2017 को चिकमंगलूरू के डीएसपी कलप्पा हंडीबाग का बेलागावी के मुरागोद में अपने रिश्तेदार के घर शव मिला।
  • 8 जुलाई, 2017 को डीएसपी एमके गणपति को होटल में मृत पाया गया। उन्होंने सुसाइड नोट में राज्य के गृहमंत्री केजे जॉर्ज पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था।
  • पुलिस इंस्पेक्टर राघवेंद्र ने 18 अक्टूबर, 2016 को अपने सर्विस रिवॉल्वर से खुद को ही गोली मार कर आत्महत्या कर ली।

10- हिंदू विरोधी मानसिकता 
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की हिंदू विरोधी मानसिकता से भी मतदाता गुस्से में थे। उन्होंने सरेआम बीफ खाने की बात कबूल की। भाजपा लगातार कहती रही कि उसने राज्य में गौवध पर रोक लगा दी थी, लेकिन कांग्रेस ने उस कानून को खत्म कर दिया। इसके जवाब में सिद्धारमैया न सिर्फ खुद बीफ खाने की बात कबूल करते रहे, बल्कि दूसरों को इसके लिए उकसाते भी रहे। जाहिर उनका यह रवैया बहुसंख्यक हिंदूओं को बेहद नागवार गुजरा। हालांकि हिंदुओं को बरगलाने के लिए उन्होंने बीच-बीच में खुद को हिंदू बताने की कोशिश भी शुरू की। यही नहीं सीएम सिद्धारमैया दो वर्षों से राज्य में टीपू सुल्तान की जयंती भी मनाते रहे। पिछले वर्ष भी 10 नवंबर को टीपू सुल्तान की जयंती धूमधाम से मनाई और इसके लिए राज्योत्सव को ताक पर रख दिया। 18वीं सदी में मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान की जयंती मनाने के सीएम सिद्धारमैया के फैसले का बीजेपी ने जबरदस्त विरोध किया था। दरअसल जनता टीपू सुल्तान को एक कट्टरपंथी और बर्बर शासक मानती रही है। 

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