Home विचार वंशवाद की राह नहीं छोड़ेगी कांग्रेस: अध्यक्ष के लिए सोनिया के मन...

वंशवाद की राह नहीं छोड़ेगी कांग्रेस: अध्यक्ष के लिए सोनिया के मन में प्रियंका!

SHARE

8 अगस्त को कांग्रेस कार्यकारी समिति (CWC) की बैठक बुलाई तो गई थी भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ पर चर्चा के लिए लेकिन बैठक खत्म होते-होते इसमें पार्टी के अगले नेतृत्व का मुद्दा हावी हो गया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ये मन बनाकर आई थीं कि यहां पार्टी की बागडोर बिटिया प्रियंका गांधी को सौंपे जाने की चर्चा छेड़कर वो इसको लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत पार्टी के कुछ सीनियर नेताओं का मन टटोलेंगी। CWC की बैठक के आखिर में उन्होंने एक प्रश्न के साथ इस मुद्दे को छेड़ा कि कैसा रहेगा अगर प्रियंका को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाए?

सोनिया की हां में हां

कांग्रेस की ओर से भले ही पार्टी अध्यक्ष के रूप में प्रियंका गांधी के नाम की चर्चा की खबरों से इनकार किया जाए लेकिन DNA में एक CWC सदस्य के हवाले से ये बयान पहले ही आ चुका है: ‘’ये चर्चा कोई यूं ही नहीं हुई थी, उनके (सोनिया) जेहन में जरूर कुछ खास था। अगर ऐसा कदम (प्रियंका को अध्यक्ष बनाने का) उठाया जाता है तो ये पार्टी के लिए अच्छी बात है।‘’ सूत्रों के मुताबिक सोनिया की इस राय को वहां मौजूद रहे तीन-चार वरिष्ठ नेताओं का पूरा समर्थन था।   

परिवार में सहमति फिर CWC में चर्चा?

CWC की इस बैठक में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी मौजूद नहीं थे। उन्हें वायरल बुखार था। लेकिन ऐसा शायद ही हो सकता है कि मां सोनिया ने उन्हें CWC की बैठक से पहले इस चर्चा को छेड़ने के बारे जानकारी ना दी हो। हो सकता है भाई (राहुल)-बहन (प्रियंका) के बीच भी इस मसले पर बात हो चुकी हो और फिर पार्टी के आधिकारिक फोरम पर बात तब उठाई गई हो जब परिवार के बीच इस पर एक राय बन गई हो।

सोनिया के इस विचार के मायने क्या?

सोनिया गांधी की इस सोच से जो तीन खास बातें निकलकर सामने आ रही हैं वो कुछ इस तरह की हैं:

1)आखिरकार सोनिया ने अपने बेटे की प्रतिभा की इस सच्चाई को स्वीकार कर लिया है कि वो पार्टी के नेतृत्व के लायक नहीं।

2)प्रियंका का चेहरा आगे बढ़ाने को लेकर उन्होंने राहुल गांधी की हामी जरूर ली होगी, यानी राहुल खुद भी इस नतीजे पर पहुंचे कि कांग्रेस को वो अब मौत ही दे सकते हैं, जिंदगी नहीं।

3) पार्टी का नेतृत्व संभालने के लिए सोनिया को अपने परिवार के बाहर के चेहरों पर भरोसा नहीं, पार्टी के अनुभवी चेहरे उनके लिए राजनीतिक मोहरे से ज्यादा नहीं।

राहुल की राजनीति का अंत?

राहुल गांधी ने 2004 में राजनीति की शुरुआत की थी। तब से वो अमेठी के सांसद चुने जाते रहे हैं। पिछले करीब पांच वर्षों से राहुल गांधी को अध्यक्ष की कमान दिये जाने की चर्चा जब ना तब उठती रही, उनके चेहरे को आगे कर पार्टी ने कई विधानसभा चुनावों के साथ पिछला लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। इस साल हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली सीटें राहुल की नेतृत्व क्षमता की बानगी देने को काफी हैं। लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन सामने आया…तो यूपी विधानसभा चुनावों में पार्टी दहाई के आंकड़े से भी नीचे रह गई। यानी राजनीति की दुनिया में राहुल बॉलीवुड फिल्मों के उस हीरो की तरह नजर आ रहे हैं जो लगातार फ्लॉप फिल्में देने के बाद इंडस्ट्री से बाहर हो जाता है।

प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा पर कई आरोप

सोनिया गांधी के दामाद और प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा कई आरोपों में घिरे हैं। जमीन के कई सौदों में हुए घोटालों के साथ उनका नाम जुड़ा रहा है। प्रियंका के अध्यक्ष बनने की स्थिति में उनके पति के कारनामे आगे-आगे चलेंगे जो पार्टी को असहज करने वाले साबित होते रहेंगे। 2008 में हरियाणा के एक जमीन सौदे को लेकर वाड्रा पर तो यहां तक आरोप है कि अपने राजनीतिक रसूख के बूते इस सौदे में उन्होंने एक पैसा लगाये बिना 50 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया। प्रियंका कांग्रेस अध्यक्ष बनीं तो वाड्रा से जुड़े ऐसे कई आरोपों को लेकर उन्हें जब ना तब सवालों का सामना करते रहना होगा।   

जब ना-ना करते राजनीति में उतरी थीं सोनिया

राजनीति में ना उतरने की बात करते-करते सोनिया गांधी ने सियासत को तब गले लगाया था जब सीताराम केसरी नेहरू-गांधी परिवार को भी दरकिनार करते हुए कांग्रेस के हर हिस्से पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाते जा रहे थे। करीब दो दशक पहले हाथ से छूटती जा रही कांग्रेस पर सोनिया ने अपनी लगाम कसनी शुरू की। आज स्थिति एक बार फिर ये है कि पार्टी परिवारवाद के साये में पूरी तरह घिर चुकी है।

 

परिवार से बाहर के चेहरे सिर्फ राजनीतिक मोहरे

वंशवाद की राजनीति के इस ढांचे में कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खर्गे, गुलाम नबी आजाद, एके एंटनी और पी चिदंबरम सरीखे अनुभवी नेता भी सरेंडर कर चुके हैं। बगैर किसी अनुभव के भी प्रियंका का नाम अगर अध्यक्ष के लिए बढ़ रहा है तो ये चुप रहना ही बेहतर समझते हैं। नेहरू-गांधी परिवार इनके दिमाग पर राज करे, इसे शायद ये अपनी नियति मानकर चलते हैं। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता अतीत में नेहरू-गांधी परिवार के  कदम के विरोध में आवाज उठाने वाले नेताओं का हश्र देख चुके हैं।

जान फूंकेंगी या सांस निकालेंगी प्रियंका?

कांग्रेस सूत्रों पर आधारित जानकारी से जो तस्वीर उभरकर सामने आ रही है वो कहीं ना कहीं इस बात की तस्दीक करती है कि कांग्रेस 2019 का लोकसभा चुनाव प्रियंका गांधी के नेतृत्व में लड़ना चाहती है। युवा चेहरे के नाम पर कांग्रेस भले प्रियंका गांधी के हाथों में पार्टी की लगाम थमाये..लेकिन प्रियंका का राजनीतिक दायरा अमेठी से लेकर रायबरेली तक सीमित रहा है। पिछले यूपी विधानसभा चुनावों में पार्टी ने प्रियंका के प्रचार में उतरने को लेकर समां बांधना शुरू किया था..लेकिन प्रियंका का प्रचार अपने भाई के साथ एक रैली में दो-चार मिनट के भाषण के साथ समाप्त हो गया। यूपी के नतीजों के बाद शायद कांग्रेस ने इस बात का शुक्र ही मनाया होगा कि प्रियंका को पूरे प्रचार में ना उतारकर अच्छा ही किया..वर्ना वो पार्टी के एक पिटे मोहरे के रूप में शुमार हो चुकी होतीं। लेकिन सवाल उठ रहा है कि प्रियंका अध्यक्ष बन भी जाएं तो खत्म होने के कगार पर पहुंच चुकी कांग्रेस में कितनी जान फूंक पाएंगी। इसके जवाब में उसी कहावत की याद आ रही है कि ‘’ना राधा को नौ मन तेल होगा…………!’’

Leave a Reply