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हार्दिक, अल्पेश, जिग्नेश और कांग्रेस के ‘सियासी भंवर’ से निकलना चाहता है गुजरात !

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हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी… ये तीनों ही नाम आजकल मीडिया में खूब छाए हुए हैं। कहा जा रहा है कि ये चेहरे गुजरात की सियासत का भविष्य लिखने जा रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि ये तिकड़ी कांग्रेस के लिए तुरुप का इक्का साबित होने वाले हैं। परन्तु सवाल यह कि क्या यही सच भी है? कांग्रेस जिन तीन चेहरों के दम पर गुजरात का चुनावी रण जीतने का आधार तैयार कर रही है, क्या उनकी विश्वसनीयता गुजराती जनमानस के बीच बन पाई है? क्या कांग्रेस पर गुजराती समाज को विश्वास हो चला है?  इस रिपोर्ट के जरिये जानते हैं कि आखिर वास्तविकता क्या है?

गुजरात चुनाव जीतने के लिए के लिए चित्र परिणाम

कांग्रेस की कुटिल राजनीति ने गुजराती समाज को बांट दिया
गुजरात चुनाव में इस बार दो दशक के बाद एक बार फिर जातिवाद को आधार बनाकर वोट मांगे जा रहे हैं। देश के हिंदुओं के स्वाभिमान को हर स्तर पर चोट पहुंचाती रही कांग्रेस एक बार फिर प्रदेश को जातिवाद और सम्प्रदायवाद की आग में झोंकने की तैयारी कर चुकी है। गुजरात विधानसभा चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस ने पाटीदारों, ओबीसी, मुस्लिमों और दलितों को लुभाने में पूरी ताकत लगा दी है। अब गुजराती समाज इनके द्वारा तैयार किए गए राजनीतिक माहौल के बीच फंसा हुआ महसूस कर रहा है और इस माहौल से बाहर निकलने को बेताब है।

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पाटीदारों को ‘एडिशनल’ मानती है कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी ने जिस तरह प्रदेश को जातीय राजनीति की दलदल में धकेला है, वह आने वाले वक्त में प्रदेश के लिए अच्छा तो नहीं ही होगा। लेकिन इससे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस ने पाटीदार समुदाय को एक तरह से सिरे से नकार दिया है, क्योंकि वह अपनी राजनीति के आधार में पटेलों को एडिशनल वैल्यू मानकर चल रही है। दअसल पाटीदार समुदाय कांग्रेस के KHAM (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम) थ्योरी का भी हिस्सा नहीं हैं, जिसके दम पर कांग्रेस गुजरात चुनाव जीतना चाहती है। क्योंकि अल्पेश ठाकोर जो खुद को ओबीसी का नेता कहते हैं, वह कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और वह पाटीदारों के आरक्षण के विरुद्ध हैं। जाहिर है टकराव तो अंदरूनी है, लेकिन कांग्रेस सबकुछ ठीक-ठाक बता रही है ताकि पाटीदारों को भ्रम में रखकर उनके वोटों का कुछ हिस्सा तो प्राप्त कर पाए।

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हार्दिक पटेल की विश्वसनीयता पर सवाल
सवाल इस बात को लेकर है कि आखिर जब कांग्रेस पटेलों के आरक्षण को लेकर कुछ ठोस नहीं बोल पा रही है और इतनी कन्फ्यूज है तो हार्दिक पटेल कांग्रेस के पैरों पर क्यों गिरते चले जा रहे हैं? दरअसल हार्दिक पटेल ने पाटीदार समुदाय को बीच भंवर में छोड़ने का काम किया है। वे इस सच्चाई को लोगों को बता पाने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं कि कांग्रेस ने पाटीदारों को आरक्षण देने से मना कर दिया है। हार्दिक पटेल के 10 अक्टूबर के प्रेस कांफ्रेंस में उनकी बात से भी साबित हो गया है कि उनकी लड़ाई पाटीदारों के लिए आरक्षण दिलाने की नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी को आघात करने की और भाजपा को हराने की है। उन्होंने साफ कहा है कि आरक्षण से अधिक भाजपा को हराना उनका लक्ष्य है। जाहिर है पाटीदार समुदाय हार्दिक की इस हरकत से हतप्रभ हैं।

कितने विश्वसनीय हैं कांग्रेसी अल्पेश ठाकोर?
अल्पेश ठाकोर को प्रदेश में ओबीसी लीडर के तौर पर बताने की कोशिश कांग्रेस बार-बार कर रही है। लेकिन वह यह भूल जा रही है कि ओबीसी समुदाय से आने वाले सबसे बड़े लीडर तो प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह हैं। क्योंकि ये दोनों ही नेता ओबीसी समुदाय से आते है और सबका साथ, सबका विकास में विश्वास करते हैं। दूसरी ओर कांग्रेस को चार साल पहले छोड़ चुके अल्पेश ठाकोर दोबारा कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं, जिससे उनकी विश्वसनीयता सवालों में है। जिस कांग्रेस के विरोध का नाटक बीते सालों में उन्होंने किया और जिन लोगों ने एक विकल्प के तौर पर अल्पेश में थोड़ा भरोसा भी जताया था, उन्हें गहरा धक्का लगा है। दरअसल जनता रेड नाम से जिस आंदोलन के बूते अल्पेश ठाकोर ने अपनी पैठ जिस समुदाय में बनाई थी वह तबका तो कम से कम कांग्रेस को तो पसंद नहीं करती है। ऐसे में अल्पेश का कांग्रेस में दोबारा शामिल होने से उनके समर्थकों में भी काफी रोष है।

पटेलों को नहीं है अल्पेश ठाकोर पर विश्वास !
यह स्पष्ट है ककि अल्पेश ठाकोर ने कांग्रेस में शामिल होने से पहले यह शर्त रखी थी कि अधिक संख्या में उसके समर्थकों को विधानसभा चुनाव में टिकट दिया जाए। कांग्रेस ने अल्पेश ठाकोर से वादा किया है कि कुछ खास सीटों पर उसके समर्थकों को टिकट दिए जाएंगे। इसी वजह से ठाकोर समुदाय कांग्रेस की तरफ झुका दिख रहा है। हार्दिक पटेल भी कह चुके हैं यदि पाटीदार आंदोलन के नेताओं को कांग्रेस टिकट देती है तो वह उसे सपोर्ट करेंगे। ऐसे में सवाल यह है कि क्या पटेल वोटर अल्पेश ठाकोर के समर्थकों को वोट देंगे? अंदरखाने से जो बातें निकलकर सामने आई है, उससे संकेत मिल रहे हैं कि पाटीदार अपने समुदाय के नेताओं को छोड़कर किसी दूसरे नेता को वोट देने के पक्ष में नहीं हैं।

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जिग्नेश पर क्यों नहीं है लोगों को एतबार
दलित नेता जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात कर अपना समर्थन दिया है। लेकिन क्या जिग्नेश में वह माद्दा है जो दलित समुदाय को कांग्रेस की ओर मोड़ सके? दरअसल जिग्नेश मेवानी को दलित समुदाय ने तब ही पहचान लिया था जब वे ऊना पिटाई कांड पर सियासत कर गए। इतना ही नहीं अपना प्रचार तो खूब किया लेकिन दलितों को उनके भरोसे छोड़ दिया। इतना ही नहीं जब ऊना दलित पिटाई मामले में कांग्रेसी साजिश की पोल खुली तो जिग्नेश ने आलोचना तक नहीं की। इसके साथ ही जब एक दलित युवक की मूंछें काटने को लेकर भाजपा के विरुद्ध दुष्प्रचार किया गया तो जिग्नेश ने कांग्रेस का बचाव किया। इतना ही नहीं किसी पार्टी को समर्थन नहीं करने की बात कहते-कहते कांग्रेस के पक्ष में खुलकर उतर आना भी गुजरात के दलितों को नहीं भाया। ऐसे में जिग्नेश तो अपना जनाधार ही बचा पाएं तो बड़ी बात होगी।

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गुजरात में सियासी समीकरण साधने की कोशिश में कांग्रेस हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकोर को आश्वासनों का घुट्टी पिला रही है। लेकिन यह भी सत्य है कि जिस जाति के आधार पर गुजराती समाज को विभाजित करने का खेल कांग्रेस खेल रही है इसे गुजरात की जनता समझ चुकी है। गुजराती जनता अब कांग्रेस से यह सवाल पूछ रही है कि जब काम करने का मौका मिला तो घोटाले पर घोटाले करते रहे और देश का बंटाधार करते रहे! अब चुनाव के समय जातिवाद और सम्प्रादयिकता का जुगाड़ बैठाने के लिये पापड़ बेलने पड़ रहे हैं ? जाहिर है कांग्रेस के लोग अपने वक्त में कुछ काम ही कर लिए होते तो इन युवा चेहरों के पैरों पर लोटने की जरूरत तो न पड़ती?

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