लोकसभा चुनाव 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी से करारी शिकस्त मिलने के बाद कांग्रेस ने अब टीवी डिबेट में भी मैदान छोड़ दिया है। दूसरे शब्दों में कहें तो कांग्रेस अब भाजपा का सामना करने से बचने लगी है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्वीट कर यह जानकारी दी है कि कांग्रेस ने एक महीने के लिए अपने प्रवक्ताओं को टीवी डिबेट शो में न भेजने का फैसला लिया है। इसके साथ ही उन्होंने सभी मीडिया चैनलों और उनके संपादकों से अपनी टीवी परिचर्चा में कांग्रेस के प्रतिनिधियों को नहीं बुलाने का अनुरोध किया है। ध्यान रहे कि यही कांग्रेस है जो चुनाव के दौरान मीडिया और टीवी चैनलों पर कांग्रेस को तरजीह और समय नहीं देने का आरोप लगा रही थी। और आज यही कांग्रेस है जो राजनीतिक हार के कारण टीवी परिचर्चा में अपना प्रतिनिधि भी भेजने से इनकार कर रही है। इससे तो साफ लगता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिली शिकस्त की वजह से कांग्रेस इतनी पस्त हो चुकी है को टीवी परिचर्चा में भी भाजपा के प्रतिनिधियों का सामना करने से डरती है।
.@INCIndia has decided to not send spokespersons on television debates for a month.
All media channels/editors are requested to not place Congress representatives on their shows.
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) May 30, 2019
समाजवादी पार्टी ने भी अपने प्रवक्ताओं पर लगाई बंदिश
कांग्रेस ही नहीं बल्कि कभी उसके साथी रही समाजवादी पार्टी (सपा) ने भी टीवी परिचर्चा में भाग लेने से अपने प्रवक्ताओं को मना कर दिया है। सपा ने तो टीवी डिबेट के लिए बनाए गए पैनल में जितने लोगों का मनोनयन किया था उसे भी निरस्त कर दिया। सपा ने चैनलों को अपने प्रतिनिधियों को आमंत्रित नहीं करने के अनुरोध के साथ ही अपने लोगों को भी डिबेट में जाने से मना कर दिया है। सपा ने ऐसा इसलिए किया है ताकि परिचर्चा और डिबेट के दौरान पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव पर उठे सवालों से बचा जा सके।
मोदी के दांव से कांग्रेस में मची अंदरूनी खलबली
2019 लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दांव से न केवल कांग्रेस को चुनावी हार मिली है, बल्कि उसकी वैचारिक कमजोरी भी जगजाहिर हो गई है। सबसे खास बात है कि मोदी के दांव से कांग्रेस के सांगठनिक ढांचा तक चरमरा गया है। मोदी से हार मिलने के बाद राहुल गांधी ने अपनी पार्टी की किरकिरी कराने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। राहुल गांधी ने चुनावी हार की जिम्मेदारी लेने के नाटक के तहत अपने पद से इस्तीफा क्या दिया, कांग्रेस की सारी असलियत देश की जनता के सामने आ गई। कांग्रेस का इतना बुरा हाल हो गया है कि कोई उसका अध्यक्ष बनने को तैयार नहीं दिखता है। वैसे तो राहुल गांधी के नाटक का क्लाइमेक्स सब को पता है, लेकिन अभी भी कांग्रेस अपने पैर पर खड़ा होने को तैयार नहीं है। अभी भी कांग्रेस गांधी परिवार की बैसाखी के सहारे चलने को अभिशप्त है।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की इतनी दुर्गति हो गई है फिर भी वह असफलता से सीखने को तैयार नहीं है। वह अभी भी यह समझने को तैयार नहीं कि उसकी यह दुर्गति देश के हित में आड़े आने वाली उसकी अनीति के कारण हुई है।
कांग्रेस ने कभी राष्ट्रीय सुरक्षा को महत्व नहीं दिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों कांग्रेस की इस दुर्गति का सबसे बड़ा कारण राष्ट्रीय सुरक्षा रही है। जहां मोदी ने यह चुनाव विकास और राष्ट्रीयता के मुद्दे पर लड़ा वहीं कांग्रेस राष्ट्रीयता को महत्व देने को तैयार ही नहीं हुई। देश की राष्ट्रीय सुरक्षा दांव पर लगती रही और कांग्रेस की पूर्व सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद के मामले में ढिलाई बरतती रही। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऊरी और पुलवामा हमले का सर्जिकल स्ट्राइक और एयरस्ट्राइक के माध्यम से करारा जवाब देकर जता दिया कि उनकी सरकार किसी प्रकार की आतंकी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं करने वाली है।
पाकिस्तान से सिर्फ बात करती रही कभी कार्रवाई नहीं की
कांग्रेस पार्टी का पुराना कूटनीतिक पाप भी इस चुनाव में भारी पड़ा। मोदी सरकार से पहले 10 सालों तक रिमोट कंट्रोल से चलने वाली कांग्रेस की सरकार रही। लेकिन इतने दिनों में एक बार भी आतंक हमले का सख्ती से जवाब नहीं दिया गया। वहीं पाकिस्तान आतंक हमला करवा कर पल्ला झाड़ता रहा। वहीं मोदी सरकार के दौरान पाकिस्तान को हर मोर्चे पर मुंह की खानी पड़ी। मोदी सरकार ने विश्व पटल पर पाकिस्तान के साथ नैरेटिव ही बदल दिया। आज पाकिस्तान के कश्मीर कोई मुद्दा नहीं है बल्कि आतंकवाद मुद्दा है।
मोदी के खिलाफ चुनाव आचार संहिता का दुरुपयोग
इस चुनाव में कांग्रेस को हराने का सूत्रधार पीएम मोदी तो हैं ही साथ ही कांग्रेस के हारने का कारक भी मोदी ही हैं। कांग्रेस ने चुनाव के दौरान मोदी को ही टार्गेट किया। कांग्रेस ने मोदी को बदनाम करने के लिए चुनाव आचार संहिता का भी सहारा लिया। ये बात दीगर है कि चुनाव आयोग की सुनवाई में पीएम मोदी एक भी मामले में गलत नहीं साबित हुए। कांग्रेस का यह दांव उस पर ही उलटा पड़ गया। कांग्रेस ने मोदी को बदनाम करने का जितना अधिक प्रयास किया जनता उनके साथ जुड़ती चली गई। कांग्रेस की हार का एक कारण मोदी को बदना करना भी रहा। कांग्रेस ने पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव प्रचार के दौरान रक्षा तैयारियों की बात करने को चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन बताया। जबकि जनता को मोदी की बात समझ में आ गई। इसका लाभ भी मोदी को हुआ और नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा।
वंशवादी राजनीति से परहेज नहीं कर पाई कांग्रेस
एक तरफ मोदी पूरे देश में वंशवादी राजनीति को लोकतंत्र के लिए खतरनाक बता रहे थे, वहीं कांग्रेस वंशवादी राजनीति को ही बढ़ाने पर तुली थी। अंतिम समय में कांग्रेस ने मोदी को हराने के लिए जो कदम उठाया वह भी उसका वंशवादी ही था। मोदी को रोकने के लिए कांग्रेस ने प्रियंका गांधी के रूप में जो तुरूप का एक्का निकाला वह भी वंशवादी राजनीति का हिस्सा था। कांग्रेस वंशवाद को लेकर देश की जनमानस की भावना को पढ़ नहीं पाई। जहां देश वंशवाद के खिलाफ था वहीं कांग्रेस वशंवादी राजनीति को आगे बढ़ा रही थी। परिणाम कांग्रेस की हार के रूप में सब के सामने है।