Home विचार कांग्रेस ने हर मोड़ पर किया बाबा साहेब का अपमान

कांग्रेस ने हर मोड़ पर किया बाबा साहेब का अपमान

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कांग्रेस पार्टी दलित समुदाय के समर्थन के लिए 9 अप्रैल को उपवास पर बैठी। खुद राहुल गांधी ने भी दो घंटे का सांकेतिक अनशन किया। जाहिर है राहुल गांधी इस बहाने राहुल गांधी खुद को दलितों की चिंता करने वाला स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी एक राजनैतिक दल है और उसे ऐसा करने का पूरा हक भी है, परन्तु दलितों को ये नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस पार्टी ने हमेशा दलितों को दबाकर ही नहीं रखा बल्कि आजादी के छह दशक तक उनका दमन किया है, दबाकर रखा है।

दरअसल ये वही कांग्रेस पार्टी है जिस पार्टी का न तो अध्यक्ष कोई दलित बना है और न ही कांग्रेस ने कभी किसी दलित समुदाय को प्रधानमंत्री पद के लायक समझा है। ये वही कांग्रेस पार्टी है जिसने जवाहर लाल नेहरू के सामने बाबा साहेब आंबेडकर को छोटा दिखाने की हर कोशिश की। ये वही कांग्रेस पार्टी है जिसने जगजीवन राम को योग्यता के बावजूद प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया। ये वही कांग्रेस पार्टी है जिसमें कोई दलित आज तक अध्यक्ष नहीं बना है।

बाबा साहेब को दलितों के दायरे में समेटने की कोशिश
बाबा साहब आंबेडकर युग पुरुष थे, दूर द्रष्टा थे, लेकिन कांग्रेस पार्टी ने हमेशा उन्हें दलित नेता कहकर एक दायरे में समेटने की कोशिश की। कांग्रेस पार्टी ने लगातार बाबा साहेब को अपमानित करने का भी काम किया है। कांग्रेस की ये कोशिश रही है कि उनका कद किसी नेहरू-गांधी परिवार के समकक्ष भी खड़ा नहीं हो पाए। बाबा साहेब को भारत रत्न नहीं दिया जाना कांग्रेस की इसी कुत्सित सोच का नतीजा थी।

बाबा साहेब के देहांत के 34 वर्षों बाद मिला भारत रत्न
बाबा साहेब भीमराव रामजी का देहांत 1956 में ही हो गया था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने बाबा साहेब को भारत रत्न देने से इनकार कर दिया था। फिर इंदिरा गांधी ने भी इन्हें भारत रत्न नहीं दिया। राजीव गांधी ने भी बाबा साहेब को उनका वाजिब सम्मान नहीं दिया। गौरतलब है कि भारत रत्न दिए जाने की बार-बार उठने वाली मांग को भी कांग्रेस पार्टी लगातार खारिज करती रही। हालांकि 1990 में भारतीय जनता पार्टी द्वारा समर्थित राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने सुब्रमण्यम स्वामी की पहल पर बाबा साहेब को भारत रत्न से सम्मानित किया।

बाबा साहेब का नहीं बनाया कोई राष्ट्रीय स्मारक
कांग्रेस ने बाबा साहेब की विद्वता और अस्मिता को हमेशा नीचा दिखाने का काम किया है। पंडित नेहरू तो विशेष तौर पर डॉ आंबेडकर को अपना प्रतिद्वंद्वी मानते थे। यही कारण था कि कांग्रेस ने बाबा साहेब के देहांत के बाद भी कोई राष्ट्रीय स्मारक नहीं बनने दिया। दूसरी ओर भाजपा के शासन काल में बाबा साहेब आंबेडकर को उचित सम्मान दिया गया। हालांकि भाजपा की सरकार ने उनके जन्म स्थान महू में बाबा साहेब का राष्ट्रीय स्मारक बनवाया। इसके साथ ही नरेन्द्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री बने जिन्होंने महू जाकर बाबा साहेब को श्रद्धांजलि दी।

बाबा साहेब को कांग्रेस ने दो बार चुनाव हरवाया
कांग्रेस नहीं चाहती थी कि वे दलितों के नेतृत्वकर्ता के तौर पर प्रचारित हो। यही कारण था कि कांग्रेस ने उन्हें दो बार लोकसभा चुनावों में हरवाने की साजिश रची थी।  गौरतलब है कि बाबा साहेब ने आजादी के बाद 1952 में हुए पहले आम चुनाव में अनुसूचित जाति संघ के टिकट पर उत्तरी मुंबई से चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उन्हें कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार नारायण काजोलोलर ने हराया था। 1954 में भंडारा में हुए लोकसभा उप चुनाव एक बार फिर अम्बेडकर लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन इस बार भी अम्बेडकर की बुरी तरह हार हुई।

संसद कक्ष में नहीं लगने दी बाबा साहेब की तस्वीर
कांग्रेस का दलित विरोधी चरित्र हमेशा उजागर होता रहा है। विशेषकर बाबा साहेब का अपमान करने को लेकर कांग्रेस पार्टी कुछ अधिक ही उत्सुक रहती थी। आप खुद सोच सकते हैं जिस व्यक्ति को संविधान निर्माता कहा जाता है उन्हीं की कोई तस्वीर संसद के केंद्रीय कक्ष में नहीं थी। कांग्रेस ने दीवार पर जगह नहीं होने का हवाला देकर तस्वीर लगाने की मांग को हमेशा खारिज किया। 1989 में जब भारतीय जनता पार्टी की समर्थित राष्ट्रीय मोर्चा सरकार बनी तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने पहल कर संसद के केंद्रीय कक्ष में बाबा साहेब का चित्र शामिल कराया।

नेहरू ने धारा 370 पर नहीं मानी बाबा साहेब की बात
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 जिसमें कश्मीर को कई विशेष अधिकार प्राप्त हैं उनके खिलाफ बाबा साहेब ने काफी मुखर होकर अपने विचार रखे थे। हालांकि पंडित नेहरू ने बाबा साहब की एक नहीं चलने दी और देश पर धारा 370 जबरन थोप दिया। बाबा साहेब के विचारों को इस तरह से खारिज कर कांग्रेस ने देश के नाम एक ऐसी समस्या कर दी जो किसी भी हालत में नहीं होनी चाहिए थी। गौरतलब है कि जिस दिन यह अनुच्छेद बहस के लिए आया उस दिन बाबा साहब ने इस बहस में हिस्सा नहीं लिया ना ही उन्होंने इस अनुच्छेद से संबंधित किसी भी सवाल का जवाब दिया।

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