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कांग्रेस ने गुजरात को दोबारा ‘जातीय राजनीति’ के दलदल में धकेल दिया !

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वर्ष 2001 से पूर्व गुजरात की राजनीति जाति-जमात में उलझी हुई थी। प्रदेश इस समाजिक-धार्मिक जकड़न से निकलने को छटपटा रहा था। विकास की बेताबी थी और लोगों को ऐसी विभाजनकारी पॉलिटिक्स से मुक्ति चाहिए थी। कठिन दौर था, गुजरात भयंकर भूकंप की त्रासदी झेल रहा था। राज्य के कई इलाकों में सूखा पड़ा था। बेरोजगारी से परेशान लोग पलायन को मजबूर थे। निराशा के घोर अंधकार में डूबा प्रदेश आशा और उम्मीद की एक किरण की तलाश में था।

इसी दौर में वर्ष 2001 में गुजरात की बागडोर नरेंद्र मोदी के हाथों को दी गई। गुजरात को फिर से विकास की रफ्तार देनी थी। नरेंद्र मोदी ने इन चुनौतियों को स्वीकार किया और उनकी संकल्प शक्ति और कर्मठता ने गुजरात की तस्वीर बदल दी। सबका साथ, सबका विकास के मूल मंत्र के साथ सर्वसमावेशी विकास की अवधारणा को धरातल पर उतारा और प्रदेश ने विकास की नई ऊंचाईयों को छुआ। देश दुनिया में गुजरात मॉडल स्टेट बन गया।

एक बार फिर दौर बदला है और नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं। उनकी अनुपस्थिति में कांग्रेस एक बार फिर गुजरात की राजनीति तीन दशक पीछे ले जाना चाहती है। यानी कांग्रेस के कुत्सित सोच के कारण गुजराती समाज एक बार फिर जाति-जमात की राजनीति की तरफ मुड़ती जा रही है।

KHAM फॉर्मूले से गुजराती समाज को तोड़ कर रही कांग्रेस
पिछले 22 साल से गुजरात की जनता विकास के मुद्दे पर भाजपा के साथ है, लेकिन कांग्रेस प्रदेश को जातिवादी क्षेत्रीय नेताओं के चक्रव्यूह में उलझा रही है। करीब 32 साल बाद राज्य में चुनाव एक बार फिर जातिगत समीकरणों के आधार पर लड़े जा रहे हैं। 1985 में कांग्रेस नेता माधवसिंह सोलंकी ने क्षत्रिय, हरिजन ( दलित) , आदिवासी और मुस्लिम यानी KHAM फॉर्मूला बनाकर 149 सीटें जीती थीं। तब भी समाज को बांटकर राज करने की सोची-समझी रणनीति थी, एक बार फिर कांग्रेस सामाजिक एकता को विभाजित कर सत्ता का स्वाद चखना चाहती है।

ओबीसी-दलित-पाटीदार में बांटकर सत्ता चाहती है कांग्रेस
गुजरात में जब तक नरेंद्र मोदी रहे तो कांग्रेस की विभाजनकारी राजनीति की दाल नहीं गली। हालांकि समाज को बांटने की उनकी साजिश चलती रही। 2014 में नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बन गए तो कांग्रेस ने तभी से अपनी फूट डालो राज करो की नीति पर दोबारा अमल करना शुरू कर दिया। पहले तो कांग्रेस के ही नेता अल्पेश ठाकोर को पार्टी से हटाकर एक ओबीसी चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट किया, फिर ऊना में दलित पिटाई की साजिश कांग्रेसी नेताओं ने ही रची ताकि भाजपा को दलित विरोधी ठहराया जा सके। इसके बाद हार्दिक पटेल नाम के एक अपरिपक्व युवा को पाटीदारों के नेता के तौर पर प्रोजेक्ट कर दिया।

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हिंदू समाज को जाति में बांटकर ‘राज’ चाहती है कांग्रेस
दरअसल कांग्रेस न तो ओबीसी समुदाय से, न तो पाटीदारों से और न ही दलितों से कोई सहानुभूति रखती है, बल्कि वह तो सीधा अपना समीकरण वोटों के प्रतिशत के हिसाब से बिठा रही है। 16 प्रतिशत के आसपास पटेल और 37 प्रतिशत के आसपास के ओबीसी वर्ग के वोटों पर कांग्रेस की नजर है। वहीं 7 प्रतिशत दलितों को भी कांग्रेस अपने आधार पर बांट रही है और उसका हिंदू समाज को विभाजित कर इसे कमजोर करने का काम कर रही है। दरअसल ‘सबका साथ, सबका विकास‘ नारे के आधार पर भाजपा ने लोकसभा और उत्तर प्रदेश विधानसभा में जिस तरह से बड़ी जीतें हासिल की हैं, इससे कांग्रेस की चूलें हिला दी हैं। ऐसे में कांग्रेस हिंदू समाज में किसी भी तरह का विभाजन करवाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहती है।

नयी पीढ़ी को जाति की घुट्टी पिलाना चाहती है कांग्रेस
मोदी विरोध के नाम पर कांग्रेस कितनी साजिशें रच सकती है इसे गुजरात की जनता भलि भांति जानती है। युवाओं को जातिवाद की घुट्टी पिलाने का कांग्रेस का प्रयास लगातार जारी है और गुजराती स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने की रोज नई चालें चल रही है कांग्रेस। हालांकि इनमें से कई युवाओं ने कांग्रेस की मंशा को भांप लिया है और वरुण पटेल, महेश पटेल और रेशमा पटेल जैसे युवा चेहरों ने कांग्रेस को आईना भी दिखा दिया है। इन युवाओं ने हार्दिक पटेल को भी आगाह किया है कि कांग्रेस के हाथों का खिलौना बनकर वह हिंदू समुदाय को फिर जातिवाद की राह पर ले जा रहे हैं। हालांकि हाल के जितने भी सर्वे हुए हैं उनमें युवाओं ने एक सुर से कहा है कि गुजराती समाज को विभाजित करने की कांग्रेस की कोशिशों को सफल नहीं होने देंगे। ये बात 3 नवंबर को वडोदरा में राहुल गांधी के रोड शो में भी दिख गया कि उनके समर्थन में गुजराती समाज बाहर ही नहीं आया।

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उत्तर प्रदेश का विरोधाभास गुजरात में लेकर आई कांग्रेस
गुजरात की राजनीति में उभरे हार्दिक, जिग्नेष और अल्पेश के साथ विरोधाभास यह है कि वे कांग्रेस के पक्ष में खड़े भले ही हो जाएं, किंतु उनमें मुद्दों को लेकर परस्पर सहमति नहीं है। दरअसल हार्दिक का मुद्दा ओबीसी के कोटे में आरक्षण लेने से जुड़ा है, जबकि अल्पेष ओबीसी के कोटे में किसी दूसरी जाति को आरक्षण देने के पक्ष में नहीं हैं। दूसरी तरफ दलित नेता जिग्नेश मेवानी दलितों के उत्पीड़न को लेकर जिन सख्त कानूनी उपायों की मांग कर रहे हैं, उस उत्पीड़न से वही दबंग लोग जुड़े हैं, जिनका नेतृत्व हार्दिक और अल्पेश कर रहे हैं। ऐसे में इन पेंचों पर इन तीनों नेताओं के बीच सहमति की उम्मीद नहीं है। वहीं दूसरी ओर मतदाता भी इस बात को समझ रहे हैं कि ये तीनों ही कांग्रेस के खड़े किए हुए लोग हैं। दरअसल इसी तरह का प्रयोग यूपी में कांग्रेस ने अखिलेश यादव से गठजोड़ कर किया था, लेकिन लोगों ने इनकी मंशा को भांप लिया और इनके प्रयासों को करारी शिकस्त दी।

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गुजराती समाज को विभाजित करने का जिम्मेदार है कांग्रेस
देश-दुनिया में गुजरात का सम्मान इसलिए भी बढ़ा है कि यहां के लोग गुजराती स्वाभिमान को सबसे आगे रखते हैं। गुजरात की अस्मिता पर आघात करने वालों को वे बख्शते नहीं, लेकिन बीते डेढ़ दो वर्षों में गुजरात को जाति-जमात में बांट दिया गया है। कांग्रेस ने पूरे देश में जिस तरह से जातीय विद्वेष फैलाया है उसने गुजरात को भी अपने निशाने पर ले लिया है। यूं कहें कि गुजरात को फूट डालो राज करो की प्रयोगशाला बनाने की पूरी कोशिश की है। दलित, ओबीसी और पटेलों में बांट कर कांग्रेस ने अपना उल्लू सीधा करने की कुत्सित कोशिश की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबको जोड़ने की बात कहते हैं और कांग्रेस पार्टी तोड़ो और राज करो की नीति पर चलती है। बड़ा सवाल यही है कि क्या गुजराती अस्मिता पर आघात करने वालों और गुजराती स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाले लोगों को प्रदेश के लोग अपना समर्थन देंगे?

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विकसित गुजरात को पिछड़ा दिखाने की होड़ कर रही कांग्रेस
जिस गुजरात मॉडल ने प्रदेश को पूरी दुनिया में नई पहचान दी है उसी का मजाक उड़ाने में कांग्रेस पार्टी मशगूल है। यह तथ्य भी है और सत्य भी है कि गुजराती समाज ‘गुजरात नुं गौरव’ को आघात पहुंचाने वाली किसी भी कोशिश का जोरदार जवाब दिया है। दरअसल गुजरात के लोग यह कतई नहीं भूले हैं कि किस तरह से कांग्रेस ने प्रदेश को पिछड़ा रखा था। इतना ही नहीं गुजरात की विरासत को भी किस तरह से अपमानित किया है। कांग्रेस की पहली पीढ़ी ने सरदार पटेल को उचित मान्यता और भारत रत्न नहीं देकर उनका अपमान किया तो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई के साथ अन्याय किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी किस तरह से कांग्रेस सरकारों ने साजिश के तहत परेशान किया है यह गुजरात की जनता अच्छी तरह से याद रखे हुए है।

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गुजरात की अस्मिता और स्वाभिमान का सम्मान और प्रदेश का संपूर्ण विकास उनका लक्ष्य है और इसी उद्देश्य को लेकर उन्होंने 12 वर्षों से ज्यादा समय तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते गुजरात को गढ़ने का कार्य किया। अब प्रधानमंत्री के तौर पर भी वे गुजरात के विकास को तेज गति दे रहे हैं। ये बात इससे साफ है कि पिछले 12 महीने में ही प्रधानमंत्री मोदी 10 बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं और इन दौरों में उन्होंने हर बार गुजरात को विकास योजनाओं की विशेष सौगात दी है और गुजरात को विकास की नयी ऊंचाईयों पर पहुंचाने का संकल्प भी हर बार दोहराया है। केवल इस वर्ष ही उन्होंने 16 हजार करोड़ से अधिक की विकास योजनाओं का शिलान्यास व उद्घाटन किया है। जाहिर है 2014 में देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वे गुजरात के विकास को लेकर तत्पर हैं।

विभाजन की राजनाति को जोरदार जवाब देगा गुजरात
कांग्रेस यह मानकर बैठी है कि विकास के मुद्दे पर वह बीजेपी को हरा नहीं पाएगी इसलिए अगर गुजरात में जीत हासिल करनी है तो साजिशें रचनी ही होंगी। कांग्रेस के रणीतिकारों ने इसे बीते तीन सालों में बखूबी अंजाम भी दिया है… लेकिन शायद इन रणनीतिकारों को भान नहीं है कि गुजरात की जनता कांग्रेस के सारे खेल को समझ चुकी है और इस झांसे में नहीं आने वाली है। अल्पेश ठाकोर का कांग्रेस छोड़ना और फिर कांग्रेस ज्वाइन करना। जिग्नेश मेवानी द्वारा ना-ना कहते हुए कांग्रेस का साथ देने की घोषणा करना और हार्दिक पटेल का कांग्रेस के युवराज से गुपचुप मुलाकात करना… फिर ये घोषणा करना कि कांग्रेस भाजपा से अच्छी है, ये तीनों ही प्रकरण साजिश की सारी परतें खोल देता है। इसके साथ एक बड़ी बात राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने की कवायद है। इसके तहत कांग्रेस पार्टी एक अदद जीत चाहती है और साजिशों के तहत गुजराती समाज की एकता को तार-तार करना चाहती है।

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