प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरोध के नाम पर कांग्रेस ने जनादेश के खिलाफ जाकर कर्नाटक में सत्ता हथियाई थी। लेकिन, बहुत जल्दी ही उसे अपने ही कुकर्मों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। खबरों के मुताबिक मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के फैसले को लेकर कांग्रेस के नेता बहुत परेशान हैं। उन्हें लग रहा है कि कुमारस्वामी के चलते कांग्रेस का बना-बनाया खेल खराब हो सकता है।
पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने पर कांग्रेस में टेंशन
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के चलते पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में देशभर में उछाल आया है, जिसपर नियंत्रण करना केंद्र सरकार के वश में नहीं है। लेकिन, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने फिर भी इस मुद्दे पर जनता को बरगलाने का कोई मौका नहीं छोड़ा है। परन्तु अब कर्नाटक में उन्हीं की पार्टी की गठबंधन सरकार ने जनता की पीठ में छुरा घोंपते हुए पेट्रोल और डीजल पर राज्य कर बढ़ा दिया है। जैसे ही कांग्रेस को लगा कि जनता के सामने उसका दोमुहां चेहरा उजागर हो गया, उसने इसके लिए मुख्यमंत्री कुमारस्वामी पर दोषारोपण शुरू कर दिया। न्यूज पोर्टल नवभारत टाइम्स के मुताबिक अब चर्चा है कि कांग्रेस इस टैक्स को वापस लेने की मांग करेगी। यानि एक नई नौटंकी करने की तैयारी। सवाल उठता है कि कांग्रेस अगर जनता के प्रति ईमानदार है तो बजट पेश करने से पहले हुई समन्वय समिति की बैठक में इस प्रस्ताव को रोका क्यों नहीं? कांग्रेस के इस दोहरे रवैये का राज्य बीजेपी पहले दिन से ही विरोध कर रही है।
Shocker to the people of Karnataka! There is no better ridicule to the mandate of the Kannadigas than the inflated petrol rate of ₹1.14/l and diesel rate of ₹1.12/l. Karnataka is levied for the Congress CM @hd_kumaraswamy’s greed for seat.
— BJP Karnataka (@BJP4Karnataka) July 5, 2018
Dear PM,
Glad to see you accept the @imVkohli fitness challenge. Here’s one from me:
Reduce Fuel prices or the Congress will do a nationwide agitation and force you to do so.
I look forward to your response.#FuelChallenge
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 24, 2018
यूपीए सरकार के दौरान ढाई गुना बढ़े थे पेट्रोल-डीजल के दाम
सवाल उठता है कि जब राहुल कर्नाटक में पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से रोक नहीं सके तो किस मुंह से केंद्र के खिलाफ आंदोलन करने की बात करते हैं। जबकि देश में जो पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़े हैं वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से प्रभावित हैं। जबकि सच्चाई ये है कि कांग्रेस और यूपीए सरकार के दौरान पेट्रोल के दाम करीब ढाई गुना तक बढ़े थे।
यूपीए सरकार से पहले 29 रुपये प्रति लीटर था पेट्रोल
2003 में देश में पेट्रोल के दाम सिर्फ 29 रुपये प्रति लीटर थे। यूपीए की सरकार बनने के बाद ही पेट्रोल के दाम बढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ जो कभी थमा नहीं। 2004 से लेकर 2014 तक दस वर्षों में पेट्रोल के दाम 29 रुपये से 73 रुपये प्रतिलीटर पहुंच गए। यानि करीब 150 प्रतिशत की बढ़ोतरी। यदि औसत देखा जाए तो पेट्रोल की कीमत में प्रतिवर्ष करीब 4.4 रुपये प्रतिलीटर का इजाफा हुआ। 2013 के सितंबर महीने में तो पेट्रोल की कीमत 76 रुपये प्रति लीटर के पार भी पहुंच गई थी।
यूपीए सरकार के दौरान पेट्रोल में लगी थी आग | |
वर्ष | पेट्रोल के दाम प्रति लीटर (रुपये में) |
2003 | 29 |
2004 | 33 |
2006 | 47 |
2010 | 51 |
2012 | 65 |
2013 (सितंबर) | 76.06 |
2014 (अप्रैल) | 73 |
प्रति वर्ष 4.4 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी |
मोदी सरकार के 4 साल में सिर्फ 2.55 रुपये प्रति लीटर बढ़े दाम
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब देश की बागडोर संभाली थी तब दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 73 रुपये प्रतिलीटर थी और शनिवार को 4 साल बाद दिल्ली में पेट्रोल के दाम 75.55 रुपये प्रति लीटर हैं। यानी चार वर्षों में सिर्फ 2.55 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई है।
मोदी सरकार के 4 वर्ष में बहुत कम बढ़े पेट्रोल के दाम | |
वर्ष | पेट्रोल के दाम प्रति लीटर (रुपये में) |
2014 | 73 |
2018 | 75.55 |