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जातिवाद का अपना बोया जहर खुद खाना पड़ रहा है कांग्रेस को, 2019 के चुनावों में खत्म हो जाएगी!

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सुधारवादी और परिवर्तनकारी कार्यक्रमों से देश प्रगति की नई-नई रफ्तार भरने में लगा है। यह मोदी सरकार के कामकाज का ही असर है जो देश के 19 राज्यों में आज बीजेपी या एनडीए की सरकार है। विपक्षी दल उनमें भी खासकर कांग्रेस बीजेपी की इस निरंतर सफलता से इतनी जल-भुन गई है कि अब वो जातिवाद और संप्रदायवाद का जहर खुलेआम बोने में लगी है। आइए देखते हैं कि कांग्रेस की जहर भरी मानसिकता के 10 खतरनाक नमूने:

1. महाराष्ट्र में दलित-मराठा में फूट डालने की साजिश

कोरेगांव युद्ध के 200 साल पूरे होने पर हुए जश्न में हिंसा का रंग घोलने की सुनियोजित साजिश सामने आ रही है। इस ऐतिहासिक युद्ध की जीत की याद में पिछले कई दशकों से शांतिपूर्ण तरीके से जश्न मनाया जाता रहा है। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस बार के जश्न के बहाने कांग्रेस ने हिन्दू एकता को तोड़ने की तैयारी कर रखी थी। 31 दिसंबर के कार्यक्रम के दौरान उसने अपने समर्थकों और असामाजिक तत्वों को दलितों की भीड़ में घुसा दिया। इन्हीं लोगों ने मराठा लोगों पर भद्दी टिप्पणियां कर उन्हें उकसाना शुरू कर दिया जिसके बाद मामले ने हिंसक मोड़ ले लिया।

2. सेमीनार में विवादित चेहरों को जान-बूझकर शामिल किया

31 दिसंबर को पुणे के पास भीमा-कोरेगांव में आयोजित सेमीनार में दलितों के 50 संगठन शामिल हुए थे। लेकिन मंच पर बैठे लोगों में शामिल कुछ चेहरे ऐसे रहे जिन्हें देखकर साफ लगता है कि ऐसा एक खास मंसूबे के साथ किया गया। कांग्रेस पार्टी के समर्थक और गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवाणी और रोहित वेमुला की मां तो यहां थी हीं, वह उमर खालिद भी मौजूद था जिसने भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसे देश विरोधी नारे लगाए थे। ये सबके सब वे लोग हैं, जिनका समर्थन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी करते हैं। मेवाणी और खालिद पर दो समुदायों में हिंसा भड़काने के आरोप में केस दर्ज किया जा चुका है।

3. गुजरात चुनाव में आजमाया जातिवाद का हर कार्ड

गुजरात में सत्ता हथियाने के चक्कर में कांग्रेस जातिवादी राजनीति के निम्नतम स्तर को भी पार कर गई लेकिन जनता को उसका पूरा खेल समझ में आ गया और कांग्रेस के सपने चूर-चूर हो गए। कांग्रेस का असली रूप तब सामने आ गया था जब उसके एक नेता ने देश के प्रधानमंत्री तक पर मर्यादा की सारी लीमाओं को लांघते हुए भद्दी टिप्पणी की। अल्पेश ठाकोर से लेकर हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी तक को जिस प्रकार से उसने अपने साथ में लिया उससे यह जाहिर हो गया कि अब कांग्रेस अपने लिए उम्मीद सिर्फ जातिवाद की  राजनीति में देख रही है।

4. वोटों के लिए बहुरुपिया बने राहुल

गुजरात में चुनाव के दिन आते ही राहुल गांधी मंदिर-मंदिर घूमने लगे थे। लोगों के लिए यह इसलिए हैरान करने वाला था क्योंकि राहुल इससे पहले इस तरह मंदिर जाते कभी नहीं देखे गए थे। चुनावों के दौरान उन्होंने 27 बार मंदिरों का दौरा किया। जिस कांग्रेस पार्टी का इतिहास अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के कदमों से भरा रहा है उसके नेता का अचानक नये चोले में दिखना वोट बैंक को साधने की कोशिश के अलावा और कुछ कैसे हो सकता है। मजेदार बात तो यह रही कि सोमनाथ मंदिर में राहुल के गैरहिंदू रजिस्टर पर नाम लिखे जाने की बात आते ही कांग्रेस ने कोट के ऊपर से जनेऊ धारण किये राहुल का फोटो पेश करती नजर आई।      

5. मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस की हकीकत आई थी सामने

कांग्रेस जिस राज्य में वर्षों से सत्ता से दूर रही है वहां ऐसे-ऐसे उत्पात मचाने की उसकी कोशिश नजर आती है जिससे सामाजिक सद्भाव बिगड़ सके। छह महीने पहले मध्य प्रदेश में इसी का एक नमूना सामने आया था। वहां शांतिपूर्ण तरीके से चल रहे किसान आंदोलन के बीच भी कांग्रेसी नेताओं ने हिंसा फैलाने के लिए भड़काऊ बयानबाजी की थी। उस दौरान कई वीडियों सामने आए थे, जिसमें कांग्रेस नेता दंगा और आगजनी करने के लिए लोगों को उकसा रहे थे।

6. यूपी चुनावों में समाज को धर्म-जाति में बांटने की कोशिश

राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण माने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपने बुझ चुके राजनीतिक दीये को जलाने के लिए हर तरह के समझौते करती रही। विधानसभा चुनावों में पहले तो कांग्रेस ने ‘27 साल यूपी बेहाल’ का नारा दिया लेकिन फिर यूपी को बेहाल करने वाली पार्टियों में से एक समाजवादी पार्टी से गठबंधन भी कर बैठी। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश को धर्म के आधार पर हिन्दू और मुस्लिम में तो बांटने की कोशिश की ही, हिन्दुओं को भी जातियों के आधार पर बांट कर अधिक से अधिक वोट हासिल करने के लिए गठबंधन बनाये। हालांकि जनता ने गले लगाया तो बस विकास को।

7. लालू से हाथ मिलाने में कांग्रेस आगे

आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के ऊपर लगे एक-पर-एक घोटाले के आरोपों से अब पूरा देश वाकिफ है। देश के जो राजनीतिक चेहरे भ्रष्टाचार के आरोपों से स्याह पड़ चुके हैं उनमें से लालू प्रसाद यादव सूची में सबसे ऊपर के नामों में हैं। कांग्रेस को ऐसे नेता से हाथ मिलाने में कभी कोई गुरेज नहीं रहा तो बस वोट बैंक के चलते। कांग्रेस की सोच जातिवाद और संप्रदायवाद की राजनीति से ऊपर होती तो वह लालू से परहेज करके एक मिसाल दे सकती थी।  

8. महाराष्ट्र को बांटने की कोशिश पहले भी कम नहीं

गुजरात, उत्तर प्रदेश और बिहार के साथ देश का ऐसा कोई प्रदेश नहीं है, जहां कांग्रेस ने समाज की विविधता का अनुचित लाभ उठाते हुए, उसे वोट बैंक में बदलने की कोशिश ना की हो। आज जिस महाराष्ट्र में जातिगत आधार पर फूट पैदा करने की कोशिश में कांग्रेस लगी हुई है वहां उसने पहले भी विभाजन के बीज खूब बोये हैं। महाराष्ट्र में मराठों को नौकरियों में आरक्षण के लिए बरगला कर राज्य में तूफान खड़ा करने का काम वह कर चुकी है। महाराष्ट्र के समाज को मराठी और गैर-मराठियों में बांटने की साजिश में वो हमेशा लगी रहती है लेकिन जनता की समझदारी से वो अब अपने ऐसे किसी भी इरादे में सफल नहीं हो पाती।   

9. ‘भगवा आतंकवाद’ से संप्रदायवाद का जहर बोया

वोट के लिए देशवासियों को धर्म और जाति के वर्गों में बांटने की कुत्सित रणनीति बनाने में कांग्रेस माहिर रही है। कांग्रेस ने मुस्लिम समाज को तुष्ट करने के लिए ‘भगवा आतंकवाद’ का एक टर्म भी तैयार किया था।  मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार में गृहमंत्री रहे पी चिदंबरम ने ‘भगवा आतंकवाद’ के स्वरूप को जन्म दिया था ताकि मुस्लिम आतंकवाद के मनोवैज्ञानिक प्रभाव को कम किया जा सके और मुस्लिम वोट बैंक को कांग्रेस के साथ रखा जा सके। खबर तो यह भी आ चुकी है कि मुंबई पर 26/11 के आतंकी हमलों के दो साल बाद मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत के लिए हाफिज सईद से भी ज्यादा खतरनाक ‘हिंदू आतंकवाद’ को बताया था।

10. जहर के असर से 44 पर सिमटी, अगले चुनाव में खत्म!

अपनी राजनीति में कांग्रेस शुरू से ही जहर बोती रही है लेकिन अब उसकी इस चाल को जनता पूरी तरह से समझ चुकी है। यही वो वजह है जिसके चलते पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट गई थी। हो सकता है अगले लोकसभा चुनावों में वह एक अदद जीत को तरस जाए। खुद के तैयार किए जातिवाद के जहर का असर तब तक हाथ से होते हुए पूरे कांग्रेस रूपी शरीर में ना फैल जाए और मौजूदा कांग्रेस पार्टी बस एक इतिहास का पन्ना बनकर रह जाए।  

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