Home विचार जातियों के टकराव से आखिर किसको हो रहा है फायदा?

जातियों के टकराव से आखिर किसको हो रहा है फायदा?

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आगजनी, हिंसा, उपद्रव, भारत बंद, उपवास के नाम पर उपहास और अब सवर्णों द्वारा कथित आरक्षण विरोध जैसी बातें भारत की वर्तमान राजनीति की पहचान बन गई हैं। बांटने की राजनीति, तोड़ने की पॉलिटिक्स, टकराव की साजिश जैसी बातों से राजनीति चमकाई जा रही है। इन सबके बीच ये सवाल उठ रहा है कि आखिर इस पूरे प्रकरण से किसको फायदा मिल रहा है?

दरअसल यह केवल राजनीति नहीं, बल्कि एक बड़ी साजिश है। यह पूरी प्लानिंग है, जो कांग्रेस पार्टी ने कैंब्रिज एनालिटिका से मिलकर तैयार की है। ऐसी खबरें हैं कि 2019 में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने कैंब्रिज कंपनी को ठेका दिया है। ये वही कंपनी है जो हाल ही में दुनिया भर में फेसबुक पर लोगों के डेटा चोरी करने के मामले में पकड़ी गई है।

जातियों में टकराव पैदा कर राजनीति चमका रही कांग्रेस
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश की राजनीति ने करवट ली और देश नकारत्मकता को त्याग कर सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ने लगा। जिम्मेदारी, जवाबदेही और नैतिकता की राजनीति का परिणाम यह रहा कि कांग्रेस पार्टी अस्तित्वहीन होने लगी। हालांकि कांग्रेस ने सत्ता में वापसी के लिए एक बार फिर से Divide and rule की राजनीति अपना ली है और जातियों के बीच टकराव की साजिश रच रही है।

सवर्णों के नाम पर हिंसा की खतरनाक प्लानिंग
आरक्षण विरोध के नाम पर 10 अप्रैल को भारत बंद का आह्वान किया गया। महत्पूर्ण तथ्य ये है कि भारत बंद किस संगठन ने बुलाया इसका ठीक-ठीक पता ही नहीं लग पाया। सोशल मीडिया को इस दुष्प्रचार के लिए हथकंडा बनाया गया और अफवाह फैलाई गई। देश को आरक्षण विरोध और समर्थन की आग में झोंकने की साजिश रची गई। इन सबके बीच यह भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि न तो किसी सवर्ण संगठन ने इस बंद को बुलाया और न ही ओबीसी महासभा ने इसका समर्थन किया।

दलितों को बदनाम करने की डर्टी पॉलिटिक्स
2 अप्रैल को हुए दलितों के भारत बंद के पीछे भी कैंब्रिज एनालिटिका का हाथ माना जा रहा है। उसने देश भर में कई दलित संगठनों और राजनीतिक दलों को मिलाकर बंद की रणनीति तैयार की थी। बीते एक हफ्ते में दलित आंदोलन में हिंसा की जांच में जो तथ्य सामने आए हैं,  उससे साबित हो गया है कि तोड़-फोड़, लूटमार और महिलाओं से छेड़खानी एक साजिश के तहत की गई थी और बदनामी दलितों को झेलनी पड़ी थी। हालांकि कांग्रेस दलितों के प्रति कितनी संवेदनशील है इसका पता तो 09 अप्रैल के उपवास के दौरान पता लग ही गया था, जब कांग्रेस के नेता पेट पूजा कर उपवास पर बैठे थे।

सवर्ण-दलित टकराव की साजिश रच रही कांग्रेस
आरक्षण विरोध के नाम पर तथाकथित कांग्रेसी नेताओं की सक्रियता भी संदेह पैदा कर रहा है। ऐसी खबरें हैं कि कैंब्रिज एनालिटिका के एजेंटों ने अलग-अलग शहरों में असमाजिक तत्वों की मदद से आंदोलन की तैयारी की। इसके लिए झंडे, बैनर और दूसरे खर्चों के लिए मोटी रकम भी दी गई। तरह से हर उस राज्य में लोगों को हिंसा फैलाने का काम सौंपा गया, जहां पर आने वाले दिनों में चुनाव होने हैं।

टकराव पैदा करने के लिए करणी सेना-कांग्रेस की मिलीभगत
कांग्रेस ने विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग संगठनों को ‘आग’ लगाने की जिम्मेदारी सौंपी। राजस्थान में तो करणी सेना के नेता सुखदेव सिंह गोगामेडी ने खुलेआम धमकी दी। गौरतलब है कि गोगामेड़ी वही हैं जिसने राजस्थान उपचुनाव में राजपूतों से कांग्रेस को वोट देने की अपील की थी। आनंदपाल के एनकाउंटर को राजपूतों की अस्मिता से जोड़ने और पद्मावती फिल्म के विरोध में भी यही गुट सक्रिय था।

 

सोशल मीडिया के जरिये टुकड़े-टुकड़े करने की साजिश
कैंब्रिज एनालिटिका की शह पर कांग्रेस ने फेसबुक और ट्विटर पर सवर्ण, दलित और ओबीसी नामों वाले ढेरों प्रोफाइल बनवाए हैं। इसके माध्यम से एक-दूसरे के लिए गालियां लिखी जा रही हैं। हाल में ही ही फेसबुक ने एक ऐसे ‘ब्राह्मण फेसबुक ग्रुप’ को ब्लॉक किया है, जिसका एडमिन एक मुसलमान था। इस ग्रुप में सिर्फ दलितों ही नहीं, बल्कि हिंदुओं की दूसरी सभी जातियों को गालियां दी जा रही थीं। इस ग्रुप ने महाराणा प्रताप और भीमराव आंबेडकर के लिए अपमानजनक तस्वीरें और पोस्ट शेयर की थीं।

देश की जनता कांग्रेस की साजिश को पहचानेगी?
कुछ दिन पहले कैंब्रिज एनालिटिका के एक पूर्व अधिकारी क्रिस्टोफर विली ने माना था कि कंपनी को भारत में जातीय आधार पर गृहयुद्ध कराने की तैयारी है। जाहिर है लोग कांग्रेस की इस साजिश को समझना पड़ेगा और यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि लोग इस साजिश का मोहरा न बनें!

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