महाराष्ट्र में दो दिनों से मचे हंगामे और हिंसा के पीछे कौन है? कौन लोग हैं, जो महाराष्ट्र में दलितों और मराठों के बीच हिंसा को भड़का रहे है? मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस पूरे बवाल के पीछे कांग्रेस पार्टी का हाथ है। आपको बता दें कि पुणे में पिछले कई दशकों से दलित कोरेगांव युद्ध का जश्न मनाते आए हैं, मगर पहले कभी हिंसा नहीं हुई। कोरेगांव युद्ध के 200 वर्ष पूरे होने पर आयोजित जश्न के मौके को हिंसा में तब्दील करने के पीछे कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों का हाथ बताया जा रहा है।
कांग्रेस के समर्थकों ने भड़काई हिंसा: मीडिया रिपोर्ट्स
हम आपको बताते हैं कि महाराष्ट्र में कौन सा राजनीतिक गैंग इस वक़्त एक्टिव है। 31 दिसंबर को पुणे के पास भीमा-कोरेगांव में एक सेमिनार का आयोजन किया गया था। जिसमें दलितों के 50 संगठन शामिल हुए थे। इसमें कुछ मुस्लिम संगठन भी शामिल थे, लेकिन जब आप मंच पर बैठे हुए लोगों को देखेंगे तो आपको हैरानी होगी क्योंकि, इस मंच पर गुजरात से विधायक और कांग्रेस पार्टी के समर्थक जिग्नेश मेवाणी मौजूद थे। इसके अलावा इस मंच पर उमर खालिद भी मौजूद था, उमर खालिद JNU का वही छात्र नेता है, जिसने भारत तेरे टुकड़े होंगे.. जैसे देशविरोधी नारे लगाए थे। मंच पर रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला भी मौजूद थीं। ये सब वो लोग हैं, जिनका समर्थन कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी करते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कांग्रेस के इन्हीं समर्थकों ने एक जनवरी को कार्यक्रम के दौरान, हिंदू एकता को तोड़ने के लिए अपने समर्थकों और असामाजिक तत्वों को दलितों की भीड़ में शामिल कर दिया। इन्हीं लोगों ने मराठा लोगों पर भद्दी टिप्पणियां कर उन्हें उकसाना शुरू कर दिया। पूरी साजिश दलित और मराठा समुदाय के लोगों के बीच फूट डालने के लिए रची गई थी। मौके पर मौजूद लोगों ने यहां तक बताया कि कई कट्टरपंथी मुस्लिम टोपी उतार कर इसमें शामिल हो गए और तोड़फोड़ शुरू कर दी। फिर देखते ही देखते हिंसा की आग फैल गई। पुणे के पुलिस स्टेशन में जिग्नेश मेवाणी और उमर खालिद के खिलाफ भड़काऊ बयान देने की शिकाय की गई है। शिकायत में कहा गया कि इनके बयानों के बाद दो समुदायों में हिंसा भड़की।
Jignesh Mewani, Omar Khalid, Prakash Ambedkar and Radhika Vemula in Pune at an event marking the 200th anniversary of the Battle of Bhima Koregaon (31.12.17) pic.twitter.com/s4ngA9T8hc
— ANI (@ANI) 2 January 2018
JUST IN: Khalid – Mevani role under lens #MaharashtraCasteClash
— TIMES NOW (@TimesNow) 2 January 2018
A central pillar of the RSS/BJP’s fascist vision for India is that Dalits should remain at the bottom of Indian society. Una, Rohith Vemula and now Bhima-Koregaon are potent symbols of the resistance.
— Office of RG (@OfficeOfRG) 2 January 2018
मोदीजी २०० साल पहले युद्ध के मैदान में वो ५०० थे तो भी जीते थे, २०१९ में चुनाव के मैदान में हम २५ करोड़ लोग आपको करारा जवाब देंगे।
— Jignesh Mevani (@jigneshmevani80) 2 January 2018
यह कोई पहला वाकया नहीं है, इससे पहले भी कांग्रेस पार्टी अपने फायदे और बीजेपी सरकारों को अस्थिर करने के लिए हिंसा फैलाने और लोगों को भड़काने का काम कर चुकी है। कांग्रेस पार्टी के इस तरह के कारनामों की सूची बेहद लंबी है।
मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस की हकीकत आई थी सामने
इससे पहले मध्य प्रदेश में शांतिपूर्ण तरीके से चल रहे किसान आंदोलन के बीच भी कांग्रेसी नेताओं ने हिंसा फैलाने के लिए भड़काऊ बयानबाजी की थी। उस दौरान कई वीडियों सामने आए थे, जिसमें कांग्रेस नेता दंगा और आगजनी करने के लिए लोगों को उकसा रहे थे।
यूपी हो या उत्तराखंड, गुजरात हो या हिमाचल, इन राज्यों में कांग्रेस पार्टी हिंदू एकता के कारण बुरी तरह से हारी है। मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले राहुल गांधी ने गुजरात में जनेऊ धारण कर मंदिरों के चक्कर तक लगाए, मगर जनता की आंखों में धूल झोंकने में विफल रहे। लिहाजा कांग्रेस पार्टी अब फूट डालो, राज करो की नीति के तहत समाज में फूट डालने की साजिश रच रही है।
यूपी में भीम आर्मी के नाम से ऐसा ही किया गया था
ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी हुआ था। वहां कट्टरपंथी मुस्लिमों ने दलित प्रदर्शनकारियों के बीच घुसकर हिंसा फैला दी थी, मगर सीएम योगी की सख्त कार्रवाई के कारण सभी दंगाई जेल में डाल दिए गए और कईयों पर रासुका के तहत कार्रवाई की गई थी। मोदी लहर का सामना करने में विफल रही कांग्रेस पार्टी और अन्य विपक्षी दल घटिया और घिनौनी राजनीति पर उतर आए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मौका देखते ही दलितों के नाम पर राजनीति शुरू कर दी है।
वर्गों में विभाजित करके, समाज को देखने की सोच
कांग्रेस भारतीय समाज की विभिन्नता के स्वरूप को संजोने के बजाय, उसे विभक्त करने का काम करती रही है। नेहरू की परंपरा ने देश के सूक्ष्म सांस्कृतिक ताने-बाने को आत्मसात किये बगैर समाज को विभिन्न धर्मों, संप्रदायों और जातियों के गुच्छे की तरह से देखने की सोच को कांग्रेस में पल्लवित किया। इसका परिणाम यह रहा कि कांग्रेस ने सत्ता पर अपना कब्जा बनाये रखने के लिए देश की इस विभिन्नता को वोट बैंक में बदल दिया। जिस वर्ग के वोट मिलने से सत्ता बची रह सकती है, उस वर्ग का तुष्टिकरण इन्होंने अपना धर्म समझ लिया। इतिहास में कांग्रेस की इस सोच के अनेकों उदाहरण है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज भी कांग्रेस उसी रास्ते पर चल रही है।गुजरात के समाज को पाटीदार, दलित और पिछड़ों में बांट दिया
अभी हाल ही में संपन्न हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में सत्ता पाने के लालच में अंधी कांग्रेस ने गुजरात के समाज को वर्गों में बांट दिया। हार्दिक पटेल को पाटीदार पटेल के नेता के रुप में, तो जिग्नेश मेवाणी को दलित समाज के नेता के रूप में, और अल्पेश ठाकोर को अन्य पिछड़ा वर्ग के नेता के रूप में उभरने की महत्वाकांक्षा को बरगलाया, फिर इनकी तुष्टिकरण के लिए चुनाव साथ में लड़ने का फैसला किया। उत्तर प्रदेश के समाज को धर्म और जाति में बांट दिया
गुजरात चुनाव से पहले, वर्ष 2017 की शुरुआत में राजनीतिक रूप से अति महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में चुनाव जीत कर सत्ता में आने के लिए समाज को बांटने की कोशिश की। प्रदेश को धर्म के आधार पर हिन्दू और मुस्लिम में तो बांटा ही, हिन्दुओं को भी जातियों के आधार पर बांट कर अधिक से अधिक वोट हासिल करने के लिए गठबंधन बनाये। इन गठबंधनों का आधार मात्र यही था कि कौन सी पार्टी किस वर्ग का अधिक से अधिक वोट लेकर आ सकती है। समाजवादी पार्टी से गठबंधन इसलिए किया कि उसके मुस्लिम और यादव वोट से चुनावों में जीत पक्की हो जायेगी। कांग्रेस ने सभी के विकास या समृद्धि के रास्ते पर न चल कर चुनावों में फायदा पहुंचाने वाले वर्गों के तुष्टिकरण का काम किया, जो आसान और सुगम था।
महाराष्ट्र को बांटने का काम
गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश के साथ देश का ऐसा कोई प्रदेश नहीं है, जहां कांग्रेस ने समाज की विभिन्नता का अनुचित लाभ उठाते हुए, वोटबैंक में न बदला हो। महाराष्ट्र में मराठों को नौकरियों में आरक्षण के लिए बरगला कर राज्य में तूफान खड़ा करने का काम किया। इस तरह से महाराष्ट्र के समाज को मराठी और गैर-मराठियों में बांटने का कुत्सित खेल खेला।
देश को धर्म के नाम पर बांट दिया
देश की विविधता को वोटबैंक के रूप में देखने वाली कांग्रेस ने मुस्लिम नेताओं की महत्वाकांक्षाओं का भरपूर लाभ उठाया। इन नेताओं को तुष्ट करके मुस्लिम समाज का वोट बटोरने का फॉर्मूला कांग्रेस ने निकाला, और देश को धर्म के आधार पर बांट दिया। इसका कई चुनावों में कांग्रेस फायदा उठाती रही। कांग्रेस के इसी फॉर्मूले को कई क्षेत्रीय दलों ने भी अपनाना शुरू कर दिया। उत्तर प्रदेश में समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी, तो बिहार में राष्ट्रीय जनता दल ने। आज भी धर्म को कांग्रेस वोटबैंक के रूप में ही देखती है।
देश में ‘भगवा आतंकवाद’ का जहर बोया
देश को वोट के लिए धर्म और जाति के वर्गों में बांटकर चुनाव जीतने की रणनीति में माहिर कांग्रेस ने मुस्लिम समाज को तुष्ट करने के लिए, मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार में रहे गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भगवा आतंकवाद के स्वरुप को जन्म दिया, ताकि मुस्लिम आतंकवाद के मनोवैज्ञानिक प्रभाव को कम किया जा सके, जिससे मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस के साथ ही बना रहे।
देश में दलितों के दिलों में जहर बोने का काम
ऊना में दलितों की पिटाई का कांड बिहार चुनाव से ठीक पहले करवाया गया। इसका मकसद था कि देश भर के दलितों में ये संदेश जाए कि बीजेपी के राज्यों में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं, लेकिन जांच में सामने आया कि समधियाल गांव का सरपंच प्रफुल कोराट ऊना के कांग्रेसी विधायक और कुछ दूसरे कांग्रेसी नेताओं के साथ संपर्क में था। सरपंच ने ही फोन करके बाहर से हमलावरों को बुलाया था। जो वीडियो वायरल हुआ था वो भी प्रफुल्ल कारोट के फोन से ही बना था। कांग्रेस ने यह जहर देश में सिर्फ इसलिए पैदा किया ताकि चुनावों में दलित वोटों का फायदा लिया जा सके। यही नहीं हैदराबाद विश्वविद्यालय में दलित युवक की आत्महत्या जो एक कानून व्यवस्था की समस्या थी उसे राष्ट्रीय समस्या के रूप में पेश करने के पीछे भी यही मकसद था कि दलितों के वोटबैंक पर कब्जा किया जाए।
कांग्रेस का नेतृत्व आज राहुल गांधी के हाथ में है, लेकिन कांग्रेस की कार्यशैली मध्ययुगीन सभ्यता की है, जिसमें राष्ट्र से बड़ा स्वार्थ होता है। राहुल गांधी की पूरी कवायद यही है कि किस तरह से कांग्रेस को वापस सत्ता पर काबिज किया जाए, उनका यह मकसद नहीं है कि देश की विविधता को एक सूत्र में पिरोते हुए विकास की ऊंचाईयों पर ले जाने का काम किया जाए।