कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री फारुक अब्दुल्ला ने एक बार फिर से शांत होते जा रहे कश्मीर में हलचल पैदा करने की कोशिश की है। उन्होंने न सिर्फ कश्मीर मुद्दे में अमेरिकी मध्यस्थता की दलील दोहराई है, बल्कि इस मसले में उन्होंने अब चीन को भी शामिल करने की कोशिश की है। चीन से हमारे रिश्ते कैसे हैं ये फारुक अब्दुल्ला समेत सभी जानते हैं… इसलिए ऐसा लगता है कि उन्होंने ऐसा बयान जानबूझकर दिया है। दरअसल फारुक अब्दुल्ला जैसे नेताओं का गैर जिम्मेदाराना रवैया और राज्य में उसके साथी रही कांग्रेस के नेताओं की ढुलमुल नीति के कारण ही आज कश्मीर में ऐसे हालात हैं। आज जबकि मोदी सरकार हर स्तर पर कश्मीर समस्या के समाधान का रास्ते पर चल रही है तो उसे बाधा पहुंचाने की कुत्सित कोशिश हो रही है। फारुक अब्दुल्ला कश्मीर और देश के कद्दावर नेताओं में गिने जाते हैं, इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि उन्होंने ऐसा देशविरोधी बयान क्यों दिया?
हर हाल में सत्ता पाना चाहते हैं फारुक अब्दुल्ला
दरअसल ये कश्मीर के राजनीतिक दलों की समस्या है कि जो भी पार्टी सत्ता से दूर रहती है वह ऐसी ही अनर्गल बयानबाजी करते हैं। इसके साथ ही यह भी तथ्य है कि कांग्रेस और इसके साथी दल सत्ता पाने की जुगत में हमेशा देशहित से खिलवाड़ करते हैं। बेटा उमर अब्दुल्ला जब फारुक अब्दुल्ला की राजनीतिक विरासत को संभाल नहीं पा रहे तो एक बार फिर फारुक मैदान में हैं। वे सियासी तौर पर खुद को और अपने पुत्र को पुनर्स्थापित करने की जुगत में देशविरोधी हरकतें करने पर उतर आए हैं। दरअसल उन्हें लगता है कि ऐसी बातें उन्हें कश्मीर में सत्ता दिलाने में मददगार होंगी। लेकिन फारुक को ये समझना चाहिए कि जनता भी कश्मीर मुद्दे पर किसी की मध्यस्थता नहीं चाहती और भारत सरकार तो ऐसी किसी बात को तवज्जो देती ही नहीं। ऐसे में फारुक का ये बयान ‘पागलपन’ की हद तक सत्ता पाने की उनकी हनक का ही परिणाम है।
I want to tell Modi sahab that tourism is our life no doubt about that but a stone pelter has nothing to do with tourism: Farooq Abdullah pic.twitter.com/PNZlb6H0BC
— ANI (@ANI_news) April 5, 2017
इसी साल अप्रैल के पहले हफ्ते में फारुक अब्दुल्ला ने ऐसा ही गैर जिम्मेदाराना बयान देते हुए कहा था कि -पत्थरबाज अपने देश के लिए लड़ रहे हैं। फारुक अब्दुल्ला ने तब कहा था कि पत्थरबाजों का टेररिज्म से कुछ लेना-देना नहीं है, वे भूखे पेट अपने देश (कश्मीर) के लिए लड़ रहे हैं। उन्होंने उस वक्त भी अमेरिका से कश्मीर मसले में दखल देने की मांग की थी। जाहिर तौर पर तब भी कांग्रेस की ढुलमुल नीति रही थी। मणिशंकर अय्यर सरीखे नेताओं ने तो फारूक के बयान का समर्थन तक कर डाला था। जाहिर तौर पर अपने साथियों का सहयोग पाकर फारुक का हौसला और बढ़ गया है और अनर्गल अलाप करते जा रहे हैं।
…ऐसे तो सीरिया बन जाएगा कश्मीर-महबूबा मुफ्ती
जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रेसिडेंट फारुक अब्दुल्ला के कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता को लेकर दिए बयान पर पलटवार किया है। महबूबा ने कहा कि अगर चीन और अमेरिका कश्मीर में हस्तक्षेप करेंगे, तो घाटी के हालात सीरिया और अफगानिस्तान जैसे हो जाएंगे। मुख्यमंत्री ने कहा, ”चीन और अमेरिका अपना काम करें। हमें पता है कि उन देशों की हालत क्या है, जहां अमेरिका ने हस्तक्षेप किया है। अफगानिस्तान, सीरिया या इराक के हालात हमारे सामने हैं। सिर्फ भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय बातचीत से ही कश्मीर मुद्दे का समाधान हो सकता है। क्या फारूक अब्दुल्ला को पता नहीं है कि सीरिया और अफगानिस्तान में क्या हुआ?”
फारुक अब्दुल्ला के बयान पर हो सख्त कार्रवाई
फारुक अब्दुल्ला तीन बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। केन्द्र की सरकार में भी वे कई पद संभाल चुके हैं। तो क्या उन्हें भारत की सोच और नीति के बारे में पता नहीं है? इतना ही नहीं देश में तमाम विचारधाराओं के लोग हैं और राजनीतिक रूप से एक-दूसरे का विरोध भी करते हैं, लेकिन ये देश का मुद्दा है और जिम्मेदार राजनेताओं से उम्मीद की जाती है कि वे ऐसे मुद्दों पर संभलकर बोलें। लेकिन फारुक अब्दुल्ला जैसे नेता जो भारत का खाकर भारत विरोध की राजनीति करते हैं क्या उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए?
कांग्रेस और उसके साथियों की नीति-नीयत में खोट
कर्नाटक में अलग झंडे की मांग कर अलगाववाद की राजनीति को कांग्रेस ने एक बार फिर हवा दी है। यही काम कांग्रेस ने कश्मीर में भी किया था। कश्मीर के भारत में विलय के समय कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में अलग झंडे और वहां के अलग संविधान को मान्यता दी थी। जाहिर तौर पर भारत इसी गलती को अब तक ढोने को मजबूर है। ऊपर से कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर, पी चिदंबरम और संदीप दीक्षित जैसे नेता भारत सरकार और भारतीय सेना पर ही सवाल उठाती रहती है। सेना द्वारा मानव ढाल बनाये जाने को लेकर तो दुश्मन पाकिस्तान ने भी उतनी बात नहीं की जितनी कांग्रेस और उसके साथी दलों ने की। जाहिर तौर पर कांग्रेस और उसके साथी दल सत्ता पाने के लिए देशहित को भी ताक पर रखने से गुरेज नहीं करते।
मनमोहन सिंह की सरकार ने नहीं लिया एक्शन
मोदी सरकार ने आज जिस तरह से अलगाववादियों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया है ऐसा ही अगर मनमोहन सरकार ने किया होता तो आज कश्मीर के हालात कुछ अलग ही होते। दरअसल कश्मीर में लगातार बिगड़ते माहौल के पीछे काफी हद तक अलगाववादी नेताओं का ही हाथ है। अलगाववादी नेताओं को लगातार उनके पाकिस्तानी आकाओं से मदद मिलती है और वह यहां कश्मीरी लड़कों को भड़काते हैं। NIA की की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2005 से लेकर 2011 के बीच अलगाववादियों को ISI की ओर से लगातार मदद मिल रही थी। 2011 में NIA की दायर चार्जशीट से साफ है कि हिज्बुल के फंड मैनेजर इस्लाबाद निवासी मोहम्मद मकबूल पंडित लगातार अलगाववादियों को पैसा पहुंचा रहा था, लेकिन कांग्रेस सरकार ने इस पर कोई कठोर निर्णय नहीं लिया था।
जवाहर लाल नेहरू-इंदिरा गांधी ने की बड़ी गलती
दरअसल आज जो कश्मीर समस्या है वो सिर्फ कांग्रेस की देन है। भारत के विभाजन के समय इसका हल निकाल पाने में जवाहरलाल नेहरू की असफलता की देश भारी कीमत चुका रहा है। तब न तो दिल्ली में नेहरू सरकार और न ही श्रीनगर में शेख अब्दुल्ला सरकार कभी इस बात को मान सका कि जम्मू-कश्मीर का भारत में पूरी तरह एकीकरण करने की जरूरत है। इस मामले में नेहरू में न तो साहस था न ही दूरदर्शिता थी। अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है जिसे अब तक क्यों कायम रखा गया है यह भी एक सवाल है। 1971 में भी भारत ने कश्मीर मुद्दे को हल करने का मौका गंवा दिया था। 1990 में हिंदुओं के नरसंहार के बाद की चुप्पी ने तो कट्टरपंथियों के हौसले को नये उत्साह से भर दिया था।
कांग्रेस के नाकाम नेतृत्व के कारण मुद्दा बना रहा कश्मीर
भले ही कांग्रेस और इसके साथी दलों के नेता धर्मनिरपेक्षता का राग अलापते रहें लेकिन कश्मीर में इन्हीं के शासन काल में धर्मनिरपेक्षता की बलि चढ़ाई जा चुकी है। दरअसल बढ़ते कट्टरपंथ की वजह से ही 1990 में कश्मीर में हजारों कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया गया था और हिंदू औरतों के साथ बलात्कार किया गया था। धर्मनिरपेक्ष भारत के एक हिस्से में धर्म को लेकर ही अधर्म का नंगा नाच हो रहा था, लेकिन कांग्रेस की सरकार तब तमाशा देख रही थी। कश्मीर अगर आज सुलग रहा है तो कांग्रेस की अदूरदर्शिता और नाकाम नेतृत्व इसका कारण है।