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विपक्ष का महागठबंधन तार-तार, मायावती को मंजूर नहीं कांग्रेस

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तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के खिलाफ विपक्ष का महागठबंधन तार-तार हो गया है। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के साथ किसी भी गठबंधन से इनकार कर दिया है। गौरतलब है कि इससे पहले छत्तीसगढ़ में भी मायावती कांग्रेस झटका देकर अजित जोगी की पार्टी के साथ गठबंधन करने का ऐलान कर चुकी है। मायावती के इस ऐलान के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले विधानसभा चुनावों में ही महागठबंधन टुकड़े-टुकड़े हो गया है। जाहिर है कि कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों को महागठबंधन बनाने में लगी हुई है, लेकिन मायावती के रुख के बाद उसका खेल बिगड़ गया है।

मायावती ने फैसले के लिए कांग्रेस को ठहराया जिम्मेदार
मायावती की दलित वोटरों में पैठ मानी जाती है और इसीलिए कांग्रेस पार्टी बसपा को अपने साथ जोड़ने की कोशिश में लगी है। अब मायावती के मध्यप्रदेश और राजस्थान में अकेले चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फिर गया है। मायावती ने अपने इस फैसले के लिए कांग्रेस के ही कुछ नेताओं को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि कांग्रेस पार्टी गठबंधन करके बसपा को खत्म करना चाहती है।

मध्यप्रदेश, राजस्थान में दूसरे विपक्षी दल भी कांग्रेस के खिलाफ
बसपा ही नहीं दूसरे विपक्षी दलों ने कांग्रेस को किनारे कर अपना अलग गठबंधन बनाने का फैसला किया है। हाल ही में मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी (एसपी), सीपीएम और सीपीआई समेत आठ राजनीतिक दलों के गठबंधन ने कांग्रेस से होकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। इस गठबंद ने एसपी, सीपीएम, सीपीआई के अलावा बहुजन संघर्ष दल, गोंडवाना गणतन्त्र पार्टी, राष्ट्रीय समानता दल, प्रजातांत्रिक समाधान पार्टी और लोकतंत्रिक जनता दल शामिल हैं।

भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाने में कई अड़चनें हैं। सबसे बड़ी अड़चन को खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी है। सपा, बसपा, एनसीपी, टीडीपी जैसे किसी भी दल को राहुल की अगुवाई मंजूर नहीं है। इतना ही नहीं मायवाती, ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव जैसे नेता पीएम बनने का मंसूबा पाले हुए हैं, इन्हें गठबंधन नहीं बल्कि अपनी राजनीति चमकाने की ज्यादा चिंता है। आइए ऐसे में आपको बताते हैं वो पांच कारण, जिनकी वजह से विपक्ष का महागठबंधन होना नामुमकिन है।

कारण नंबर- 1
पीएम पद के 11 उम्मीदवार
संभावित गठबंधन में अधिकतर दल के नेता स्वयं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मान रहे हैं। राहुल गांधी पहले ही पीएम पद के लिए खुद के नाम का एलान कर चुके हैं, वहीं शरद पवार, मायावती, ममता बनर्जी की महत्वाकांक्षाएं भी जगजाहिर हैं। माना जा रहा है कि प्रस्तावित महागठबंधन में 19 दल शामिल हैं, लेकिन इनमें से 11 दलों के शीर्ष नेताओं ने 2019 में गठबंधन की सरकार बनने की सूरत में खुद को पीएम पद के तौर पर पेश करने के लिए भी कमर कस ली है।

कारण नंबर- 2
राहुल गांधी पर नहीं ऐतबार
कांग्रेस बार-बार कहती है कि वह राहुल गांधी के नेतृत्व में गठबंधन की अगुआई करेगी, लेकिन हकीकत ये है कि ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव, शरद पवार, चंद्रबाबू नायडू जैसे दिग्गज नेताओं ने विपक्ष के नेता के रूप में राहुल की भूमिका को पूरी तरह से नकार दिया है। जाहिर है इन नेताओं के रूख से स्पष्ट है कि काग्रेस अध्यक्ष 2019 की लड़ाई में अलग-थलग पड़े दिखाई देंगे। दूसरी तरफ कांग्रेस बिना राहुल गांधी के चेहरे के आगे बढ़ने को तैयार नहीं है, ऐसे में विपक्षी दल जिस मोर्चे की कवायद में जुटे हैं वह सिर्फ कागजों पर ही हकीकत लग रही है।

कारण नंबर- 3
अंतर्विरोध और आपसी रार
2019 के लोकसभा चुनावों में यूपी में महागठबंधन को लेकर मुलायम सिंह यादव ने स्पष्ट कहा है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हैसियत सिर्फ दो सीटों की है। ममता बनर्जी और शरद पवार ने भी कहा है कि पीएम पद को लेकर कोई बात नहीं की जाएगी। संदेश यह भी कि ये नेता खुद को इस गठबंधन की अगुआई के दावेदार भी बता रहे हैं। एक हकीकत ये है कि इसमें कई दल ऐसे हैं जो एक साथ एक दूसरे से पास भी आना चाहते हैं दूर-दूर दिखना भी चाहते हैं। अरविंद केजरीवाल की आप और राहुल की कांग्रेस का संबंध तो यही अंतर्विरोध जाहिर कर रहा है।

कारण नंबर- 4
विपक्ष का सिमटता जनाधार
प्रधानंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी और एनडीए ने देश के हर चुनाव में लगातार जीत हासिल की है, फलस्वरूप 19 राज्यों में बीजेपी और एनडीए की सरकार है। देश के 74 प्रतिशत भू-भाग पर एनडीए का शासन है। यह इसलिए संभव हो सका है कि वाम दल, एनसीपी, टीएमसी, एसपी, बीएसपी, आरजेडी जैसी पार्टियों के जनाधार में कमी आई है, यानि ये दल अपने-अपने प्रभाव वाले राज्यों में भी जनाधार खो चुके हैं।

कारण नंबर- 5
मोदी विरोध या विपक्ष का अहंकार
कई विरोधी दल चूंकि विपक्ष में इसलिए महज विरोध करने के नाम पर एक दिखना चाहते हैं, लेकिन इसकी कमी यह है कि मोदी विरोध की राजनीति पर चलते हुए रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभा पाने में विफल साबित हो रहे हैं। दरअसल मोदी विरोध का आलम यह है कि केंद्र सरकार कितनी भी अच्छी नीतियां देशहित में क्यों न बना लें, विपक्ष उसके विरोध में हो-हल्ला करता ही है। गलत नीतियों, विचारों का विरोध तो जरूरी है, लेकिन हितकारी नीतियों पर जबरदस्ती विरोध कर देशहित को नुकसान पहुंचाना समझ से परे है।

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