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पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा की जीत का सिलसिला जारी, त्रिपुरा पंचायत चुनाव में 90% से अधिक सीटों पर खिला कमल

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की जीत का सिलसिला जारी है। लोकसभा चुनाव में रिकॉर्डतोड़ जीत के बाद भाजपा ने अब त्रिपुरा के पंचायच चुनाव में जबर्दस्त जीत हासिल की है। भाजपा ने त्रिपुरा पंचायत चुनाव में 90 फीसदी से अधिक सीटें जीती है। राज्य की 86 फीसदी सीटें ऐसी हैं, जहां भाजपा प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए हैं। राज्य में 25 सालों तक शासन करने वाली लेफ्ट पार्टियों का पंचयात चुनाव में खाता तक नहीं खुला है। आपको बता दें कि त्रिपुरा में पिछले वर्ष पीएम मोदी की अगुवाई में वाम मोर्चे के 25 साल पुराने शासन का अंत हुआ था और राज्य में भाजपा की सरकार बनी थी।

प्रधानमंत्री मोदी ने त्रिपुरा पंचायत चुनाव में भाजपा की जीत का श्रेय ‘विकास की राजनीति’ को दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, ‘त्रिपुरा का भाजपा पर भरोसा कायम है! मैं पंचायत चुनाव में पार्टी को आशीर्वाद देने के लिए लोगों का धन्यवाद करता हूं। त्रिपुरा के ग्रामीण इलाकों में परिवर्तनकारी कार्य कई लोगों के जीवन पर सकारात्मक असर डाल रहे हैं।’

प्रधानमंत्री मोदी ने त्रिपुरा में कड़े परिश्रम के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं की भी सराहना की है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘मैं अन्य राज्यों के भाजपा कार्यकर्ताओं से अपील करूंगा कि वे त्रिपुरा के कार्यकर्ताओं से संवाद करें। राज्य में पार्टी की लगातार जीत विकास की राजनीति और लोकतांत्रिक स्वभाव की शक्ति को दर्शाती है।’ प्रधानमंत्री ने भी कहा कि स्थानीय चुनाव में जीत यह भी दिखाती है कि ‘उचित प्रयासों से सब कुछ संभव है’।

आपको बता दें कि त्रिपुरा में पंचायत चुनाव 27 जुलाई को करवाया गया था, उसमें रिकार्ड 76.6 फीसदी वोटिंग हुई थी। भाजपा को त्रिपुरा के 8 जिलों में जिला परिषद की 116 सीटों में 114 सीटों पर जीत मिली है। वहीं 35 ब्लाकों में पंचायत समिति की कुल 419 सीटों में से भाजपा ने 411 सीटों पर जीत दर्ज की है। 591 पंचायतों में ग्राम पंचायत की कुल 6111 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी ने 5916 सीटों पर जीत का परचम लहराया है।

आपको बताते हैं कि लोकसभा चुनाव में पूरे देश में कमल खिलाने वाले प्रधानमंत्री मोदी की बंपर जीत की क्या वजह थी।-

2019 लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की विराट जीत में टूट गए जाति और धर्म के बंधन
नरेन्द्र मोदी देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बन गए हैं जिन्होंने लगातार दूसरी बार बहुमत हासिल किया है। 42 साल बाद किसी सरकार ने बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है। विपक्षी पार्टियों के इरादों को चकनाचूर करते हुए पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी न केवल खुद 300 से ज्यादा सीटें जीतने में सफल रही, बल्कि एनडीए का आंकड़ा भी 350 के पार पहुंचाने में कामयाब रही। इस जीत में जाति और धर्म की सभी सीमाएं टूट गई और पीएम मोदी को सभी तबके के मतदाताओं का समर्थन मिला। धर्म के आधार पर देखें तो अल्पसंख्यकों की बहुलता वाले क्षेत्रों में भी सबसे ज्यादा सीटें बीजेपी ने जीती हैं। समाज के अलग-अलग तबकों की बात करें तो एससी-एसटी के लिए आरक्षित सीटों पर भी बीजेपी को 2014 से ज्यादा सीटें मिली हैं।

आंकड़ों से समझिए विराट जीत के मायने

  • देश में 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम, सिख और ईसाई आबादी वाली 130 सीटें हैं, इनमें से सबसे ज्यादा 53 सीटें बीजेपी को मिली हैं।
  • 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली 96 सीटों में से भी करीब आधी यानी 46 सीटें पीएम मोदी के खाते में गई हैं।
  • अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 84 सीटों पर बीजेपी को इस बार 2014 की तुलना में 12 फीसदी ज्यादा सीटें मिली हैं।
  • अनुसूचित जनजातियों के लिए देश भर में आरक्षित 47 सीटों पर भी 2014 के मुकाबले 15 फीसदी ज्यादा सीटें मिली हैं।
  • सबसे ज्यादा ओबीसी आबादी वाले 6 राज्यों में बीजेपी को 108 सीटें मिली जबकि कांग्रेस 29 और अन्य के खाते में केवल 86 सीटें गईं।

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अल्पसंख्यकों पर भी चला मोदी का जादू
देश में 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम, सिख और ईसाई आबादी वाली 130 सीटें हैं, इनमें से सबसे ज्यादा 53 सीटें बीजेपी को मिली हैं। दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल में मुस्लिम बहुलता वाली 14 सीटों के साथ तृणमूल कांग्रेस है। हालांकि पिछले वर्ष भी उसने यहां 14 सीटें ही जीती थीं। जिन सीटों पर 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम हैं, उन 96 सीटों में से भाजपा को इस बार 46 सीटें मिली हैं। जो 2014 के लोकसभा चुनाव से सिर्फ दो कम है। जबकि माना जा रहा था कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की सीटें कम होंगी। इतनी मुस्लिम आबादी वाली सीटों में कांग्रेस ने एक सीट के फायदे के साथ 11 सीटें जीती हैं।

वहीं 40 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटरों वाली 29 सीटों में भाजपा, तृणमूल  कांग्रेस, उत्तर प्रदेश का महागठबंधन और कांग्रेस 5-5 सीटें जीतने में सफल हुई हैं। सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर्स वाले राज्य उत्तर प्रदेश में 20 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटरों वाली 28 सीटें हैं। इनमें भाजपा को 21 सीटें मिली हैं। यह 2014 से 7 कम हैं। जबकि पश्चिम बंगाल में भाजपा को इस बार फायदा मिला है। जहां उसे 2014 में मुस्लिम आबादी वाली सीटों में एक पर भी कामयाबी नहीं मिली थीं वहीं इस बार उसे ऐसी 20 सीटों में से 4 पर जीत मिली है। 

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20% से ज्यादा सिख आबादी वाली सीटें : 20 फीसदी से ज्यादा सिख वोटरों वाली कुल 15 सीटें हैं। सबसे ज्यादा 13 सीट पंजाब में हैं। यहां भाजपा और उसकी सहयोगी अकाली दल ने 7 सीटें जीती हैं। 60% सीटों (सिख  बहुल) पर जीत का मार्जिन पिछले चुनाव के मुकाबले बढ़ा है। सिख वोटरों की बात करें तो सर्वाधिक फायदा कांग्रेस को हुआ है। तीन राज्यों में सिख आबादी वाली 15 सीटें हैं। पंजाब की 13 सीटों में से कांग्रेस को 8 सीटें मिली हैं। जबकि भाजपा यहां 4 सीटें जीतने में सफल हुई है। दोनों की ही सीटें बढ़ी हैं। वहीं आम आदमी पार्टी तीन सीटों के नुकसान के साथ एक सीट पर सिमट गई है।

20% से ज्यादा ईसाई आबादी वाली सीटें : देश में 19 सीट ऐसी हैं जहां ईसाई आबादी 20% से ज्यादा हैं। झारखंड की एक सीट को छोड़कर सभी सीटें पूर्वोत्तर और दक्षिणी राज्यों में हैं। 85% से ज्यादा ईसाई आबादी वाली दोनों सीटों।

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आरक्षित सीटों पर भी मोदी का जलवा
पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार भाजपा ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन किया है। इस बार एससी उम्मीदवारों के लिए 84 सीटें आरक्षित थीं। इनमें से 40 सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों ने बढ़त बनाई। एसटी के उम्मीदवार भी पार्टी के लिए सही साबित हुए। 37 एसटी सीटों में से 31 सीटों पर भाजपा ने बढ़त बनाई। एसटी के उम्मीदवारों ने कर्नाटक के रायचूर और पश्चिम बंगाल के झाड़ग्राम जैसी नई सीटों पर जीत हासिल की। साथ ही छत्तीसगढ़ की सरगुला और रायगढ़ जैसी सीटों पर कब्जा किया। एससी और एसटी की कुल 131 सीटें रिजर्व हैं। इनमें से एससी की 84 और एसटी की 47 सीटें हैं। इससे पहले 2014 में भाजपा ने कुल 67 सीटें जीती थीं। इनमें से 40 एससी की और 27 एसटी की थीं। 1991 के बाद यह पहली बार था, जब किसी अकेली पार्टी ने रिजर्व सीटों पर इतनी बड़ी संख्या में जीत हासिल की थी। इस बार 2014 के मुकाबले भाजपा ने 9 सीटें ज्यादा हासिल की हैं।

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सबसे ज्यादा ओबीसी आबादी वाले 6 राज्य

  • तमिलनाडु में सर्वाधिक सीटें डीएमके को मिली हैं। यहां उसने 23 सीटें जीती हैं। वहीं एआईएडीएमके को मात्र दो सीटें मिली हैं।  
  • सर्वाधिक ओबीसी आबादी वाले केरल में कांग्रेस को सात सीटों का फायदा हुआ है। 2014 में उसे आठ सीटें मिली थीं।  
  • बिहार में भाजपा की सहयोगी पार्टी जदयू को 16 सीटें मिली हैं। खास बात यह है कि वो केवल 17 सीटाें पर ही लड़ी थी।
  • बिहार के जमुई सीट से लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने आरएलएस के भूदेव चौधरी को 4 लाख से ज्यादा वोटों से हराया। उन्हें इस बार पिछले चुनाव से करीब डेढ़ लाख वोट ज्यादा मिले हैं।
  • इस बार झारखंड की दुमका सीट से भाजपा के सुनील सोरेन जीते हैं। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबु सोरेन को 47,590 वोटों से हराया। 

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