पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने इंडियन एक्सप्रेस में छपे अपने आलेख – ‘I Need To Speak Now’ यानि ‘अब मुझे बोलना पड़ेगा’ में वित्तमंत्री अरुण जेटली को निशाने पर लिया। उन्होंने आरोप लगाया है कि वर्तमान वित्तमंत्री ने भारतीय अर्थव्यवस्था का कबाड़ा कर दिया है। दरअसल उनकी यह टिप्पणी अरुण जेटली पर कम बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ज्यादा मानी जा रही, लेकिन ऐसा क्या हुआ है कि यशवंत सिन्हा पीएम मोदी से नाराज हैं! दरअसल यशवंत सिन्हा ही नहीं भाजपा और एनडीए के कई नेता हैं जो प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करते रहे हैं। आइए हम देखते हैं कि ये कौन नेता हैं और क्या कारण है इनके विरोध का-
यशवंत सिन्हा
आठ-नौ जून 2013 को भाजपा की कार्यकारिणी की बैठक गोवा में हुई थी, लेकिन इस कार्यकारिणी में यशवंत सिन्हा शामिल नहीं हुए थे। यशवंत सिन्हा ने बयान दिया था कि उन्हें ‘नमो-निया’ नहीं हुआ है। उस दिन के बाद कई ऐसे मौके आए जब उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर लिया है, लेकिन क्यों? जानकारों के अनुसार यशवंत सिन्हा नाराज इसलिए हैं कि हाल में पुनर्गठित आर्थिक सलाहकार परिषद में भी उन्हें किसी तरह की कोई भूमिका नहीं मिली है। दरअसल मोदी विरोध की उनकी नीति के कारण यशवंत सिन्हा कहीं न कहीं पार्टी में बिल्कुल अलग-थलग पड़ चुके हैं। एक कारण यह भी है कि पार्टी ने न उन्हें चुनावों में टिकट दिया न ही बाद में हुए झारखंड विधानसभा चुनावों में उनका नाम मुख्यमंत्री के तौर पर कहीं आया तो उसकी खटास उनके भीतर कहीं न कहीं है।
अरुण शौरी
मई 2015 में शौरी ‘हेडलाइंस टुडे’ से एक इंटरव्यू में कहा कि देश के आर्थिक हालात को संभालने में ‘मोदीनॉमिक्स’ फेल होती दिखाई दे रही है। उन्होंने अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों पर प्रधानमंत्री द्वारा आंखें मूंद लेने का आरोप भी लगाया। जाहिर तौर पर पीएम मोदी के सत्ता संभाले एक साल ही हुए थे और अरुण शौरी का यूं नाराजगी व्यक्त करना कई लोगों को अचंभे में डाल गया, लेकिन मोदी मंत्रिपरिषद में मंत्री या प्रमुख पद न दिए जाने के चलते उनकी नाराजगी जाहिर हो गई। वाजपेयी सरकार में पार्टी के कद्दावर नेताओं में गिने जाने वाले शौरी मोदी सरकार में फिलहाल हाशिए पर हैं क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रचनात्मक लोगों को पसंद करते हैं और कर्म करने वालों को प्रधानता देते हैं।
शत्रुघ्न सिन्हा
जून 2013 को भाजपा की कार्यकारिणी की बैठक जो गोवा में हुई थी उसमें शत्रुघ्न सिन्हा शामिल नहीं हुए थे। दरअसल इसी बैठक में नरेंद्र मोदी को भाजपा के प्रचार की कमान सौंपी जानी थी। जाहिर है बिहारी बाबू की मोदी विरोध की मंशा उस वक्त ही साफ हो गई थी। इसके बाद जनवरी 2016 में बीजेपी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा की आत्मकथा ‘एनीथिंग बट खामोश’ आई। इसमें उन्होंने अपरोक्ष रूप से प्रधानमंत्री मोदी को कठघरे में खड़ा किया, लेकिन क्यों? दरअसल वाजपेयी सरकार में जहाजरानी मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री का पदभार संभाल चुके बिहारी बाबू को मोदी सरकार में भी मंत्री बनने की उम्मीद थी, लेकिन वाजपेयी सरकार में उनके प्रदर्शन को देखते हुए पीएम मोदी ने अपने मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं किया। जाहिर है शत्रुघ्न सिन्हा स्वयं को पार्टी का बड़ा सिपाही बताते रहे हैं और खुद को कद्दावर भी कहते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा परफॉर्मर को पसंद करते हैं, ऐसे में वाजपेयी सरकार के दौरान शत्रुघ्न सिन्हा का प्रदर्शन उनके आड़े आया।
उद्धव ठाकरे
तुम्हीं से मोहब्बत, तुम्हीं से लड़ाई… अरे मार डाला दुहाई-दुहाई… पीएम मोदी को लेकर उद्धव ठाकरे की पीड़ा को काफी हद तक इन पंक्तियों से समझा जा सकता है। दरअसल उद्धव ठाकरे अक्सर शिवसेना के मुखपत्र सामना के जरिये पीएम नरेंद्र मोदी को निशाने पर रखते हैं, लेकिन क्यों ? दरअसल उद्धव ठाकरे पीएम मोदी से तब से नाराज हैं जब महाराष्ट्र में बीजेपी ने शिवसेना से अलग होकर चुनावी लड़ाई जीती और सरकार बनाई। पीएम मोदी की अगुवाई में मिली इस जीत को उद्धव अब तक नहीं पचा पाए हैं। इतना ही नहीं सुरेश प्रभु को बीजेपी में शामिल करना और मंत्रिपरिषद में उद्धव के मनोनुकूल मंत्रालय नहीं दिया जाना भी बड़ा कारण है, लेकिन उद्धव के साथ मजबूरी है कि मोदी का विरोध कर राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की कोशिश करते रहना और सत्ता का स्वाद भी चखते रहना।
राज ठाकरे
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नव निर्माण सेना की क्या गत हुई है ये सभी जानते हैं। स्थानीय निकाय चुनावों में भी लगातार एमएनएस की हार और भाजपा की जीत से राज ठाकरे भड़के हुए हैं। दरअसल महाराष्ट्र को अपनी राजनीति का जागीर समझने वाले राज और उद्धव दोनों को अहसास है कि मोदी विरोध की राह चलकर प्रदेश में उनकी राजनीति नहीं चलने वाली है, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि अपना और अपनी पार्टी का अस्तित्व बचाए रखने के लिए उन्हें कुछ एक्सट्रा करना पड़ेगा। इसलिए मोदी विरोध की राजनीति करना इन दोनों ही ठाकरे भाईयों की मजबूरी बन गई है। दरअसल जिस तेजी से प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता में वृद्धि हुई है उसी तरह इन दोनों ठाकरे बंधुओं का राजनीतिक रसूख महाराष्ट्र में घटता गया है। ऐसे में मोदी विरोध इनकी राजनीतिक मजबूरी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं।
वरुण गांधी
वरुण गांधी यदा-कदा पार्टी लाइन से अलग हटकर अपनी बात कहने को मशहूर हैं। सुल्तानपुर क्षेत्र में पीएम मोदी का पोस्टर नहीं लगाना। रोहिंग्या और अन्य सामाजिक मुद्दों पर पार्टी लाइन से हटकर उद्गार व्यक्त करना… ये सब वह करते रहते हैं, लेकिन क्या वे पीएम मोदी का विरोध करते हैं? खुलकर तो नहीं लेकिन एक हद तक कहा जा सकता है कि वे मोदी विरोधी लाइन में हैं… लेकिन क्यों? एक समय उनका यूपी के सीएम के तौर पर नाम उछलना और योगी आदित्य नाथ सीएम बनाया जाना पूरी कहानी कहती है। दरअसल पीएम मोदी परिवारवाद और वंशवादी राजनीति के विरोधी हैं। इसलिए उनका पत्ता सीएम पद के लिए कट गया। इतना ही नहीं एक ही परिवार के दो लोग केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं करने की नीति के तहत वरुण गांधी को केंद्र की सत्ता में भी भागीदारी नहीं मिली। ऐसे में वरुण गांधी की नाराजगी लाजिमी है…
गोविंदाचार्य
जुलाई 2013 में जब गुजरात के तत्कालीन सीएम को भाजपा के चुनाव प्रचार की कमान मिलने वाली थी तो उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी को 2002 में हुए गुजरात दंगों की जिम्मेदारी से इसलिए बरी नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह बाद में चुनाव जीत गए। कभी पीएम मोदी के ‘गुरु’ कहे जाते थे फिर मोदी विरोध का क्या कारण हो सकता है? करीब 17 साल पहले बीजेपी छोड़ चुके गोविंदाचार्य राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन नाम का संगठन चलाते हैं। गोविंदाचार्य को भाजपा से तब अपने रास्ते अलग करने पड़े थे जब उन्होने देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को मुखौटा कहा था। इसके बाद नितिन गडकरी ने भाजपा के सभी महत्वपूर्ण पदों की बागडोर युवा नेतृत्व के हाथों में सौंप दी थी, जिससे गोविंदाचार्य नाराज हो गए थे। एक साथ सत्ता और संगठन से बेदखल होने से आहत गोविंदाचार्य को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अब तक कोई लाभ का पद नहीं दिया है। जाहिर है गोविंदाचार्य की नाराजगी का कारण यही है।