Home विशेष रामनाथ कोविंद का राष्ट्रपति बनना सभी संकल्पित कार्यकर्ताओं के लिए बड़ा संदेश

रामनाथ कोविंद का राष्ट्रपति बनना सभी संकल्पित कार्यकर्ताओं के लिए बड़ा संदेश

कर्म के प्रति समर्पण से ही देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचे रामनाथ कोविंद

SHARE

शालीन और सौम्य व्यक्तित्व के स्वामी रामनाथ कोविंद चार दशक से भी ज्यादा वक्त से राजनीति और सेवा कार्यों में लगातार सक्रिय हैं। कर्मठ, कर्मनिष्ठ, कर्तव्य परायण, कृत संकल्पित कोविंद व्यवहार कुशल भी हैं। लोगों से गर्मजोशी से मिलना, किसी भी व्यक्ति, कार्यकर्ता की मदद को खड़े रहना उनके ओजस्वी व्यक्तित्व की विशेषता है।

रामनाथ कोविंद की कानपुर के परौंख गांव से रायसीना तक का सफर एक समर्पित कार्यकर्ता के सर्वोच्च शिखर तक की ऐसी कहानी है जो हम सभी के लिए प्रेरणादायक है। कोविंद का बचपन गरीबी में गुजरा। पर इन सभी मुसीबतों को भेदते हुए कोविंद आज उस मुकाम पर खड़े हैं, जहां उनकी कलम से भारत की तकदीर लिखी जाएगी।

RSS-BJP के पहले राष्ट्रपति
रामनाथ कोविंद 25 जुलाई को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। ये पहली बार है जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक रहे कोई व्यक्ति देश के राष्ट्रपति होंगे। इसके साथ ही वे भारतीय जनता पार्टी के भी पहले कार्यकर्ता होंगे जो देश के सर्वोच्च पद को सुशोभित करेंगे।

रामनाथ कोविंद के संदेश
चुनाव जीतने के बाद रामनाथ कोविंद ने कहा, ”मुझे ये जिम्मेदारी दिया जाना देश के ऐसे हर व्यक्ति के लिए संदेश है जो ईमानदारी और प्रमाणिकता के साथ अपना काम करता है। इस पद पर चुना जाना ना ही मेरा लक्ष्य था और ना ही मैंने सोचा था। लेकिन अपने समाज और देश के लिए अथक सेवा भाव मुझे यहां तक ले आया है, यही सेवा भाव का ही नतीजा है।”

वकालत से रायसीना तक
साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले कोविंद ने एक समाज सेवी, एक वकील और एक राज्यसभा सांसद के तौर पर काम किया। कानपुर देहात की डेरापुर तहसील के गांव परौंख में जन्मे रामनाथ कोविंद ने सुप्रीम कोर्ट में वकालत से करियर की शुरुआत की थी। वर्ष 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद वह तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के निजी सचिव बने थे, इसके बाद भाजपा नेतृत्व के संपर्क में आए।

समर्पित कार्यकर्ता का सफर
वर्ष 1994 से 2006 के बीच दो बार राज्यसभा सदस्य रह चुके रामनाथ कोविंद भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रमुख भी रहे हैं। वे 1977 में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के विशेष कार्यकारी अधिकारी रहे चुके हैं। दो बार भाजपा अनुसूचित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व राष्ट्रीय प्रवक्ता, उत्तर प्रदेश के महामंत्री रह चुके हैं। वे बिहार के राज्यपाल पद की गरिमा भी बढ़ा चुके हैं।

IAS न बन पाने का मलाल नहीं
कोविंद ने दिल्ली में रहकर IAS की परीक्षा तीसरे प्रयास में पास की। लेकिन मुख्य सेवा के बजाय एलायड सेवा में चयन होने पर नौकरी ठुकरा दी। जून 1975 में आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार बनने पर वे वित्त मंत्री मोरारजी देसाई के निजी सचिव रहे थे। जनता पार्टी की सरकार में सुप्रीम कोर्ट के जूनियर काउंसलर के पद पर भी कार्य किया।

जीतते चले गए कोविंद…
अपनी राह में आए तमाम अवरोधों से पार पाते हुए कोविंद ने सबसे पहले गरीबी को पछाड़ते हुए वकालत की शिक्षा पूरी की। नामी वकील बने तो भी वे नेकदिल और दरियाल बने रहे। आज भी जायदाद के नाम पर रामनाथ कोविंद के नाम कुछ भी नहीं। एक घर था वो भी उन्होंने गांव वालों को दान दे दी है।

life struggle of ramnath kovind

संघर्ष में बीता बचपन
गरीबी की वजह से बचपन में रामनाथ कोविंद 6 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे और फिर पैदल ही 6 किलोमीटर वापस घर लौटते थे। घास-फूस की झोपड़ी में उनका पूरा परिवार रहता था। जब कोविंद की उम्र 5-6 वर्ष की थी तो उनके घर में आग लग गई थी जिसमें उनकी मां की मौत हो गई थी। मां का साया छिनने के बाद उनके पिता ने ही उनका लालन-पालन किया।

Image result for ramnath kovind childhood

याद आती है गरीबी
राष्ट्रपति चुनाव जीतने वाले कोविंद को आज भी बारिश के दिनों की अपनी फूस की टपकती छप्पर याद आती है… और अपने परिजनों के साथ मिट्टी की दीवारों से चिपककर बारिश के खत्म होने का इंतजार करना वे अब भी नहीं भूले हैं।

सेवा ही धर्म है की नीति
वे हरिद्वार में गंगा के तट पर स्थित कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए समर्पित संस्था दिव्य प्रेम सेवा मिशन के आजीवन संरक्षक हैं। परिवार में पत्नी, एक पुत्र और एक पुत्री है। गांव में अभी भी दो कमरे का घर है जिसका इस्तेमाल सार्वजनिक काम के लिए होता है। झींझक में रहने वाले रामनाथ कोविंद के बड़े भाई प्यारेलाल और मोहनलाल की कपड़े की दुकान है।

Leave a Reply