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मृणाल पांडे की कलंकित पत्रकारिता

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मृणाल पांडे, किसी जमाने में एक जानी-मानी पत्रकार थीं। लेकिन आज नकारात्मक पत्रकारिता की जीती-जागती मिसाल बन चुकी हैं। ऐसा कहने के लिए इसलिए विवश होना पड़ रहा है क्योंकि जिस प्रकार उन्होंने आलोचना की जगह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एजेंडा चलाना शुरू कर दिया है, वह न सिर्फ दुर्भाग्यजनक है, बल्कि पत्रकारिता को शर्मसार करने वाला भी है।

आइये कुछ उदाहरणों के जरिये हम इस बात को आपके सामने रखते हैं।

कलंकित पत्रकारिता – 1
17 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन के अवसर पर मृणाल पांडे ने Tweet के जरिये अमर्यादित टिप्पणी की और जब इसका सोशल मीडिया पर भारी विरोध हुआ, तब भी उन्होंने प्रधानमंत्री के सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए माफी मांगने से इंकार कर दिया। मृणाल पांडे ने ऐसा किस पत्रकारिता धर्म के लिए किया, यह तो समझ से बाहर है लेकिन उनका एजेंडा तो साफ समझ में आता है।कलंकित पत्रकारिता – 2

14 दिसंबर को प्रशांत भूषण के एक Tweet को Retweet करके मृणाल पांडे ने भाषा की मर्यादा को भी भुला दिया। इशारों ही इशारों में प्रधानमंत्री के लिए असभ्य भाषा का इस्तेमाल किया। प्रशांत भूषण ने Tweet करते हुए लिखा था कि There is a new breed of journalist here who are crass, rabble rousing rude, arrogant. They are similar to BJP spokesperson like Patra & GVLN Rao. Most of Them are aligned to power & are today functioning as spokesman of BJP. इसी Tweet को Retweet करते हुए मृणाल पांडे ने लिखा – यथा राजा तथा प्रजा। 

कलंकित पत्रकारिता – 3
1 जनवरी को मृणाल पांडे ने जो Tweet किया उससे स्पष्ट हो जाता है कि आजकल इनका पत्रकारिता से दूर दूर तक कोई नाता नहीं रह गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति के उस Tweet पर, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान को आतंकवादी गतिविधियों के लिए सबक सिखाने की बात कही थी, उस पर भाजपा की प्रतिक्रिया आई कि यह प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति का परिणाम है कि पाकिस्तान को अमेरिका से इतना सख्त संदेश मिला है। भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी को क्या श्रेय दे दिया कि मृणाल पांडे ने अपनी पत्रकारिता को तिलाजंलि देते हुए Twitter पर लिखा- कबके जोगी कबकी जटा?
कलंकित पत्रकारिता – 4
 31 दिसंबर  को मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने मुस्लिम महिलाओं को अकेले हज पर जाने के अधिकार की घोषणा की, लेकिन एजेंडा पत्रकार मृणाल पांडे को यह नागवार गुजरा। एक महिला पत्रकार होने के नाते प्रधानमंत्री मोदी की इस घोषणा का उन्हें समर्थन करना चाहिए था, लेकिन वह Twitter पर विरोध में उतर आईं। ऐसा लगा कि उनकी एजेंडा पत्रकारिता का एक ही मकसद रह गया है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध।
कलंकित पत्रकारिता – 5
गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान  मृणाल पांडे ने अपने पत्रकारिता धर्म को छोड़ते हुए प्रधानमंत्री मोदी पर 10 दिसंबर को Twitter पर व्यक्तिगत टिप्पणी की। समझ में यह नहीं आता की एजेंडा पत्रकार मृणाल पांडे की यह कैसी पत्रकारिता है, जो वह प्रधानमंत्री पर अभद्र टिप्पणी करने में अपनी शान समझती हैं।
कलंकित पत्रकारिता – 6
मृणाल पांडे ने 12 दिसंबर के Tweet  में प्रधानमंत्री मोदी के प्रति सारी सभ्यता और मर्यादाओं की सीमा तोड़ दी। इस Tweet के जरिए उन्होंने प्रधानमंत्री पद के सम्मान को जबरदस्त ठेस पहुंचाई। मृणाल पांडे के Tweets बताते हैं कि वे प्रधानमंत्री मोदी के प्रति पूर्वोग्रहों से ग्रसित होकर कमेंटस करती हैं, जो पत्रकारिता को कलंकित करता है।
कलंकित पत्रकारिता – 7
देश में बुलेट ट्रेन की परियोजना पर हो रही बहस में मृणाल पांडे ने  17 सितंबर को Tweet करके एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी पर व्यंग करते हुए व्यक्तिगत टिप्पणी की।इस Tweet से एजेंडा पत्रकार मृणाल पाण्डेय की समझ पर तरस आता है। यह समझ से परे है कि मृणाल पांडे जैसी वरिष्ठ पत्रकार कैसे बुलेट ट्रेन परियोजना को चुनावों से सीधे जोड़ने का कुतर्क कर सकती हैं, और देश की 125 करोड़ जनता के विवेक पर प्रश्नचिह्न लगा सकती हैं। क्या देश में ऐसे कंलकित पत्रकार से प्रजातंत्र मजबूत होगा?

मृणाल पांडे ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ न केवल सभ्यता औऱ मर्यादाओं की सीमा को पार किया बल्कि विभिन्न समाचार पत्रों और बेबसाइटों पर भी मोदी सरकार की नीतियों को लेकर विरोध करने के एजेंडे के तहत लेख लिखे, ताकि सरकार के विरोध को देश में हवा दी जा सके। मृणाल पांडे की कलंकित पत्रकारिता के इन उदाहरणों को भी देखिए-

कलंकित पत्रकारिता – 8
21 सितंबर 2017 को हिन्दुस्तान टाइम्स में- Why India should stop building mega dams – पर एक लेख लिखा। इस लेख में बड़े बांधों के निर्माण को लेकर  मोदी सरकार की नीतियों का विरोध किया। इसमें सरदार सरोवर बांध के जरिए प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा। यहां यह समझने की बात है कि यदि इस देश में बड़े बांधों से कोई फायदा नहीं हो रहा होता तो, आजादी के बाद से ही ऐसे बांधों का निर्माण नहीं होता और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने इन्हें आधुनिक भारत के मंदिरों की संज्ञा न दी होती।कलंकित पत्रकारिता – 9
19 मई 2017 को नई दुनिया के एक लेख- यही है सरकारी तंत्र का सच– में एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी के काम करने के तौर तरीकों पर अपने कुतर्कों को अपनी लेखनी से उतार डाला। एजेंडा पत्रकार मृणाल पांडे ने लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी की घोषणाओं के बारे में सरकारी तंत्र को कोई जानकारी नहीं होती है। उनका यह निष्कर्ष मात्र उस एक आरटीआई के जवाब पर आधारित था, जिसमें नीति आयोग से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 18 अगस्त 2015 को की गई बिहार पैकेज की घोषणा के बारे में पूछा गया था। उस आरटीआई के जवाब में नीति आयोग ने प्रधानमंत्री मोदी की इस घोषणा के बारे में अपनी अनभिज्ञता जाहिर कर दी थी। नीति आयोग के इसी एक जवाब को आधार बनाकर मृणाल पाण्डेय ने प्रधानमंत्री मोदी के कामकाज के तरीके पर प्रश्नचिह्न लगाने वाला कुतर्क रच डाला।कलंकित पत्रकारिता –10
13 अप्रैल 2017 को नई दुनिया में मृणाल पांडे – खानपान थोपने की बेजा कोशिशें– लेख लिखा। इसमें गौरक्षा के नाम पर मांसाहार पर पाबंदी लगाये जाने के आधे अधूरे सच का सहारा लेकर मोदी सरकार की नीति का जमकर विरोध किया। सरकारी निर्देशों को अपने एजेंडें के माफिक समझने का मृणाल पांडे का यह कुतर्क अपने आप में एक मिसाल है। सच्चाई यह थी कि केन्द्र सरकार के निर्देशों में किसी भी प्रकार के खाने पर पाबंदी की घोषणा नहीं की गई थी, केवल गायों के अवैध व्यापार को रोकने के लिए  राज्य सरकारों को दिशा निर्देश जारी किये गये थे और यह राज्य सरकारों का मामला था न कि केन्द्र सरकार का। 

पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर पत्रकारिता की सभी मर्यादाओं को लांघ जाना मृणाल पांडे का व्यवहार बन गया है। ऐसी पत्रकारिता, भारत के प्रजातंत्र के लिए न केवल खतरनाक है बल्कि उसे कंलकित भी करती है।

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