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‘भगोड़े’ नेतृत्व के भरोसे कांग्रेस के आ गए ‘बुरे दिन’, तीन राज्यों में सिमट गई पार्टी

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पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने दो राज्यों में धमाकेदार जीत दर्ज की, वहीं कांग्रेस पार्टी की करारी हार हुई। कांग्रेस के लिए हालात इतने बुरे हो गए कि त्रिपुरा और नागालैंड में उसे एक सीट पर भी जीत नहीं मिली, जबकि मेघालय में भी वह 21 सीटों पर सिमट गई। दरअसल दिसंबर, 2017 में गुजरात और हिमाचल चुनाव परिणाम के बाद ये माना जा रहा था कि कांग्रेस पार्टी आत्मचिंतन करेगी और अपनी कमियों को दूर कर वापसी करेगी। परन्तु चुनाव नतीजों से पहले राहुल गांधी का विदेश चला जाना कांग्रेस पार्टी और उसके नेतृत्व की मानसिकता को दर्शाता है।

भाजपा के नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने उन्हें परिस्थितिजन्य नेता बताया तो कोई अतिश्योक्ति नहीं कही जाएगी। उन्होंने कहा, ”वो एक नॉन सीरियस कांग्रेस अध्यक्ष हैं..उन्हें पता है कि इटली कब जाना है। राहुल गांधी तो परिस्थितियों से नेता बन गए हैं। उन्होंने रानी के कोख से जन्म लिया है। उन्हें अपनी हार का पता था इसिलिए वो देश छोड़ इटली गए हैं। नहीं तो ऐसे वक्त में कोई भी नेता अपने कार्यकर्ताओं को अकेला नहीं छोड़ता है।”

दरअसल संकट के दौर से गुजर रही कांग्रेस की विश्वसनीयता को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। जिस राहुल गांधी के भरोसे कांग्रेस पार्टी देश की सत्ता में फिर से वापसी की उम्मीद कर रही है वह बेहद कमजोर है। राहुल गांधी का रिकॉर्ड तो ये है कि अब तक उनके नेतृत्व में जितने भी चुनाव लड़े गए उसमें कांग्रेस हारती ही चली आ रही है। पूर्वोत्तर के साथ गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में हार के बाद अब सिर्फ तीन राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बची है।

सिर्फ तीन राज्यों में कांग्रेस सरकार
पिछले पांच वर्षों में कई राज्यों में कांग्रेस से सत्ता छिन चुकी है। लगातार खिसकती जा रही सत्ता से अब कांग्रेस के पास सिर्फ तीन राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश बचे हैं। अब सिर्फ पंजाब, कर्नाटक, मिजोरम और पुडुचेरी में कांग्रेस की सरकार बची है। इसमें से कर्नाटक और मिजोरम में इस साल चुनाव होने हैं, जहां कांग्रेस की स्थिति ठीक नहीं है। 

21 राज्यों में बीजेपी- एनडीए की सरकार
त्रिपुरा और नागालैंड में विधानसभा चुनाव जीतने के साथ ही अब 21 राज्यों में बीजेपी की सरकार हो गई है। अब त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, मणिपुर, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार है, जबकि पांच राज्यों- बिहार, आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम और नागालैंड में गठबंधन की सरकार है।

आइए राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को लगातार मिली हार की पड़ताल करते हैं।

2018 में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में करारी हार
त्रिपुरा में शून्य से शीर्ष तक का सफर तय करते हुए जहां बीजेपी एक बड़ी ताकत बनकर उभरी और दो तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में आ गई, वहीं कांग्रेस पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। नागालैंड में भी बीजेपी ने एनडीपीपी ने मिलकर बहुमत हासिल कर लिया, लेकिन कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। मेघालय में भी कांग्रेस की बुरी स्थिति रही और 21 सीटों पर सिमट गई। साल 2018 की शुरुआत में कांग्रेस पार्टी के लिए ये नतीजे राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल जरूर खड़े करते हैं, क्योंकि अब पार्टी की पूरी कमान उन्हीं के हाथ में है।  

2017 में सात में से छह राज्यों में मिली शिकस्त
सात राज्यों में हुए चुनाव के नतीजों ने राहुल गांधी के नेतृत्व क्षमता में कमजोरी की पोल खोल दी। गुजरात, हिमाचल प्रदेश के साथ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांग्रेस को भारी हार मिली। पंजाब में जीत कैप्टन अमरिंदर सिंह की विश्वसनीयता और मेहनत की हुई। गोवा और मणिपुर में कांग्रेस सरकार बनाने में नाकाम रही। उत्तर प्रदेश में बीजेपी की चमत्कारिक जीत और कांग्रेस की अब तक की सबसे करारी हार के रूप में हमारे सामने है। सवा सौ साल से भी किसी पुरानी पार्टी के लिए इससे बड़े शर्म की बात और क्या हो सकती है कि देश के उस प्रदेश में जहां कभी उसका सबसे बड़ा जनाधार रहा हो, वहीं पर, उसे 403 में से सिर्फ 7 सीटें मिलती हों।

2015-16 में मिली जबरदस्त हार
2015 में महागठबंधन के चलते बिहार में किसी तरह जीत मिली, लेकिन दिल्ली में तो सूपड़ा साफ हो गया। यहां पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। 2016 में असम के साथ केरल और पश्चिम बंगाल में हार का मुंह देखना पड़ा। पुडुचेरी में सरकार जरूर बनी। इस स्थिति में अब साफ तौर पर देखने को मिल रहा है कि कांग्रेस पार्टी कोमा में चली गई है। दरअसल कांग्रेस ने सिर्फ बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के विरोध को ही सबसे बड़ा काम मान लिया है। इस कारण देश की जनता के मन में कांग्रेस के प्रति नकारात्मक भाव पैदा हो गया है। भ्रष्टाचार और घोटालों के दाग लिए कांग्रेस आखिर स्वयं को पाक-साफ बताने की कोशिश क्यों करती है? 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी कांग्रेस ने कोई खास सबक नहीं सीखा। उल्टे राहुल गांधी अपने फटे कुर्ते के प्रदर्शन की बचकानी हरकतें करते रहें, लेकिन उन्हें कोई रोकने तो दूर, टोकनेवाला भी नहीं मिला।

2014 में 44 सीटों पर सिमट गई
दरअसल कांग्रेस के लिए यह विश्लेषण का दौर है, लेकिन वह वंशवाद और परिवारवाद के चक्कर में इस विश्लेषण की ओर जाना ही नहीं चाहती है। 2014 लोकसभा चुनाव में सिर्फ 44 सीटों पर जीत मिलने के साथ ही पार्टी प्रमुख विपक्षी दल तक नहीं बन पाई। इसी तरह महाराष्ट्र व हरियाणा से सत्ता गंवा दी। यही स्थिति झारखंड और जम्मू-कश्मीर में रही जहां करारी हार मिलने से पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। पिछले पंद्रह सालों से लगातार कोशिशें करने के बावजूद राहुल गांधी देश के राजनैतिक परिदृश्य में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने और जगह बना पाने में असफल रहे हैं। लगातार मिल रही हार राहुल गांधी के पार्टी की कमान पूरी तरह से संभालने में लगातार देरी भी उनकी काबिलियत पर सवाल खड़े कर रही है।

2012 में कांग्रेस की जबरदस्त हार
लगातार होती हार पर हार राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक समझ पर सवालिया निशान खड़े कर रही हैं। दरअसल वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस मजबूत बनकर उभरी तो यूपी से 21 सांसदों के जीतने का श्रेय राहुल गांधी को दिया गया। 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी खुले शब्दों में कहा कि वे राहुल गांधी के नेतृत्व में काम करने को तैयार हैं, लेकिन राहुल को नेतृत्व दिये जाने की बात ही चली कि पार्टी के बुरे दिन शुरू हो गए। 2012 में यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी के खाते में महज 28 सीटें आई। वहीं पंजाब में अकाली-भाजपा का गठबंधन होने से वहां दोबारा सरकार बन गई। ठीकरा कैप्टन अमरिंदर सिंह पर फोड़ा गया। दूसरी ओर गोवा भी हाथ से निकल गया। हालांकि हिमाचल और उत्तराखंड में जैसे-तैसे कांग्रेस की सरकार बन तो गई, लेकिन वह भी हिचकोले खाती रही। इसी साल गुजरात में भी हार मिली और त्रिपुरा, नगालैंड, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की करारी हार हुई।

राहुल के कारण हार के लिए चित्र परिणाम

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