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कोर्ट की बात ना मानने वाले अदालती फैसले पर दे रहे हैं जोर!

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अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्ष अगर बातचीत से इस मामले का हल निकाल सकते हैं तो उन्हें खुशी होगी। 21 मार्च को चीफ जस्टिस ने कहा कि जरूरी हो तो वो मध्यस्थता करने के लिए भी तैयार हैं लेकिन मुस्लिम पक्ष का कहना है बातचीत से इसका हल नहीं निकल सकता है लिहाजा कोर्ट फैसला करे।

बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से असहमति जताई है। कमिटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने साफ कहा है कि बातचीत का रास्ता पहले भी फेल हो चुका है, अदालती दखल के बिना इसका फैसला मुमकिन नहीं है। जिलानी ने कहा कि मसले का शांतिपूर्ण समाधान नहीं हो सकता। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी कोर्ट की सलाह को एक तरह से खारिज करते हुए कहा कि यह मालिकाना हक का मामला है। उन्होंने कहा कि अगर इस मामले की रोज सुनवाई हो तो फैसला हो सकता है। बाबरी मस्जिद कमेटी के डॉ एसक्यूआर इलयास ने कहा कि हम लोगों को सीजीआई की बात मंजूर नहीं है। इलाहबाद हाई कोर्ट पहले ही अपना निर्णय दे चुका है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को लगता है कि बातचीत का वक्त अब खत्म हो चुका है।

शाहबानो केस, यूनिफॉर्म सिविल कोड और ट्रिपल तलाक मामले में अदालती आदेश के खिलाफ सड़कों पर उतर आने वाले मुस्लिम अब राम मंदिर मामले पर कोर्ट के फैसले की बात कर रहे हैं। मुस्लिम धर्मगुरु चित भी मेरी, पट भी मेरी चाहते हैं। मुस्लिम धर्मगुरु सुविधा का राजनीति करने में लग गए हैं। इसमें उन्हें देश के तथाकथित सेकुलर लोगों को भी साथ मिल रहा है। अगर तलाक शरियत का मामला है तो राम मंदिर भी सौ करोड़ से ज्यादा हिंदुओं के लिए आस्था का मामला है। आइए पड़ताल करते है कि किस तरह से मुस्लिम धर्मगुरुओं ने इसके पहले कोर्ट का आदेश मामने से इनकार कर दिया था।

शाहबानो केस
मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली पांच बच्चों की मां शाहबानो को उसका पति सिर्फ तीन शब्द बोलकर तलाक दे देता है। 62 साल की बेसहारा महिला अपनी और अपने बच्चों की जीविका का कोई साधन न होने के कारण पति से गुजारा लेने के लिए मुस्लिम धर्मगुरुओं के दरवाजों पर जाकर गिड़गिड़ाती है। जहां से उसे टरका दिया जाता है। थक-हारकर शाहबानो अदालत पहुंचती है। सुप्रीम कोर्ट से उसे गुजारा भत्ता दिए जाने का निर्देश मिलता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिम धर्मगुरु इस्लाम खतरे में है का नारा लगाने लगते हैं।

खुद को सेकुलर बताने वाले तमाम राजनैतिक दल इस मामले में मुस्लिम धर्मगुरुओं का समर्थन करने लगते है। किसी ने यह पूछने की हिम्मत नहीं की कि यह कैसा धर्म है, जो एक बूढ़ी महिला को गुजारा भत्ता देने मात्र से खतरे में पड़ जाता है? सैयद शहाबुद्दीन ने दुसरे मुस्लिम नेताओं के साथ मिलकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बना विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया।

आखिरकार मुस्लिम धर्मगुरुओं के दबाव में आकर राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 पास कर दिया। कांग्रेस सरकार ने ना सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की खुली आलोचना की, बल्कि संसद में अपने बहुमत का दुरुपयोग करते हुए संविधान में ऐसा संशोधन कर दिया, जिससे तलाक के बाद गुजारा भत्ते के मामले कानून की परिधि से बाहर हो गये और केवल मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार तय किये जाने लगे। इस प्रकार उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पूरी तरह बेकार कर दिया। मुस्लिम तुष्टिकरण का यह सबसे बड़ा उदाहरण है।

यूनिफॉर्म सिविल कोड
समान नागरिक संहिता का अर्थ एक ऐसा सेकुलर कानून होता है जो सभी धर्म के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है। इसका मतलब देश के सभी नागरिकों चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या इलाके से हो, एक तरह के कानून लागू होंगे। दुनिया के ज्यादातर सेकुलर देशों में ऐसे कानून लागू हैं।

संविधान के अनुच्छेद-44 में समान नागरिक आचार संहिता की बात है और नीति निर्देशक तत्व में वर्णित है। इसमें नीति-निर्देश दिया गया है कि समान नागरिक कानून लागू करना हमारा लक्ष्य होगा। संविधान कहता है कि सरकार इस बारे में विचार-विमर्श करे और सरकार की तरफ से वही पहल की गई है। देश में तमाम मामलों में यूनिफॉर्म कानून है, लेकिन शादी, तलाक और उत्ताराधिकार जैसे मुद्दों पर अभी पर्सनल लॉ के हिसाब से फैसला होता है।

मुसलमानों का कहना है कि हमारे लिए अलग से कोई भी कानून बनाने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि हमारे लिए कानून पहले से ही बने हुए हैं जिनका नाम है शरीयत। हमारा सिविल कोड वही होगा जिसकी अनुमति हमारा धर्म देता है।

ट्रिपल तलाक
तीन तलाक को लेकर देश भर में जोर-शोर से चर्चा चल रही है। भारत में प्रचलित शरीयत के मुताबिक अगर कोई शौहर अपनी बीवी को एक साथ तीन बार तलाक बोल दे तो उसका तलाक हो जाता है। चाहे गुस्से और नशे में ही क्यों न हो। इसके मुताबिक फोन पर, एसएमएस से, ई-मेल से भी तलाक हो जाता है। ट्रिपल तलाक से मुस्लिम महिलाओं का उत्पीड़न हो रहा है। मुस्लिम समाज के भीतर से भी अब इसके खिलाफ आवाज उठने लगी है। कई महिलाओं ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है। मुस्लिम महिलाओं के कई संगठन इसे खत्म करने के लिए आंदोलन चला रहे हैं। मुस्लिम महिलाएं इसका विरोध कर रही हैं।

सुप्रीम कोर्ट 2007 में तीन तलाक को गैर संविधानिक और कुरान के खिलाफ करार दे चुका है। इलाहबाद हाई कोर्ट ने भी हाल ही में तीन तलाक से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए इसे असंवैधानिक और कुरान के खिलाफ करार दिया। लेकिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसका विरोध कर रहा है। मुस्लिम धर्मगुरुओं का कहना है कि धर्म के मामले में कोर्ट फैसला नहीं दे सकता।

इसी तरह दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर अदालती फैसले पर भी मुस्लिम धर्मगुरु एतराज जताते रहे हैं।

जब तलाक का मामला कोर्ट के बाहर का है तो फिर राम मंदिर भी आस्था का मामला है और बेहतर होगा कि अदालत से बाहर मिल-जुलकर इसका हल निकाल लिया जाए

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