झूठे आरोप लगाना, गलत आंकड़ेबाजी से विरोधियों पर निशाना साधना, हर चीज के लिए दूसरों पर दोष मढ़ना और जब कानूनी दांवपेंच में फंस जाओ तो बेशर्मों की तरह माफी मांग लेना… यही अरविंद केजरीवाल की फितरत है। एक बार फिर उन्होंने अपना असली चरित्र दिखाया है।
इस बार उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चापलूसी करते हुए ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा, “पीएम तो पढ़ा-लिखा ही होना चाहिए। लोग पढ़े-लिखे डॉ.मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्री को मिस कर रहे हैं।”
People missing an educated PM like Dr Manmohan Singh
Its dawning on people now -“PM तो पढ़ा लिखा ही होना चाहिए।” https://t.co/BQTVtMbTO2
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) 31 May 2018
दरअसल ये वही केजरीवाल हैं जिन्होंने वर्ष 2011 से 2013 तक कई बार मनमोहन सिंह को कोसते रहे थे। उन्होंने मनमोहन सिंह को ‘अयोग्य’ पीएम और ‘मौनी बाबा’ तक कहा था।
जाहिर है कि एक बार फिर यह साबित हो गया है कि अरविंद केजरीवाल आदतन झूठे ही नहीं, फरेबी और कायर भी हैं। दरअसल ये भारतीय राजनीति के ‘कलंक’ हैं! आइये हम एक नजर डालते हैं इनकी कुछ ‘कलंक’ कथाओं पर।
‘मफलर मैन’ से ‘माफी मैन’ बन गए केजरीवाल
एक वक्त अरविंद केजरीवाल देश में ईमानदारी के उदाहरण के तौर पर स्थापित हो गए थे। अपनी हर बात में सबूतों का पिटारा साथ रखने का दावा करते थे। इसी क्रम में उन्होंने अपने विरोधी नेताओं पर तरह-तरह के आरोप भी लगाए। हालांकि उनकी कलई तब खुल गई, जब उनपर मानहानि करने वाले सभी नेताओं से उन्होंने एक-एक कर माफी मांगनी शुरू कर दी। सबसे पहले पंजाब के विक्रम सिंह मजीठिया के से माफी मांगी। इसके बाद तो कपिल सिब्बल, नितिन गडकरी और अरविंद केजरीवाल से भी माफी मांग ली। हालांकि यहां भी उन्होंने झूठ का ही सहारा लिया और कहा कि जनता का काम करने के लिए कोर्ट के चक्कर से बचना चाहते हैं। दरअसल जब यह साबित हो गया कि उनके पास किसी के विरुद्ध सबूत नहीं है, और उन्हें झूठे आरोप लगाने के चक्कर में जेल भी हो सकती है, तो उन्होंने यू टर्न ले लिया।
‘क्रांतिकारी केजरीवाल’ बन गए यू-टर्न के उस्ताद
केजरीवाल ने अपने बच्चों की कसम खाकर कहा था कि सरकार बनाने के लिए वो कांग्रेस को ना समर्थन देंगे ना कांग्रेस से समर्थन लेंगे। लेकिन सत्ता के लोभ में दिल्ली में कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाई। केजरीवाल कहा करते थे कि वो सरकारी बंगला, गाड़ी और लालबत्ती नहीं लेंगे, लेकिन मुख्यमंत्री बनने पर न सिर्फ खुद के लिए बल्कि अपने तमाम मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के लिए भी सरकारी एश-ओ-आराम हासिल किए। इसी तरह शीला दीक्षित के खिलाफ 370 पन्नों का सबूत का दावा करने वाले केजरीवाल ने उनके भ्रष्टाचार के मुद्दे को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया। जन लोकपाल, जाति-धर्म की राजनीति न करने और भ्रष्टाचार का साथ नहीं देने जैसे कई मामलों पर केजरीवाल लगातार यू-टर्न लेते रहे।
अपने ही साथियों को दूध की मक्खी की तरह फेंक दिया
अरविंद केजरीवाल बेहद की स्वार्थी प्रवृत्ति के नेता हैं। तानाशाही में यकीन रखने वाले केजरीवाल का एक ही दर्शन है व्यक्तियों का इस्तेमाल करो और फिर फेंक दो। केजरीवाल की यूज एंड थ्रो की राजनीति का शिकार कई नेता हो चुके हैं। अन्ना हजारे, प्रशांत भूषण, शांति भूषण, अरुणा राय, योगेंद्र यादव, किरण बेदी, प्रो. आनंद कुमार, मेधा पाटकर, जस्टिस हेगड़े, कुमार विश्वास जैसे कई लोगों को वे धोखा दे चुके हैं।
राजनीतिक गुरु अन्ना हजारे को केजरीवाल ने दिया धोखा
वर्ष 2011 में दिल्ली के रामलीला मैदान में जन लोकपाल के लिए अन्ना हजारे के आंदोलन में आगे रहने वाले अरविंद केजरीवाल के जेहन में शुरू से ही अपनी अलग पार्टी बनाने की बात थी। अन्ना आंदोलन के दौरान केजरीवाल ने कई बार कहा कि वह राजनीति करने नहीं आए हैं, उन्हें ना सीएम-पीएम बनना है और न ही संसद में जाना है। अन्ना भी राजनीति में जाने के विरोधी थे। बाद में केजरीवाल की महात्वाकांक्षा ने जोर पकड़ा और अन्ना का इस्तेमाल कर अपना असली मकसद पूरा करने के लिए 26 नवंबर 2016 को आम आदमी पार्टी का गठन कर लिया। अरविंद केजरीवाल ने अपने गुरु को अकेला छोड़ दिया।
भ्रष्टाचारियों का साथ देने में गौरव महसूस कर रहे केजरीवाल
झूठ और मक्कारी केजरीवाल की रग-रग में बसी हुई है। भ्रष्टाचारियों का साथ नहीं देने का वादा भी वह नहीं निभा पाए। 2015 में चारा घोटाला के सजायाफ्ता लालू यादव से गलबहियां करते दिखे। वहीं अपने कई भ्रष्ट मंत्रियों को बचाने की वे पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। अब कांग्रेस की शरण में जाने की जुगत लगा रहे हैं। कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में मंच पर मौजूद तमाम भ्रष्टाचारी नेताओं के बीच खड़े होकर उन्हें गौरव का अनुभव हो रहा था। जहिर है राजनीति बदलने का वादा कर आए केजरीवाल राजनीति के लिए खुद एक ‘कलंक कथा’ साबित हुए हैं।
करप्शन में आकंठ डूब गई केजरीवाल की सरकार
सत्ता मिलते ही केजरीवाल ने ना सिर्फ जनता से किए अपने वादे को तोड़ा बल्कि खुद आकंठ भ्रष्टाचार में डूब गए। उन्होंने अपने सहयोगियों के भ्रष्टाचार से भी आंखें फेर लीं। पहले तो अपने रिश्तेदार सुरेन्द्र कुमार बंसल को अनैतिक रास्ते से भ्रष्टाचार में मदद पहुंचाई। इसके बाद सत्येंद्र कुमार जैन को भी बचाने की कोशिश की। दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया पर भी विज्ञापन घोटाले के आरोप हैं, वहीं दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव रहे राजेंद्र कुमार भी भ्रष्टाचार के मामले में जांच के दायरे में हैं। इसी तरह दिल्ली में स्ट्रीट लाइट घोटाले की भी जांच चल रही है। इन सब मामलों में अरविंद केजरीवाल की भूमिका भी संदिग्ध रही है और आरोपियों को बचाने की उनकी कोशिश तो नैतिक गिरावट की पराकाष्ठा है।