Home विपक्ष विशेष अनशन की संभावित विफलता से बौखलाए अन्ना हजारे

अनशन की संभावित विफलता से बौखलाए अन्ना हजारे

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समाजसेवी अन्ना हजारे को अनशन शुरू करने से ठीक पहले यह महसूस होने लगा कि उनके आंदोलन को लेकर बात अब 2011 जैसी नहीं रही। दिल्ली के रामलीला मैदान में किसानों और लोकपाल के मुद्दे पर उनके अनशन को अपेक्षित समर्थन मिलता नहीं दिख रहा। ऐस में अन्ना की बौखलाहट सामने आ रही है सरकार पर भड़ास निकालते हुए। अन्ना ने कहा है कि उन ट्रेनों को कैंसिल कर दिया गया है जिनसे किसान अनशन में शामिल होने आ रहे थे। अन्ना के इस बयान को अनशन की संभावित विफलता से जोड़कर देखा जा रहा है।

केजरीवाल एपिसोड से अन्ना के प्रति जनभावना में गिरावट

करीब छह साल पहले जबसे अरविंद केजरीवाल ने अन्ना हजारे के अनशन के मंच से राजनीतिक पार्टी बनाने का एलान किया, अन्ना के प्रति भी एक जनभावना में परिवर्तन देखा गया। इसकी वजह ये रही है कि अन्ना ने ना तो राजनीतिक पार्टी बनाने के केजरीवाल के फैसले का मंच पर सीधा विरोध किया और ना ही केजरीवाल सरकार के भ्रष्टाचारों के खिलाफ कभी अनशन का कदम उठाया। 

गले नहीं उतर रहा अन्ना के मौजूदा अनशन का औचित्य

अन्ना ने अपने अनशन के लिए जो दो बड़े कारण बताए हैं वे भी लोगों के गले नहीं उतर रहे। अन्ना कहते हैं कि किसानों की उन्नति के लिए सरकार ठोस नीति नहीं बना रही जबकि सच यह है कि किसानों के जीवन को आसान बनाने के लिए मोदी सरकार ने जमीन पर एक नहीं अनेक कार्य कर दिखाए हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना हो, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना या फिर लागत से डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का प्रावधान, ये सब किसानों के हक में हैं। लेकिन अन्ना इन योजनाओं की प्रशंसा करेंगे तो फिर अनशन कैसे करेंगे? अन्ना कहते हैं कि सरकार लोकपाल की नियुक्ति नहीं कर रही, लेकिन कानून के मुताबिक इसके लिए चयन समिति में लोकसभा में नेता विपक्ष का होना भी आवश्यक है जो अभी है नहीं। तो क्या अन्ना चाहते हैं कि कानून से ऊपर जाकर लोकपाल चुना जाए?

साफ है, दिल्ली में अन्ना हजारे के मौजूदा अनशन का कोई औचित्य नजर नहीं आ रहा है। लोगों का मानना है कि अच्छा होता अगर अन्ना भ्रष्टाचार के प्रतीक केजरीवाल या फिर कर्नाटक में किसानों की आत्महत्या के प्रति उदासीन रहे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के विरोध में अनशन पर बैठते।

 

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