पिछले दिनों देश में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हलचल मचा दी। सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रंजन गोगोई ने मीडिया के सामने प्रशासनिक अनियमितताओं को लेकर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा पर कई आरोप लगाए। इन आरोपों में सबसे बड़ा यह था, कि चीफ जस्टिस गंभीर केसों के बंटवारे में मनमानी करते हैं, और सीनियर जजों को दरकिनार कर, जूनियर जजों की बेंच को आवंटित कर देते हैं। इन आरोपों को इस तरह पेश किया गया कि देश के लोकतंत्र पर संकट आ गया है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जजों के आरोपों की पड़ताल की गई तो पता चला कि जूनियर जजों को महत्वपूर्ण केस दिए जाने के सिलसिला हमेशा से जारी है, पिछले दो दशकों के इतिहास को देखें तो ऐसे तमाम संवेदनशील मामले, जिनपर पूरे देश की निगाहें थीं, उन्हें जूनियर जजों की बेंच को सौंपा जा चुका है।
With no pleasure we are compelled take the decision to call a press conference. The administration of the SC is not in order & many things which are less than desirable have happened in last few months :Justice J.Chelameswar pic.twitter.com/yv2Dmuexj0
— ANI (@ANI) 12 January 2018
There is an issue of assignment of a case which is raised in that letter (to CJI): Justice Ranjan Gogoi, on being asked further if it is about CBI Judge BH Loya, he said, ‘yes.’ pic.twitter.com/aeZAwg04i7
— ANI (@ANI) 12 January 2018
सुप्रीम कोर्ट की 14 बेंचों में सीनियर जज करते हैं अध्यक्षता
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठता के आधार पर नहीं, बल्कि पसंद के जूनियर जजों को केस सौंपे जा रहे हैं, यह आरोप और किसी ने नहीं, सुप्रीम कोर्ट में नंबर दो की हैसियत रखने वाले वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस चेलमेश्वर के नेतृत्व में चार वरिष्ठ जजों ने लगाए थे। जब इन आरोपों की पड़ताल की गई तो, इनमें कतई दम नहीं था। इसकी विस्तार से चर्चा करने से पहले सुप्रीम कोर्ट की प्रशासनिक संरचना पर गौर करते हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में 14 खंडपीठ हैं, और इनकी अध्यक्षता वरिष्ठता के आधार पर न्यायाधीश करते हैं। इसके हिसाब से कोर्ट नंबर-1 में मुख्य न्यायाधीश, और कोर्ट नबर-2 में वरिष्ठता में दूसरे नंबर के न्यायाधीश बैठते हैं। इसी प्रकार 14 खंडपीठ की अध्यक्षता अन्य जजों को सौंपी जाती है।
कई हाईप्रोफाइल मामलों में जूनियर जजों ने दिया फैसला
पिछले 2 दशकों में देश के लिए संवेदनशील मुकदमों की लिस्ट पर गौर करें तो साफ हो जाएगा, कि कम से कम 15 ऐसे मामले थे जिन्हें सुप्रीम कोर्ट तत्कालीन मुख्य न्यायाधीशों ने सीनियर नहीं, बल्कि जूनियर जजों की अध्यक्षता वाली खंडपीठों को सौंपा था। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक राजीव गांधी हत्याकांड, बोफोर्स कांड, सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस, बेस्ट बेकरी केस जैसे अहम मुकदमों में जजों की सीनियर बेंच ने नहीं, बल्कि जूनियर जजों ने ही फैसला दिया था।
राजीव गांधी मर्डर केस में जूनियर जजों ने दिया फैसला: राजीव गांधी की हत्या की दोषी नलिनी और कुछ अन्य ने 1998 में मृत्युदंड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। उस वक्त यह देश के सबसे हाई प्रोफाइल मामलों में से एक था। तत्कालीन चीफ जस्टिस ने इस केस को सुनवाई के लिए उस समय सुप्रीम कोर्ट के काफी जूनियर जज जस्टिस के टी थॉमस, जस्टिस डी पी वाधवा और जस्टिस एस एस एम कादरी के पास भेजा। उस वक्त चीफ जस्टिस के इस फैसले के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई गई थी।
दोषी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक का फैसला: वकील लिली थॉमस ने इसी तरह 2005 में एक रिट याचिका दायर की थी, जिसमें किसी भी मामले में दोषी साबित होने और दो या उससे ज्यादा वर्ष की सजा पाने वाले सासंद, विधायकों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग की थी। उस समय के चीफ जस्टिस ने इस केस को कोर्ट नंबर 9 के पास भेजा। उस वक्त इस बेंच की अध्यक्षता जस्टिस ए के पटनायक ने की थी, जो कि सुप्रीम कोर्ट में उस वक्त जूनियर जज थे। भारतीय राजनीति के लिए यह एक ऐतिहासिक फैसला रहा।
इसके अलावा 2004 में गुजरात दंगों से जुड़े बेस्ट बेकरी केस में जाहिरा हबीबुल्लाह शेख की रिट याचिका, 2009 में कालेधन के खिलाफ कार्रवाई को लेकर वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी की याचिका, समलैंगिक रिश्तों में सेक्स से संबंधित मामला, वरिष्ठ बीजेपी नेता एलके आडवाणी और अन्य नेताओं के खिलाफ बाबरी मस्जिद विध्वंस केस, मनमोहन सरकार में कोयला आवंटन मामला, आधार कार्ड की वैधता, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ कथित यौन उत्पीड़न मामला। इन तमाम मामलों से संबंधित याचिकाओं को जूनियर जजों ने ही सुना है। इस पूरे विश्लेषण से साफ हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ माननीय जजों के आरोपों में कोई दम नहीं है, जनता की अदालत में मी लार्ड की दलीलें फेल हो गई हैं। सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल आया तूफान थम गया है और सोमवार को कामकाज सुचारु रूप से शुरू भी हो गया। ऐसे में अब आरोप लगाने वाले चारों जज लोगों के निशाने पर आ गए है।
चार जजों की ‘बगावत’ पूरी तरह से फुस्स हो गई। न उनके उठाए मुद्दों में दम, न ही उनके तर्कों में। अब तो सवाल यह उठना चाहिए कि इस तरह सुप्रीम कोर्ट की छवि को धूमिल करने के बावजूद क्या उन्हें अपने पदों पर रहना चाहिए? https://t.co/v4n8wC3KIb
— Akhilesh Sharma (@akhileshsharma1) 15 January 2018
#SCJudgesMutiny never heard any Supreme court judge speaking in CONGRESS ERA inspite of so many scams.
— rahul tiwari (@rahultiwari254) 12 January 2018