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अहमद पटेल का सियासी करियर ले डूबेगा NOTA ? सोनिया कैंप में हड़कंप !

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सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल की चुनावी नैया पार लगाने के लिये कांग्रेस ने गुजरात की जनता को बाढ़ में डूबता छोड़ दिया। लेकिन अब जो स्थिति बन रही है उसके अनुसार 44 विधायकों को बेंगलुरु में अय्याशी कराने का भी कांग्रेस को कोई फायदा मिलता नहीं दिख रहा। मीडिया रिपोर्ट्स में आशंका जताई जा रही है कि अगर NOTA ने असर दिखाया तो कांग्रेस और अहमद पटेल की सारी तिकड़मबाजी धरी की धरी रह जायेगी।

चुनाव आयोग का फैसला क्या है ?
गुजरात में 8 अगस्त को राज्यसभा की 3 सीटों के लिये होने वाले मतदान में पहली बार बैलेट पेपर पर NOTA (None Of The Above) का भी विकल्प दिया जायेगा। दरअसल 2015 में NOTA प्रावधान लागू होने के बाद गुजरात में पहली बार राज्यसभा का चुनाव हो रहा है। इसीलिये चुनाव आयोग ने वहां 5वें विकल्प के तौर पर NOTA का विकल्प रखने का फैसला किया है।

कांग्रेस क्यों डरी हुई है ?
गुजरात की जिन तीन राज्यसभा सीटों के लिये चुनाव हो रहे हैं, उसमें पहली दो सीटों पर यानी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी की जीत पक्की मानी जा रही है। जबकि तीसरे सीट के लिये कांग्रेस के अहमद पटेल के सामने बीजेपी के बलवंत सिंह राजपूत मैदान में हैं। कांग्रेस ने बगावत के डर से 44 विधायकों को बेंगलुरु के एक आलीशान रिजॉर्ट में अय्याशी करने के लिये छोड़ रखा है। ऐसे में NOTA का विकल्प होने पर उसे डर है कि कुछ विधायक कहीं इसका उपयोग न कर लें, क्योंकि ऐसा होने पर बलवंत सिंह से अहमद पटेल की हार निश्चित है। नियमों के तहत अगर कोई विधायक पार्टी व्हिप का उल्लंघन करता है तो 6 साल तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी लग जाती है। लेकिन NOTA का इस्तेमाल करने पर उसे सिर्फ पार्टी से निकाला जा सकता है, चुनाव लड़ने पर बैन नहीं लग सकता।

NOTA पर राज्यसभा में कांग्रेस का हंगामा
कांग्रेस और उसके पिच्छलग्गू विपक्ष के भय का आलम ये है कि वो इस मसले पर संसद में भी जमकर हंगामा किया गया है। हताश कांग्रेस और बाकी विपक्ष राज्यसभा में सभापति से इस विषय पर चर्चा की मांग कर रहे थे। लेकिन सदन में सरकार की ओर से साफ कर दिया गया कि NOTA की अधिसूचना चुनाव आयोग ने जारी की थी। ऐसे में एक संवैधानिक स्वायत्त संस्था को लेकर सदन में कोई विवाद करना कत्तई उचित नहीं है।

अहमद पटेल की हार सोनिया की हार होगी ?

बताया जाता है कि सोनिया गांधी कोई भी राजनीतिक निर्णय बिना अहमद पटेल की सलाह के नहीं करतीं। कहा तो यहां तक जाता है कि सोनिया, राहुल कुछ भी करें उसके पीछे दिमाग ज्यादातर इसी व्यक्ति का रहता है। जब वो कांग्रेस परिवार के लिये इतने अहम हैं, तो जाहिर है कि उनकी जीत हार में पार्टी अध्यक्ष की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है। इसका अंदाजा इसी से लग जाता है कि इस सीट को बचाने के लिये कांग्रेस ने अपने 40 से अधिक विधायकों को बाढ़ पीड़ित राज्य से दूर करके रख दिया है। इस तिकड़मबाजी पर करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाये जा रहे हैं।

हालांकि गुजरात कांग्रेस के नेताओं का दावा है कि उनके पास अहमद पटेल को फिर से राज्यसभा भेजने के लिए पर्याप्त वोट हैं। लेकिन, हाल में जिस तरह से पार्टी में भगदड़ मची है और बाकी बचे विधायकों को बंदी की तरह एक रिजॉर्ट में रोक करके रखा गया है वो पूरे हालात को बयां करने के लिये काफी हैं। 

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