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प्रधानमंत्री मोदी का मंत्र है ‘सबका साथ सबका विकास’, एजेंडा पत्रकारों को समझ नहीं आएगा

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देश की बागडोर संभालने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक ही मंत्र रहा है ‘सबका साथ सबका विकास’। प्रधानमंत्री ने कभी भी जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया है और समाज के हर तबके के लिए एक समान काम किया है। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद तमाम राज्यों में बीजेपी ने फतह हासिल की है। इन राज्यों में मुख्यमंत्री के चुनाव के वक्त कभी भी जाति को तबज्जो नहीं दी गई,आमलोगों को स्वीकार और जनप्रिय नेता को ही मुख्यमंत्री पद पर बैठाया गया है। बीजेपी की यह परिपाटी ही रही है कि यहां न तो वंशवाद है और न ही जातिवाद। तभी तो प्रधानमंत्री के पद पर ओबीसी समुदाय का व्यक्ति और राष्ट्रपति के पद पर दलित समुदाय का शख्स बैठा है, लेकिन कुछ एजेंडा पत्रकार है कि उन्हें इसमें भी खोट नजर आ रहा है। अभी 24 दिसंबर, रविवार को हिमाचल प्रदेश में बीजेपी विधायकों ने जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री चुना। इसके बाद एजेंडा पत्रकारों ने बीजेपी में जाति का मुद्दा उठा दिया और धड़ाधड़ ट्वीट आने लगे कि बीजेपी में उच्च जाति के लोगों को ही मुख्यमंत्री बनाया जाता है।

एजेंडा पत्रकार राजदीप सरदेसाई का जहरीला ट्वीट

हिमाचल प्रदेश में जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद एजेंडा पत्रकार, हर मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी की आलोचना करने वाले राजदीप सरदेसाई ने ट्वीट किया। इस ट्वीट में राजदीप ने लिखा- जयराम ठाकुर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री हैंl 11 बीजेपी मुख्यमंत्रियों में (नॉर्थ ईस्ट के बाहर) सिर्फ रघुबर दास और शिवराज सिंह चौहान ओबीसी हैं, बाकी ब्राह्मण, राजपूत और ऊंची जाति के हैंl राजनैतिक तौर पर भारत अब भी नहीं बदला हैl

ट्विटर पर ट्रोल हुए एजेंडा जर्नलिस्ट राजदीप

राजदीप सरदेसाई ने जैसे ही यह ट्वीट किया वो लोगों के निशाने पर आ गए और ट्विटर पर ट्रोल होने लगे। लोगों ने एजेंडा पत्रकार राजदीप सरदेसाई को जाति-पाति की बात करने के लिए जमकर कोसा। 

विधायकों की पसंद से मुख्यमंत्री बने हैं जयराम ठाकुर

सभी जानते हैं कि बीजेपी ने चुनाव के पहले ही राज्य में पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया था, लेकिन धूमल विधानसभा चुनाव हार गए। ऐसे में बीजेपी ने धूमल को जबरन थोपने या फिर किसी बाहरी नेता को वहां भेजने की कोशिश नहीं की। बीजेपी आलाकमान ने लोकतांत्रित तरीके से जीते हुए विधायकों की बैठक बुलाई और उस बैठक में विधायकों ने बीसियों वर्षों से पार्टी के लिए काम करने वाले, पांच बार के विधायक जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री चुना। 52 साल के जयराम ठाकुर हैं जरूर राजपूत समुदाय के, लेकिन उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि बेहद सामान्य रही है। वे एक साधारण किसान के बेटे हैं। एजेंडा पत्रकार राजदीप सरदेसाई को यह कुछ नजर नहीं आया, उन्हें सिर्फ उनकी ऊंची जाति नजर आई।

जाति नहीं काम को तरजीह देते हैं प्रधानमंत्री मोदी

राजदीप ने एक अखबार में प्रकाशित अपने लेख में गुजरात में विजय रूपानी को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने को लेकर भी टिप्पणी की है। राजदीप सरदेसाई ने लिखा है कि गुजरात में विजय रुपाणी और हिमाचल प्रदेश में जय राम ठाकुर के मुख्यमंत्री बनाए जाने से एक दिलचस्प राजनीतिक समीकरण भी उभर कर आता है। असम में सर्वानंद सोनोवाल (आदिवासी), झारखंड में रघुबर दास और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान (दोनों ओबीसी हैं) को छोड़ दें तो नौ राज्यों में पार्टी ने सवर्णों को मुख्यमंत्री बनाया हुआ है। हालांकि एजेंडा पत्रकार राजदीप को शायद यह नहीं पता है कि प्रधानमंत्री मोदी जाति को नहीं बल्कि काम को तरजीह देते हैं। यही वजह है कि बीजेपी में आदिवासी, दलित और ओबीसी के विधायक और सांसदों की संख्या बढ़ी है। 

राष्ट्रपति के लिए कोविंद का नाम घोषित होने पर भी किया था ट्वीट

यह कोई पहली बार नहीं है, इससे पहले जब 19 जून को जब बीजेपी की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिए दलित समुदाय के रामनाथ कोविंद के नाम का एलान किया था, तब भी इन्हीं एजेंडा पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने सबसे पहले ट्वीट कर इसे पॉलिटिकल टोकनिज्म बताया था और बीजेपी पर दलित कार्ड इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था। राजदीप ने अपने ट्वीट में लिखा था कि जब भी किसी तरह के संदेह की स्थिति पैदा होती है तो एक दलित चेहरे को आगे कर दिया जाता है। सर्वोच्च पद के लिए एक बार फिर से राजनीतिक टोकनवाद का इस्तेमाल हुआ है।

तब भी लोगों ने राजदीप को खूब धोया था

एजेंडा पत्रकार राजदीप सरदेसाई के इस ट्वीट पर भी लोगों ने उन्हें काफी खरी-खोटी सुनाई थी। एक यूजर ने राजदीप के इस ट्वीट का जवाब देते हुए लिखा- राजदीप तुम्हें शर्म आनी चाहिए, जब डॉ. कलाम को राष्ट्रपति बनाया था तब तुम्हारे मुंह से पॉलिटकल टोकनिज्म नहीं निकला।

पत्रकारिता के लिए कलंक हैं  ऐसे पत्रकार

इससे साफ हो गया है कि राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकारों को पत्रकारिता से कोई मतलब नहीं है। इनका एक मात्र मकसद है कि अपना निजी एजेंडा कैसे आगे बढ़ाया जाए। यह बताने की जरूरत नहीं है कि इन जैसे पत्रकारों का निजी एजेंडा है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी का विरोध। आखिर इतने वरिष्ठ पत्रकार से युवा पीढ़ी क्या शिक्षा लेगी, पत्रकारिता के उसूलों को ताक पर रखने वाले राजदीप सरदेसाई जैसे एजेंडा पत्रकारों के छिपे हुए मकसद को समझने की जरूरत है, क्या पत्रकारिता के लिए ऐसे पत्रकार कलंक नहीं हैं?

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