Home पश्चिम बंगाल विशेष ममता का एजेंडा : मोदी विरोध के नाम पर ‘देश विरोध’ !

ममता का एजेंडा : मोदी विरोध के नाम पर ‘देश विरोध’ !

ममता बनर्जी के द्वारा मोदी विरोध के कारणों को खंगालती रिपोर्ट

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नोटबंदी के बाद भ्रष्टाचार पर जब जबरदस्त प्रहार हुआ तो सबसे ज्यादा दर्द पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हुआ है। वे कहती हैं कि भले ही वो मरें या जिएं पीएम मोदी को राजनीति से विदा करके रहेंगी। सोते, जागते, उठते, बैठते हर समय उनका अब एक ही मकसद दिख रहा है-मोदी विरोध। दरअसल ममता जिस लेवल पर खड़े होकर मोदी विरोध कर रही हैं वह लोकतांत्रिक राजनीति में एकबारगी ठीक भी कहा जा सकता है, लेकिन संसदीय आचरण के लिहाज से कतई उचित नहीं है। इन दिनों ममता का हर ‘एक्शन-रिएक्शन’ देश के संघीय ढांचे को भी आघात कर रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को कमजोर कर रहा है। मोदी विरोध के नाम पर अब बैंक में खाता खोलने के लिए आधार नंबर को अनिवार्य किए जाने का विरोध कर रही है। हवाला निजता का दिया है… लेकिन उद्देश्य वोटबैंक के लिए… मोदी विरोध… देश विरोध!

दरअसल केंद्र सरकार ने बैंक खाता खोलने तथा 50,000 रुपये या उससे अधिक के वित्तीय लेन-देन के लिए आधार नंबर अनिवार्य कर दिया है। राजस्व विभाग की अधिसूचना में में कहा गया है कि जिनके बैंक खाते पहले से हैं उन्हें 31 दिसंबर, 2017 तक आधार नंबर जमा करना होगा। जो निर्धारित तारीख तक आधार जमा नहीं करेगा उसका खाता अवैध हो जाएगा। जाहिर है ये फैसला देश में गहरे तक पैठ बना चुके भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए उठाया गया एक कदम हैं। आर्थिक लेन-देन में पारदर्शिता लाने के लिए एक बड़ा निर्णय है। लेकिन ममता बनर्जी को इसमें निजता पर आघात दिख रहा है। ममता को शायद यह समझना चाहिए कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए क्या सही है या क्या गलत है वह केंद्र सरकार का सोचना काम है। राज्य की जनता का प्रतिनिधि होने के नाते उनका भी एक पक्ष है… लेकिन यह पूरे तौर पर केंद्र सरकार के तहत आता है।

किस निजता की बात कर रही हैं ममता?
आधार कार्ड को लेकर ममता बार-बार सवाल तो उठाती हैं लेकिन न तो उन्हें भारत के संविधान का ज्ञान है और सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है इसका भान है। हाल में ही आधार नंबर पर दिए एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान पीठ के अंतिम फैसले तक जिनके पास आधार कार्ड नहीं है, सरकार उन्हें पैन कार्ड से जोड़ने पर जोर नहीं दे सकती, लेकिन जिनके पास आधार कार्ड है, उन्हें इसे पैन कार्ड से जोड़ना होगा। बस केंद्र सरकार ने संविधान के दायरे में ही ये बात कही है। केंद्र ने साफ किया है कि अब जिनके पास आधार नंबर नहीं होगा उनका खाता ही नहीं खुलेगा। यानि जिनके पास आधार नहीं है तो वो आधार बनवा सकते हैं… इसकी आसान प्रक्रिया भी है और वक्त भी है। लेकिन ममता इस मामले में सहयोग न देकर विरोध करने की बात कर रही हैं। जाहिर है उनके इरादे को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

फर्जी राशन कार्ड रैकेट चलाती हैं ममता?
भारत में बीते तीन साल में दो करोड़ 33 लाख फर्जी राशन कार्ड रद्द कर दिए गए हैं, जिससे सरकार को हजारों करोड़ रुपये की बचत हुई है। लेकिन हैरत वाली बात यह है कि सबसे ज्यादा फर्जी राशन कार्ड ममता बनर्जी के ही पश्चिम बंगाल से ही पकड़े गए हैं। 66 लाख 13 हजार 961 फर्जी राशन कार्ड पश्चिम बंगाल में पकड़े गए हैं और वे सभी के सभी अवैध बांग्लादेशियों के नाम पर हैं। अरबों रुपये का ये घोटाला पश्चिम बंगाल में सरकार के नाक के नीचे चल रहा था, या यूं कहिए कि सरकार की शह पर हो रहा था। एक सच यह भी है कि ये सारे फर्जी राशन कार्ड अवैध बांग्लादेशियों के हैं जो फर्जी मतदाता पहचान पत्र बनवाकर भारत का नागरिक बन गए हैं। जाहिर है अब आप समझ गए होंगे कि ममता के मोदी विरोध का सच क्या है।

केंद्र ने इसलिए अनिवार्य किया आधार
बीते दिनों उत्तर प्रदेश के बैंकों में 40 हजार से अधिक ऐसे जनधन खातों की पहचान हुई है, जिनका कोई दावेदार सामने नहीं आ रहा है। इन खातों में भी 130 करोड़ रुपये से अधिक जमा हैं। नोटबंदी के दौरान इन खातों में अचानक बड़ी धनराशि जमा कराई गई थी। जांच में इन खाताधारकों ने कोई जवाब नहीं दिया। अब इन्हें जब्त करने की कवायद शुरू होने जा रही है। सच्चाई ये है कि नोटबंदी के दौरान सबसे ज्यादा रकम पश्चिम बंगाल में जमा किए गए थे। इनमें जनधन के भी लाखों फर्जी खाते हैं जिनकी अभी जांच जारी है। जाहिर है जांच पूरी होने के बाद पश्चिम बंगाल में भ्रष्टाचार का एक और खेल उजागर होगा ही।

मोदी विरोध ममता का राजनीतिक एजेंडा
ऐसा नहीं है कि ममता पहली बार केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी कदम का विरोध किया है। नोटबंदी के बाद ममता ने मिड डे मिल योजना के लिए आधार को अनिवार्य बनाने के केंद्र के फैसले की भी आलोचना की थी और इस पर गरीबों का अधिकार छीनने का आरोप लगाया था। उन्होंने आरोप लगाया कि गरीबों की मदद करने की बजाय केंद्र उनके अधिकारों को छीन रहा है। लेकिन एक के बाद एक फर्जीवाड़ा सामने आने से ममता परेशान हैं और लगातार विरोध कर रही हैं। 

केंद्रीय योजनाओं के नाम बदलने का खेल
देश के हर राज्य में केंद्रीय योजनाएं एक समान नामों से चल रही हैं। लेकिन, पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन सभी नामों को बदल दिया है। नाम बदलने के पीछे ममता का तर्क है कि इन सभी योजनाओं में राज्य भी 40 प्रतिशत खर्च वहन करता है, इसलिए उसे नाम बदलने का हक है। लेकिन असलियत में उन्हें लगता है कि योजनाओं में प्रधानमंत्री या केंद्रीय योजनाओं का नाम देखते ही जनता सच्चाई जान जाएगी। इसीलिए राज्य सरकार ने ‘दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना’का नाम बदलकर ‘आनंदाधारा’, ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का नाम बदलकर ‘मिशन निर्मल बांग्ला’, ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’ का ‘सबर घरे आलो’,‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ को ‘राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन’, ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ को ‘बांग्लार ग्राम सड़क योजना’ और‘प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना’ का नाम बदलकर ‘बांग्लार गृह प्रकल्प योजना’ कर दिया है।

‘स्मार्ट सिटी मिशन’ से पीछे हट गईं ममता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून 2015 में 100 स्मार्ट शहरों के विकास की योजना का शुभारंभ किया था। शुरुआत में पश्चिम बंगाल ने चार शहरों कोलकाता, विधान नगर, न्यू टाउन और हल्दिया को इस योजना के लिए नामांकित किया। लेकिन, बाद में न्यूटाउन जो 100 शहरों में से एक शहर चुना गया था उसे ममता बनर्जी ने स्मार्ट सिटी योजना से हटा लिया। इसके पीछे तर्क दिया कि ऐसी योजनाऐं असमान विकास को बढ़ावा देंगी। इस योजना की जगह मुख्यमंत्री ने राज्य में ‘हरित व स्मार्ट सिटी’ विकसित करने की नई योजना शुरु कर दी। इस के तहत वो 10 शहरों के विकास का दावा कर रही हैं।

RERA कानून भी नहीं बनने दिया
एक मई से पूरी तरह से लागू करने के लिए RERA कानून के तहत नियमों को नहीं बनाने वाले कुछ राज्यों में पश्चिम बंगाल भी शामिल है। मई 2016 में संसद ने घर खरीदने वालों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए इस कानून को पारित किया था। तब राज्यों को केन्द्र के कानून के आधार पर नियमों को अधिसूचित करने के लिए 27 नवंबर 2016 तक का समय दिया गया था। लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस कानून के तहत नियमों को अधिसूचित करके घर खरीदने वाले सामान्य लोगों को धोखेबाज बिल्डरों और कंपनियों से बचाने के लिए नियम नहीं बनाया। इतना ही नहीं उन्होंने शहरी विकास मंत्रालय की जनवरी 17 व मार्च 27 की बैठकों में भी हिस्सा नहीं लिया। ये कानून विशेष रूप से शहरी मध्यम वर्ग के हितों की रक्षा के हिसाब से बनाया गया है। लेकिन ममता बनर्जी को लगता है कि उनके यहां अगर लोकहितकारी ये कानून बन गया तो मध्यम वर्ग प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करने लगेगा।

नदियों को जोड़ने की परियोजना के लिए तैयार नहीं
केंद्र की मोदी की सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ के ध्येय को पूरा करने के उद्देश्य से मानस-संकोष-तिस्ता-गंगा नदियों को जोड़ने की परियोजना शुरू करना चाहती है। इससे असम, पश्चिम बंगाल और बिहार में बाढ़ की समस्या पर नियंत्रण पाया जा सकेगा और पेयजल और सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था भी हो सकेगा। लेकिन ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल की सरकार इस योजना में शामिल होने के लिए तैयार नहीं है। केंद्रीय जल संशाधन मंत्री उमा भारती ने ममता बनर्जी को इस योजना में शामिल होने के लिए कई पत्र लिखे, लेकिन उन्होंने राज्य को इससे होने वाले नुकसान का हवाला देते हुए इसमें शामिल होने से मना कर दिया। लेकिन, मोदी सरकार अब भी इस योजना पर आगे बढ़ रही है । ममता को लगता है कि अगर ये परियोजना शुरू हो गई तो प्रधानमंत्री करोड़ों गरीबों और निम्न वर्ग के लोगों के दिलों में राज करने लगेंगे, इसी खुन्नस में वो जन-कल्याण के इस काम में अड़ंगा लगा रही हैं।

संयुक्त इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (JEE)का विरोध
देश के सभी इंजीनियरिंग कालेजों में प्रवेश के लिए एकल संयुक्त परीक्षा के मोदी सरकार की पहल का ममता बनर्जी ने जमकर विरोध किया। पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्था चटर्जी ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर कहा, कि राज्य की इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा को रद्द करके एकल संयुक्त परीक्षा राज्यों के अधिकार क्षेत्र पर केंद्र का अतिक्रमण है। लेकिन सच्चाई है कि ममता को लगता है कि इस पहल से पीएम मोदी करोड़ों युवाओं के दिल-दिमाग पर छा जाएंगे, इसीलिए वो इस नेक काम में भी अड़ंगा लगाने से नहीं रुकीं।

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