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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर हर किसी के पहुंच में स्वास्थ्य सेवाएं

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार सस्ती और गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए कटिबद्ध है। प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में सरकार की प्राथमिकता सबको स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इसके लिए सरकार देशभर के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में सुविधाएं बढ़ाने का काम कर रही है। देशभर में सरकार जगह-जगह पर जन औषधि केंद्र खोल रही है। रेलवे विभाग एक हजार से अधिक रेलवे स्टेशनों पर जन औषधि केंद्र खोलने के लिए काम कर रहा है। सरकार के कदमों से स्वास्थ्य सुरक्षा प्राप्त करने के लिए “साइलेंट क्रांति” की शुरुआत हो चुकी है।

जीडीपी का 2.5 फीसदी स्वास्थ्य पर खर्च का लक्ष्य
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के लोगों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए लगातार नीतियों में बदलाव कर रहे हैं। सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के तहत स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को 2025 आते-आते जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। सभी सरकारी स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्रों में दवा और निदान मुफ्त निर्बाध रूप में मिले, इसके लिए राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मिशन नि:शुल्‍क औषध एवं नि:शुल्‍क नैदानिक पहल का कार्यान्‍वयन कर रहा है।

जिला अस्पतालों में डायलिसिस मुफ्त
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम के तहत जिला अस्पतालों में गरीबों के लिए निशुल्क डायलिसिस सेवा देने की योजना पर सरकार काम कर रही है। सभी पीएचसी और उप स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाएं बढ़ाकर, उसे स्वास्थ्य एवं आरोग्य केन्द्रों में बदलने का काम हो रहा है। राज्‍य सरकारों के सहयोग से “जन औषधि स्‍कीम” के अंतर्गत सभी के लिए जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजना के तहत परिवार फ्लोटर आधार पर स्‍मार्ट कार्ड आधारित नकद रहित स्‍वास्‍थ्‍य बीमा प्रदान किया जा रहा है।

साफ अक्षरों में और मरीज की भाषा में हो दवाई का नुस्खा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जन-जन को सशक्त बनाना चाहते हैं। इसी संकल्प के साथ केंद्र सरकार हर योजना पर काम कर रही है। केंद्र सरकार के आदेश पर भारतीय चिकित्‍सा परिषद (पेशेवर आचरण, शिष्‍टाचार और नीति ) विनियम में बदलाव किया गया है, और सभी डॉक्टरों को आदेश दिया गया कि उनके द्वारा पठनीय और यथासंभव अंग्रेजी के बड़े अक्षरों में जेनरिक नाम से औषधियों का नाम लिखा जाना चाहिए। साथ ही डॉक्टरों से यह भी कहा गया कि दवाओं का नुस्‍खा एवं प्रयोग युक्तिसंगत होना चाहिए।

पाठ्यक्रम के बाद ग्रामीण क्षेत्र में सेवा देना अनिवार्य
ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों में अच्छे डॉक्टर उपलब्ध हों, इसके लिए केंद्र सरकार के अनुमोदन पर भारतीय चिकित्सा परिषद ने चिकित्सा शिक्षा नियमों में कुछ सुधार किए। अब स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त करने वाले सभी चिकित्सकों को अनिवार्य रूप से दो साल दुर्गम क्षेत्रों में सेवा देनी होगी।

दुर्गम क्षेत्र में सेवा देने वाले चिकित्सकों को मिलेगी वरीयता
भारतीय चिकित्सा परिषद ने चिकित्सा शिक्षा नियमों में बदलाव करके स्‍नातकोत्‍तर डिप्‍लोमा पाठ्यक्रमों में 50 प्रतिशत सीटें सरकारी सेवारत ऐसे चिकित्‍सा अधिकारियों के लिए आरक्षित कर दी हैं, जिन्होंने कम से कम 3 वर्ष की सेवा दुर्गम क्षेत्रों में की हो। वहीं, स्‍नातकोत्‍तर मेडिकल पाठ्यक्रमों में नामांकन कराने के लिए प्रवेश परीक्षा में दुर्गम क्षेत्रों में सेवा के लिए प्रति वर्ष के लिए 10 प्रतिशत अंक का वैटेज दिया जाएगा, जो कि प्रवेश परीक्षा में प्राप्त अंकों का अधिकतम 30 प्रतिशत प्रोत्‍साहन अंक दिया जा सकेगा। इसके अतिरिक्‍त एनएचएम के तहत, ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देने के लिए एमबीबीएस तथा स्‍नातकोत्‍तर डॉक्‍टरों को वित्तीय प्रोत्‍साहन भी दिया जाता है।

घुटना प्रतिरोपण, स्टेंट की कीमतों में कटौती
किफायती कीमत में उपचार सबको मिले, इसी को लागू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घुटना प्रतिरोपण की मूल्य सीमा 54 हजार रुपये से 1.14 लाख रुपये के बीच निर्धारित कर दी है। ऐसा करने से घुटना सर्जरी की कीमत में 70 प्रतिशत तक की कमी आई है। अनुमान है कि इससे सालाना देशवासियों के करीब 1500 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है। इसी तरह कैंसर और ट्यूमर के लिए विशेष इम्प्लांट की 4 से 9 लाख रुपये की कीमत को कम करके एक लाख 14 हजार रुपये के भीतर रखा गया है। इससे पहले सरकार स्टेंट की कीमते तय कर चुकी है।

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