Home विचार मीडिया के निशाने पर क्यों है एबीवीपी?

मीडिया के निशाने पर क्यों है एबीवीपी?

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रामजस कॉलेज के सेमिनार में बोलने के लिए उमर खलिद को बुलाने पर जो हंगामा हुआ उसमें एक ओर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद था तो दूसरी ओर वामपंथी छात्र संगठन एआईएसएफ, एसएफआई वगैरह लेकिन ज्यादातर अखबार और टीवी चैनलों में इसे विद्यार्थी बनाम एबीवीपी बनाकर पेश किया जा रहा है। खासकर अंग्रेजी के समाचार पत्रों को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे दिल्ली के सारे विद्यार्थी एबीवीपी के खिलाफ आंदोलन पर उतर आए हैं। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? निश्चित रूप से नहीं।

दरअसल यह एक सोची समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है। मकसद साफ है। राष्ट् निर्माण के उद्येश्य को लेकर 1949 में अस्तित्व में आए छात्र संगठन को अराजक और लोकतंत्र विरोधी बताकर बदनाम करना। ऐसा इसलिए कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जिस प्रकार से एबीवीपी की सदस्य संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है और हैदराबाद से लेकर जेएनयू तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश विरोधी नारे लगाने वालों के खिलाफ मोर्चा संभाला है, तबसे वामपंथी विचारधारा की चिंता बढ गई है। आज लेह से लेकर अंदमान निकोबार तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एबीवीपी के कार्यकर्ता मौजूद हैं। परिषद के सदस्यों की संख्या 32 लाख के पार जा चुकी है, जो 2003 में महज 11 लाख के आसपास थी। अकेले 2014 में 10 लाख से भी ज्यादा विद्यार्थी इससे जुड़े। इस मामले में यह एनएसयूआई और एआईएसएफ के करीब जा पहुंची है जिसकी संख्या 40 लाख और 35 लाख के आसपास है। माकपा के छात्र संगठन एसएफआई को यह पहले ही पीछे छोड़ चुका है जिसके के 15 लाख सदस्य हैं।

 

यह सच है कि एबीवीपी को वैचारिक खुराक आरएसएस से मिलती है और यह भाजपा के छात्र संगठन के रूप में काम करता है। लेकिन क्या एनएसयूआई, एआईएसएफ और एसएफआई का संबंध कांग्रेस, सीपीआई और सीपीएम से नहीं है? तो फिर एबीवीपी को आरएसएस का छात्र संगठन बनाकर पेश करना क्या बताता है? यह एक तरह का ब्रांडिंग है। इसे समझने के लिए अखबारों में जेएनयू की प्रोफेसर नंदनी सुंदर के उस बयान पर गौर करें जिसमें उन्होंने एबीवीपी को सही मायनों में राष्ट्र विरोधी करार दिया है। लेकिन क्यों? सिर्फ इसलिए कि यह संगठन राष्ट्र विरोधी सोच का विरोध करता है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जेएनयू में कश्मीर की आजादी का नारा लगाने वालों को आईना दिखाने की हिमाकत करता है? जवाब है हां। और इसलिए भी कि एबीवीपी ने छात्र राजनीति के जरिए मोदी सरकार को घेरने वालों को मुंहतोड़ जवाब दिया है।

बहरहाल, एबीवीपी को इस विवाद से घबराना नहीं लड़ना सीखना चाहिए, क्योंकि यह वैचारिक लड़ाई है। यहां सोच से ही विरोधियों की मंशा को नाकाम किया जा सकता है। जहां तक रामजस में हुई हिंसा की बात है तो यह चिंतन का विषय है कि इसमें किसका हित था? कहीं यह साजिश तो नहीं थी? खासकर गुरमेहर कौर का फेसबुक पोस्ट।

-संजय कुमार झा

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