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हत्यारी है कर्नाटक की कांग्रेस सरकार, सिद्धारमैया राज में 3515 किसानों ने दी जान

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कांग्रेस पार्टी किसानों और गरीबों की बात तो करती है, लेकिन उनके लिए करती कुछ नहीं है। कर्नाटक उन गिने-चुने राज्यों में है, जहां अभी कांग्रेस पार्टी की सरकार है। कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनकी सरकार के मंत्री दोनों हाथों से जनता का पैसा लूटने में लगे हैं, उन्हें राज्य के लोगों के सरोकार से कोई मतलब नहीं है। कर्नाटक में पिछले पांच वर्षों में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा यही साबित करता है। डीएनए की खबर के अनुसार पिछले पांच वर्षों में कर्नाटक राज्य में 3515 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। खुद को आम लोगों और गरीब, मजदूरों की पार्टी होने का दावा करने वाली कांग्रेस के लिए यह शर्म की बात है कि उसके शासन वाले राज्य में किसानों की यह दुर्दशा है।

पांच वर्षों में 3515 किसानों ने आत्महत्या की
किसानों की खुदकुशी का जो आंकड़ा दिया गया है वो अप्रैल 2013 से लेकर नवंबर 2017 के बीच है। किसानों की आत्महत्या के पीछे सबसे बड़ी बजह सूखा और फसल बर्बाद होना बताया गया है। राज्य के कृषि विभाग के अनुसार इन पांच वर्षों में जिन 3,515 किसानों ने आत्महत्या की है, उनमें से 2,525 किसानों ने सूखे और फसल खराब होने की वजह से खुदकुशी की है। कर्नाटक के कृषि विभाग के मुताबिक अप्रैल 2015 से अप्रैल 2017 के बीच खुदकुशी के 2,514 मामले दर्ज किए गए जिनमें से 1,929 मामलों को किसानों से जुड़ा माना गया। इसी तरह अप्रैल 2017 से नवंबर 2017 के बीच, जब राज्य में पर्याप्त बारिश हुई थी, खुदकुशी के 624 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 416 मामलों को किसानों की खुदकुशी माना गया। खुदकुशी करने वालों में गन्ना किसानों की संख्या सबसे ज्यादा है। इसके बाद कपास और धान की उपज पैदा करने वाले किसान हैं। 

सूदखोरों का आतंक भी खुदकुशी की बड़ी वजह
कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार सूदखोरों पर लगाम नहीं लगा पा रही है। किसानों की आत्महत्या के पीछे सूदखोरों का आतंक एक बड़ी वजह है। बताया जा रहा है कि कर्नाटक में सूदखोर किसानों को 30 से 40 फीसदी ब्याज दर पर कर्ज देते हैं और कर्ज वापस नहीं देने पर किसानों का उत्पीड़न करते हैं। राज्य की कांग्रेस सरकार इन सूदखोरों पर लगाम लगाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है। एक हिसाब से यह पूरा मामला कानून-व्यवस्था का भी है, लेकिन सिद्धारमैया सरकार इसे रोकने को लेकर कुछ नहीं कर पाई है। 

मर रहे हैं किसान, अय्याशी में डूबे हैं सीएम सिद्धारमैया
कर्नाटक में कांग्रेस शासन में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा दहला देने वाला है, लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को लगता है इससे कोई मतलब नहीं है। सीएम सिद्धारमैया किसानों की मदद करने के बजाए सरकारी पैसे को अय्याशी में उड़ा रहे हैं।  मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कर्नाटक के सीएम को एक सरकारी कार्यक्रम में चांदी के बर्तनों में डिनर परोसा गया। जानकारी के मुताबिक 16 दिसंबर को मुख्यमंत्री के लिए आयोजित इस डिनर पार्टी पर 10 लाख रुपये की लागत आई है। खबरों के अनुसार कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कलाबुर्गी जिले में साधने समभ्रमा प्रोग्राम में शामिल पहुंचे थे। यह एक सूखाग्रस्त क्षेत्र है। यानी वहां पर आम जनता अक्सर दाने-दाने को मोहताज हो जाती है, लेकिन जिला प्रशासन ने मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों और वरिष्ठ अफसरों के लिए जो डिनर का इंतजाम किया था उसमें अय्याशी की झलक दिख रही थी। मसलन, मुख्यमंत्री, मंत्रियों और अधिकारियों को चांदी की थाली- कटोरी में खाना परोसा गया। सवाल उठता है कि जिस राज्य में जनता दो जून की रोटी के लिए तरस जाती हो, हजारों की संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं, वहां जनता की कमाई को ऐसी अय्याशियों में उड़ाने का हक कैसे मिल सकता है।

मुख्यमंत्री के खाने पर उड़ाए जनता के 10 लाख रुपये
एक स्थानीय बीजेपी नेता ने आरोप लगाया है कि कर्नाटक के किसानों को राज्य सरकार उनके पैदावार के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं दे पा रही है, जिसके चलते वे आत्महत्या करने पर मजबूर हैं। ऐसे में कर्नाटक के मुख्यमंत्री की डिनर पार्टी पर 10 लाख रुपये फूंकने का क्या औचित्य है। इसके लिए बीजेपी ने सिद्धारमैया से किसानों से माफी मांगकर पहले उनकी समस्याओं को दूर करने की मांग की है।

इस डिनर में राज्य के सिंचाई मंत्री एम बी पाटिल, कलाबुर्गी जिले के प्रभारी मंत्री शर्मप्रकाश पाटिल, यादगिर जिले के प्रभारी मंत्री प्रियांक खड़गे, पूर्व मंत्री शर्नाबसप्पा दर्शनपुर और अलंद के विधायक बी आर पाटिल भी शामिल थे।बीजेपी ने ये भी आरोप लगाया है कि जिस रात मुख्यमंत्री और मंत्रियों के खाने पर लाखों रुपये फूंक दिए गए, उसी शाम मुख्यमंत्री की सभा में जनता को  प्लास्टिक के प्लेट में जो भोजन दिया गया उसमें से कीड़े निकल रहे थे।

चाय-बिस्किट और तौलियों पर 65 लाख से अधिक खर्च
आरटीआई के हवाले से यह तक बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अय्याशियों की सूची बड़ी लंबी है। जब से उन्होंने कुर्सी संभाली है, जनता के खजाने से अपना पेट भरने में लगे हुए हैं। साल 2013-14 में बिस्किट, चाय, कॉफी और मिनरल वॉटर पर 13.65 लाख रुपये उड़ा दिए। साल 2014-15 में भी बिस्किट, चाय, कॉफी और मिनरल वॉटर पर 11 लाख रुपये से ज्यादा खर्च किए। साल 2015-16 में भी इन्हीं सब पर 11 लाख रुपये से ज्यादा खर्च कर दिया। साल 2016 में यह खर्च साढ़े 11 लाख से भी ज्यादा बढ़ गया। जबकि 2017-18 में उन्होंने अबतक ही लगभग 12 लाख रुपये खर्च कर दिए हैं। यानी उन्होंने कुल मिलाकार केवल बिस्किट पर 22 लाख रुपये, चाय-कॉफी और पानी पर 38 लाख रुपये पानी की तरह बहा दिए हैं। यही नहीं सिर्फ 6 महीने के भीतर उनके तौलिये, तकिये के कवर और फूट मैट पर सरकारी खजाने को पौने पांच लाख रुपये का भार पड़ चुका है।

सिर्फ वोटबैंक की राजनीति में डूबे हैं सीएम सिद्धारमैया
एक तरफ कर्नाटक में जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। ग्रामीण हो या शहरी इलाके सभी जगहों पर आमलोग परेशान हैं, पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया लोगों को सहूलियत देने के बजाए अपने वोटबैंक को साधने में लगे हैं। सीएम सिद्धारमैया दो वर्षों से राज्य में टीपू सुल्तान की जयंती मना रही है। इस वर्ष भी 10 नवंबर को राज्य सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती धूमधाम से मनाई और इसके लिए राज्योत्सव को ताक पर रख दिया। 18वीं सदी में मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान की जयंती मनाने के सीएम सिद्धारमैया के फैसले का बीजेपी ने जबरदस्त विरोध किया, क्योंकि जनता टीपू सुल्तान को कट्टरपंथी और बर्बर शासक मानती रही है। बीजेपी ने आरोप लगाया कि वोट बैंक की राजनीति के लिए राज्य सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती को मनाया है। कर्नाटक की कई ऐतिहासिक हस्तियां हैं, जिनकी जयंती मनाई जा सकती हैं जैसे बेंगलुरू के संस्थापक किट्टूर की रानी चेनम्मा, मशहूर गायक के गौड़ा और मशहूर इंजीनियर सर एम विश्‍वेश्‍वरैया। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को इन हस्तियों से कोई मतलब नहीं है, उन्हें तो वोटबैंक साधना है और इसके लिए बर्बर शासक टीपू सुल्तान से अच्छा कोई हो नहीं सकता।

राज्य में हिंदूवादी संगठन के कार्यकर्ताओं पर हमले
कर्नाटक में लगातार हिंदूवादी संगठनों से जुड़े लोगों पर जानलेवा हमलों की खबरें आती रहती हैं। हैरानी की बात यह है कि ऐसे मामलों में सरकार कोई ठोस कार्रवाई नहीं करती है। सिद्धारमैया सरकार का यह कृत्य दर्शाता है कि अपराधियों और हमलावरों को सरकार का साथ मिला हुआ है। पिछले दिनों कर्नाटक में रूद्रेश, कुटप्पा और 19 साल के परेश मेस्ता की जघन्य तरीके से हत्या की गई। आरएसएस कार्यकर्ता रूद्रेश की इस साल की शुरुआत में गला काट कर हत्या कर दी गई और नवंबर 2015 में कोडागु जिले में विश्‍व हिंदू परिषद् के स्थानीय नेता डीएस कुटप्पा को भी मार दिया गया था। हाल ही परेश मेस्ता की भी हत्या कर दी गई। राज्य सरकार ने इन हत्याकांडों में कड़ी कार्रवाई नहीं की।

दोबार कुर्सी हासिल करने के लिए कुछ भी करेंगे सिद्धारमैया
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार का कार्यकाल आखिरी दौर में चल रहा है। कर्नाटक में 2018 के अप्रैल-मई महीने में चुनाव होने हैं और यही वजह है कि वो वोटबैंक की राजनीति पर उतर आए हैं। कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी समाज को बांट कर वोट हासिल करना चाहती है, क्योंकि उसके पास राज्य में विकास और जनहित से जुड़ा ऐसा कोई काम नहीं है, जिससे वो जनता के बीच जाकर वोट मांग सके। 

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